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“मेरठ षडयंत्र केस” और 33 क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी

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मुनेश त्यागी 

    भारत के स्वतंत्रता संग्राम में करोड़ों लोग शामिल थे, लाखों लोगों ने बलिदान दिया और हजारों लोग जेल गए। मगर हिंदुस्तान की आजादी के लम्बे मुक्ति संघर्ष में, अंग्रेज सरकार तमाम तरह के प्रगतिशील, संघर्षशील, कम्युनिस्ट विचारों ,कम्युनिस्ट ग्रुपों और कम्युनिस्ट पार्टी के लोगों से सबसे ज्यादा खौफजदा थी। वह किसी भी प्रकार के साम्यवादी विचार को भ्रुण अवस्था में ही खत्म कर देना चाहती थी । अंग्रेज सरकार 1917 की रूसी क्रांति के विचारों और नारों से बहुत डरी हुयी थी। इसीलिये 1922 से लेकर 1930 तक साम्यवादियों को भारत से खत्म करने की मंशा से अंग्रेजों द्वारा भारत के साम्यवादियों पर सात मुकदमें चलाये गये। पांच मुकदमें पेशावर में और एक मुकदमा मेरठ में और एक कानपुर में चला। इन अभियुक्तों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और साम्यवादी, दोनों दलों के कार्यकर्ता शामिल थे ।

     भारतीय आजादी का संग्राम जहां फ्रांसिसी क्रांति के महान नारों समता, समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व के अमर नारों से प्रभावित था, वहीं वह रूसी क्रांति के नारों ,,,समाजवाद, साम्यवाद और मजदूरों किसानों के राज्य और सरकार ,,, से भी बहुत प्रभावित था। ब्रिटिश शाषक इन तमाम नारों, समतावादी मूल्यों और क्रांतिकारी विचारों से बुरी तरह से भयभीत और खौफजदा थे। वे इन विचारों को किसी भी हालत में भारत में नही पनपने देना चाहते थे और वे किसी भी प्रकार से इन जनकल्याणकारी मूल्यों और विचारों की हत्या कर देना चाहते थे।

     इसी क्रांति और साम्यवाद विरोधी नीति के तहत अंग्रेजों ने कांग्रेस के गरम तबके और साम्यवादी पार्टी और मजदूर आंदोलन के अग्रणी क्रांतिकारियों और कार्यकर्ताओं की मनमाने आरोप लगाकर गिरफतारियां कीं और 20 मार्च 1929 को 33 क्रांतिकारी कार्यकर्ताओं को गिरफतार कर लिया और मजदूर किसान पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टी और ट्रेड यूनियन कांग्रेस के बडे बडे नेता गिरफ्तार कर लिये गये। उन पर ताजेराते हिंद की धारा 121ए के तहत देशद्रोह और अंग्रेजों की सरकार को उखाड फैंकने का आरोप लगाकर, मेऱठ में मुकदमा चलाया गया जिसे पूरी दुनिया और भारतीय इतिहास में “मेरठ कम्युनिष्ट षडयंत्र” केस के नाम से जाना जाता है। इससे हमारे मेरठ का दोबारा से देश और दुनिया में नाम रोशन हुआ। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में मरेठ पहले ही विश्व विख्यात हो चुका था। मेरठ से शुरू हुए इस आजादी के महासंग्राम को दुनिया के सबसे बड़े क्रांतिकारी कार्ल मार्क्स ने “भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम” की उपाधि दी थी।

      हिंदुस्तान के इन महान क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी सपूतों पर जो आरोप लगाये गये थे ,उनमें अंग्रेजों ने कहा कि ये साम्यवादी विचार रखते हैं, कम्युनिस्ट प्रचार करते हैं, क्रांति के द्वारा भारत को साम्राज्यवादी ब्रिटेन से आजाद कराना और अंग्रेजी हुकूमत को हिंदुस्तान से उखाड फैंकना चाहते हैं और देश को पूर्ण आजाद कराना चाहते हैं।

     यहीं पर यह अहम सवाल उठता है कि मेरठ षडयंत्र केस के ये तमाम आरोपी क्या चाहते थे?‍ इन आजादी के दीवाने हिंदुस्तानियों का कुसूर इतना सा था कि ये लोग हजारों वर्ष पुराने अन्याय, शोषण, गैरबराबरी,भेदभाव और जुल्मोसितम का खात्मा चाहते थे, वे भारत में समाजवादी व्यवस्था, सच्चा जनवाद और सच्ची गणतांत्रिक व्यवस्था, मनुष्य मात्र की समानता, समता आजादी और विकास चाहते थे और देश के संसाधनों पर सारे भारतियों का आधिपत्य चाहते थे, ताकि इन प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल, भारत की सारी जनता के विकास के लिए किया जा सके।

     यही कामना, विचार, आदर्श, मूल्य और उद्देश्य इनका अपराध थे। मगर अहम् सवाल यह है कि दुनिया भर में आजादी, समता, समानता, समाजवाद, भ्रातृत्व और इंसाफ के दीवाने कब किससे डरे हैं? दुनिया की कोई जेल, बंदूक, सूली, दमन और जुल्मोसितम इन्हें नही रोक पायी है। मेरठ षडय्त्र केस के आजादी और समाजवाद के प्रेमियों ने अंग्रेजों के इस मनमाने हमले का डटकर मुकाबला किया। इन आजादी के दीवानों ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत जेल और अदालती कटघरे को अपने आजादी और समाजवादी क्रांतिकारी विचारों के प्रचार प्रसार का एक खूबसूरत माध्यम और इंकलाबी अड्डा बना लिया। 

     इन्होंने अपनी आजादी और साम्यवादी विचारधारा के बुनियादी सिद्धांतों और मूल्यों को देश और दुनिया के कौने कौने में पहुंचा दिया और उल्टे अंग्रेज डाकुओं और लुटेरों को दुनिया और देश की जनता के सामने कटघरे में खडा कर दिया और उन्हें पूरी दुनिया के सामने नंगा कर दिया और उनके अन्यायी रूप को पूरी दुनिया के सामने नंगा कर दिया।

    मेरठ षडयंत्र केस के इन 33 अभियुक्तों में दो सपूत मेरठ के भी थे जिनके नाम पं गौरीशंकर और चौ.धर्मवीर सिंह थे। इनमें 18 कम्युनिस्ट थे, दस कांग्रेसी थे, तीन सपूत ब्रिटिश मजदूर वर्ग की कम्युनिस्ट पार्टी के फिलिप स्प्राट, बेन ब्रेडले,और हचिनसन थे और शेष दस कांग्रेस के गरम दली थे जो मजदूर वर्ग के नेता थे। मेरठ षडयंत्र केस हिंदू मुस्लिम एकता की मिली जुली विरासत का एक अद्भुत नमूना था। इनमें 25 हिंदू, पांच मुसलमान और तीन अंग्रेज साम्यवादी क्रांतिकारी शामिल थे।

     मेरठ षडयंत्र केस के इन महान क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानियों में अधिकांश बंगाल, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, ढाका, मुंबई, पंजाब और मेरठ के कार्यकर्ता शामिल थे। इन स्वतंत्रता सेनानियों के नाम इस प्रकार हैं,,, 1.अयोध्या प्रसाद, 2. शौकत उस्मानी, 3. पुरनचंद जोशी, 4. गौरीशंकर, 5. लक्ष्मण राव कदम, 6.डॉ विश्वनाथ मुखर्जी, 7.चौधरी धर्मवीर सिंह, 8.धारणिकांत गोस्वामी, 9.शिवनाथ बनर्जी, 10.गोपाल वैसाक, 11.मुजफ्फर अहमद, 12.शमसुल हुदा, 13.किशोरी लाल घोष, 14.गोपेंद्र चक्रवर्ती, 15.राधा रमन मित्र, 16.श्रीपाद अमृत डांगे, 17..सच्चिदानंद विष्णु घाटे, 18.एस एच झाबवाला, 19.ठुंडी राज ठेंगड़ी, 20.केशव नीलकंठ जोगलेकर, 21.शांताराम सांवलाराम मीरजकर, 22.रघुनाथ शिवराम नींबकर, 23.डॉक्टर गंगाधर मोरेश्वर अधिकारी, 24.मोतीराम गजानन देसाई, 25.अर्जुन आत्माराम अल्वे, 26.गोविंद रामचंद्र कसले, 27.सोहन सिंह जोश, 28.मीर अब्दुल मजीद, 29.केदारनाथ सहगल, 30.अमीर हैदर खान, 31.फिलिप्स स्प्राट, 32.बेंजामिन फ्रांसिस ब्रैडली और 33 एच एल हचिंसन हैं। 

       इन हमलों से भारत की जनता भी कहां डरने वाली थी? उसने अपने महान बेटों की पैरवी करने के लिये “ओल इंडिया मेरठ डिफैंस कमैटी” बनायी जिसके अध्यक्ष डा मुख्तार अहमद अंसारी थे और सचिव पंजाब के बाबू गिरधारी लाल थे। इन्हें ब्रिटेन और रूस के मजदूर वर्ग ने काफी आर्थिक मदद दी।विश्व प्रसिध्द वैज्ञानिक आइंस्टीन ने ब्रिटेन के प्रधान मंत्री मैक डोनाल्ड को चिट्ठी लिखकर मुकदमा हटाने की मांग की थी।

      यह तथ्य भी स्मृणीय है कि यह मुकदमा भारत के जंगेआजादी के इतिहास में हिंदू मुस्लिम एकता और वैश्विक मतैक्य का एक मील का पत्थर है। इस मुकदमे में 23 हिंदू, 5 मुस्लिम और तीन अंग्रेज साम्यवादी शामिल थे। इनके वकील बंबई के एम सी छागला, पटना के देवकी प्रसाद सिन्हा, लखनऊ के चंद्र भान गुप्ता, कलकत्ता के क्षितीश चंद्र चक्रवर्ती, बैरिस्टर फरीदुल हसन अंसारी, श्याम कुमारी,और कैलाशनाथ काटजू थे ।

     16 जनवरी 1933 को दिये गये फैसले में मुजफ्फर अहमद को आजीवन काला पानी, डांगे, स्प्राट, घाटे, जोगलेकर, निबंकर को 12-12वर्ष की कालापानी की सजा,,मजीद ,जोश और गोस्वामी को सात सात वर्ष काला पानी की सजा और बाकियों को पांच पांच वर्ष की कठोर सजायें दी गयी थीं।

     भारत के इन महान सपूतों ने अदालत में दिये गये अपने ब्यानों में कहा था कि हम किसानों मजदूरों का गणतंत्र कायम करेंगे, हम ब्रिटिश राज्य को उखाड फैंकना चाहते हैं, हम पूंजीवाद के समझौता विहीन शत्रु हैं, हम संपूर्ण स्वतंत्रता के लिए समझौती विहीन संघर्ष कर रहे हैं, हम भारतीय समाज और सभ्यता को गरीबी, दासता और गुलामी के महाविनाश से बचाना चाहते हैं।

      मेरठ कम्युनिस्ट षडयत्र केस ने हमारे मेरठ और हिंदुस्तान की शान में चार चांद लगाये हैं। गरीबी, भुखमरी, असमानता, अधिकार हीनता, मजदूरों किसानों की बदतर होती दशा के निजाम से निजात दिलाने में मेरठ कम्युनिस्ट षडयंत्र केस की अहमियत और प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है। आओ हम सब मिलकर, मेरठ के मुंह पर लगे साम्प्रदायिकता के बदनुमा दाग को छुडायें और हिंदू मुस्लिम एकता और सौहार्द को मेरठ में फिर से कायम करें और मेरठ की क्रांतिकारी छवि में फिर से चार चांद लगाए। यह वक्त का तकाजा है कि हम मेरठ के लोग मिलकर हिंदू मुस्लिम नफरत फैलाने की मुहिम का डटकर मुकाबला करें और किसी भी तरह हिंदू मुस्लिम एकता को बनाए रखें

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