सुधा सिंह
जब कोई पेड़ मरता है तो उससे जुड़ी अनेक स्मृतियां भी आंसू बहाने लगती हैं. काशी में गंगा के किनारे चौकीघाट पर एक पीपल का पेड़ था. चौकीघाट केदारघाट के बगल में है. कहते हैं कि इसी साल अप्रैल के महीने में एक दिन अचानक उसका तना टूट गया और डालें एक मिठाई की दुकान पर गिर गईं. अब भी उसका सूखा तना खड़ा है. इसकी उम्र 300 साल से अधिक रही होगी.
पीपल के इस पेड़ से जुड़ी अनेक स्मृतियां मेरे मस्तिष्क में जीवित हैं. अस्सी के दशक में अक्सर अपने मित्रों के साथ यहां गर्मी के दिनों में मैं बैठता था. जब कहीं हवा नहीं लगती थी, तब भी यहां हवा के झोंके को महसूस किया जा सकता था.
कहते हैं की अक्सर इसकी छाया के नीचे बैठकर हम लोग देश-दुनिया की राजनीति पर चर्चा करते थे. तब समाज को बदलने का एक सपना था. कुछ मित्र कविताएं भी लिखते थे.
इस पेड़ के नीचे चर्चित जनवादी कवि गोरख पांडेय अक्सर बैठा करते थे. तब वह काशी हिंदू विश्वविद्यालय में दर्शन शास्त्र से एमए कर रहे थे और सोनारपुरा में नंदू के घर में रहते थे. बाद में वह बिड़ला छात्रावास में चले गए.
अब गोरख पांडेय भी नहीं हैं लेकिन उनकी गीतें अक्सर लोग गुनगुनाते हैं. “समाजवाद बबुआ धीरे-धीरे आई, हाथी से आई, घोड़ा से आई ! समाजवाद बबुआ धीरे-धीरे..!” साल 2022 में गोरख पांडेय की कविताएं पहले से भी अधिक प्रासंगिक हो गई हैं. इस पीपल के पेड़ की तरह ही जब गोरख पांडेय थे, तब उनकी अहमियत को किसी ने रेखांकित नहीं किया था. बनारस से जब वह पढ़ाई करने जेएनयू चले गए, तब लोग उन्हें विक्षिप्त कहने लगे थे. दिल्ली गोरख पांडेय को संभाल नहीं सकी. शायद बनारस में रहते तो बच जाते.
सबकी एक उम्र है और उसके पूरा होने पर धरती से जाना है. वह चाहे पेड़-पौधे हों या जीव-जन्तु..! थोड़ी सी सावधानी बरतने पर इस पीपल के पेड़ को बचाया जा सकता था. अपने जीवन में उसने कितना हमें ऑक्सीजन दिया, इसका आंकलन करना असंभव है. सब कुछ रुपये से नहीं तौला जा सकता है.
अब पीपल के इस पेड़ के तने की छाल भी निकल गई है, जैसे किसी बूढ़े व्यक्ति की चमड़ियां हड्डी को छोड़कर झूलने लगती हैं. जब किसी के शरीर की चमड़ी हड्डी को छोड़कर झूलने लगे तो समझ जाइए कि अंत समय नजदीक आ गया है.
अक्सर पीपल के पेड़ में टूटने के बाद भी नई कोंपलें आ जाती हैं लेकिन इसके साथ ऐसा नहीं हुआ.
दुकानदार ने पीपल के पेड़ के भहरा कर गिरने की एक वीडियो बनाई थी. मिठाई का दुकनदार भी पेड़ के मरने से बहुत उदास था. मौत चाहे किसी पेड़ की हो या इंसान की अच्छा नहीं लगता. उससे जुड़ी स्मृतियां ही हमारे पास शेष बच जाती हैं, जिसे जीवन पर्यंत हम ढोते रहते हैं.