-सुसंस्कृति परिहार
शायद धीरेन्द्र ऐसे पहले कथावाचक हैं जो हिन्दू एकता पदयात्रा पर निकले हैं। लगता है उन्होंने बख़ूबी यह समझ लिया है कि बहुसंख्यक हिंदुओं की आस्था मंदिरों से दूर हुई है इसलिए उन्हें आव्हान करना पड़ रहा है कि हिंदुओं मंदिर आओ। वे हिंदुओं को डराते हुए कह रहे हैं यदि तुम नहीं निकले तो एक दिन सारे मंदिर मस्जिद में बदल जाएंगे। एक हिंदू एकता पदयात्रा जो 21 नवम्बर से बागेश्वर धाम से शुरू होकर उत्तर प्रदेश होती हुई 29 नवम्बर को ओरछा में समाप्त होने जा रही है यह लगभग 160 किमी की दूरी तय करेगी।
हमें इस यात्रा के निहितार्थ समझने होंगे। इस समय अपनी कथित चमत्कारिक हनुमान कृपा से सबसे ज्यादा हिंदुओं को सम्मोहित करने वाले धीरेन्द्र पर इसलिए भारत सरकार का वरद हस्त प्राप्त है। वे सीधे सीधे मुख्यमंत्रियों, विधायकों और अब तो अंबानी जैसे बड़े कारपोरेट से जुड़े हुए हैं। उनका एजेंडा साफ़ है हिंदुओं को इकट्ठा कर उन्हें सनातन के सम्मोहन में फांस कर भाजपा को मज़बूत करना है। जिनका अंधश्रद्धा प्रमुख एजेंडा है। जिसके ज़रिए उन्हें उनके अधिकारों से दूर रखकर आंदोलनों और विरोध से बचें रहें। प्रचारित यह होता है धीरेन्द्र लोगों को हनुमान शक्ति से रोजगार तो दिलाता ही है बल्कि उनकी गंभीर शारीरिक और मानसिक बीमारियों का हल भी करता है।
उनके यहां लगने वाली अपार भीड़ में उनके अनेक एजेंट इस झूठे कारोबार को बढ़ाने में सक्रिय रहते हैं।उनकी डरावनी वाणी से सामने बैठा व्यक्ति अपना विवेक खो देता है और उनकी हां में हां मिला देता है। उनमें हनुमान के कोप का डर पैदा कर उन्हें सम्मोहित कर अपने मुंह मियां मिट्ठू बनता है।
अब जब सरकार ऐसे लोगों का साथ है इसलिए इनका कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है उसी अंधश्रद्धा से मिली लोकप्रियता को इस बार नया रंग देने ये पदयात्रा का स्वांग रचा गया है। जो पूरी तरह सरकार का एजेंडा है।
सोचिए यदि उनके पास कोई अदृश्य शक्ति है तो उन्हें ये सब करने की ज़रूरत नहीं होती। कब के मस्जिद पर मंदिर बन गए होते। तमाम मस्जिदों को धराशाई कर दिया गया होता है। हिंदुओं की मति फेर सबको मंदिर भेज चुके होते। सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि कथित सनातन सरकार एक दर्शक से ज्यादा से सत्ता में हैं उसके राज में हिंदू मंदिर नहीं जाते आखिरकार क्यों?
सच यह है कि इस सरकार ने मंदिरों को जिस तरह कारपोरेट के हवाले किया है उनकी कमाई का जरिया बनाया है उससे आम हिंदू में मंदिर जाने से घृणा जन्म ली है।राम मंदिर बन जाने के बाद जिस तरह एयरपोर्ट, रेल्वे स्टेशन सूने हो गए हैं। मंदिर प्रवेश शुल्क ने भी उसे पहुंच से दूर बना दिया है।अब तो सरकार की नज़र मंदिर मस्जिदों की कमाई को लूटने की है। केदारनाथ में क्या हुआ।सबके सामने है।
सच्चा सनातनी मंदिर जाने और मस्जिद तोड़ने की बात नहीं करता है। वह तो वसुधैव कुटुम्बकम की भावना से सबके प्रति प्रेम भाव रखता है। सनातनी धीरेन्द्र की तरह हिंदू हिंदू नहीं चिल्लाता है उन्हें डराता नहीं। यदि मंदिर जाने वाले कम हुए हैं तो उसकी वजहें तलाशनी होगी इस देश में तो सर्वधर्म के लोग हैं जो मंदिर जाते हैं और दरगाह भी। राम-रहीम में फर्क नहीं करते। ये सरकार की ओछी मानसिकता है जो ऐसे लोगों से पदयात्रा निकलवाती है देश विरोधी वक्तव्य दिलाती है। ऐसे लोग वास्तव में देशद्रोही हैं इन्हें सही मायने में जेल में होना चाहिए।
काश! यह यात्रा सर्वधर्म समभाव यात्रा होती तो देश की बहुरंगी संस्कृति सुदृढ़ होती जिससे सदियों पुराना परस्पर प्रेम भाव बरकरार रहता और गर्व से हम कहते रहते मेरा देश महान। वह सच्ची सनातन यात्रा होती।
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