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पर्सनालिटी , प्रोडक्टिविटी और रिलेशनशिप तीनों डैमेज करता है माइक्रो स्ट्रेस

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        कुमार चैतन्य 

माइक्रो स्ट्रेस असंतोषजनक दैनिक अनुभवों से जुड़ी चिंताएं होती हैं। इनमें एक मिस्ड प्रोजेक्ट डेडलाइन, एक खराब मासिक समीक्षा, एक कठिन ग्राहक या एक पैसिव मुख्यालय का सामना शामिल हो सकता है। 

    हम इन्हें अभी तक हानिरहित और अपेक्षित संघर्षों के रूप में समझते हैं, लेकिन ये ऐसे नहीं हैं। इस विषय पर रिसर्च बताता है कि ये व्यक्ति के भावनात्मक कल्याण पर असर डालते हैं।

      डेली रुटीन की वे छोटी-छोटी बातें जो आपकी खुशी और आपके आत्मविश्वास को चोटिल करती हैं, उन्हें इग्नोर करना मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकता है। इसलिए जरूरी है कि हम माइक्रो स्ट्रेसर्स को समझें।

*क्या हैं माइक्रो स्ट्रेसर्स?*

माइक्रो स्ट्रेसर्स हमारे शरीर को कॉर्टिसोल नामक स्ट्रेस हार्मोन को निरंतर बढ़ाते हुए प्रभावित करते हैं।

     मूल रूप से, ये हमारे दिमाग को निरंतर हमले के तहत होने का अनुभव कराते हैं। जिससे हम धीरे-धीरे फोकस में कमी और मूड स्विंग्स का सामना करने लगते हैं। माइक्रोस्ट्रेसर्स आपके समग्र स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।

ये हैं वास्थ्य पर माइक्रोस्ट्रेसर्स का प्रभाव :

  *1. मानसिक थकान :*

बर्नआउट का सबसे ज्यादा प्रभाव मानसिक थकान के रूप में ही नजर आता है। कर्मचारी अलग-अलग तरह की भावनाओं से जूझते हुए अपने आत्मसम्मान में कमी महसूस करते हैं। उन्हें ऐसा लगता है कि उन्हें सुना नहीं जा रहा, न ही उनकी यहां कोई अहमियत है।

*2. लगातार चिड़चिड़ापन :*

इस तरह के वातावरण में एक साझा भावनात्मक अनुभव क्रोध होता है। हम न सिर्फ ज़्यादा उत्तेजना का अनुभव करते हैं, बल्कि चिड़चिड़ाते हैं और टकरावपूर्ण स्थितियों का सामना करते हैं। न चाहते हुए भी बार-बार समझौता करना इस भावना को और ज्यादा बढ़ा देता है।

*3. अपराध का भाव :*

क्रोध निराशा में ले जाता है। हमें उस उत्तेजना के लिए माफी मांगने का अनुभव होता है जिसे हम टाल सकते थे। चुनौती यह है कि हम इस पीड़ा के स्रोत को सही ढंग से पहचान नहीं पा रहे हैं।

*4. प्रोडक्टविटी का नुकसान :*

नकारात्मक भावनाओं के कारण हम अपनी टीम से ठीक तरह से अलाइन नहीं हो पाते और प्रोडक्टिविटी में कमी का अनुभव करते हैं। कभी-कभी हम शारीरिक और मानसिक रूप से अनुपस्थित होने लगते हैं। पेशेवर लोग अपने व्यक्तिगत मूल्यों से मेल न होने के बावजूद लक्ष्यों का पीछा करने का दबाव महसूस करते हैं।

     इसका असर उनके व्यक्तिगत संबंधों पर भी पड़ता है। माइक्रोस्ट्रेसर कभी-कभी व्यक्ति की पहचान को भी नुकसान पहुंचाते हैं।

*5. परिवार टूट सकते हैं :*

कार्यस्थल में नकारात्मक भावनाओं को व्यक्त करना मुश्किल होता है। वे इकट्ठा होने लगते हैं और फिर हम उन्हें वहां छोड़ते हैं, जहां हम ज्यादा सुविधाजनक महसूस करते हैं। जैसे अपने परिवार या दोस्तों के साथ। हमारे लिए बॉस की बजाए अपने पार्टनर से गुस्सा होना बहुत आसान और सुरक्षित होता है। इस प्रक्रिया को भावनाओं का स्थानांतरण कहा जाता है, और इसके हमारे व्यक्तिगत जीवन पर गंभीर प्रभाव होते हैं।

अब जानिए इनसे कैसे निपटा जाए :

  *1. NO का वेलल्यू समझें :*

    एक सच्चा नो एक झूठे YES से कहीं बेहतर होता है। अपनी सीमाओं और परिस्थितियों को जानें। अपने व्यक्तिगत और पेशेवर मूल्यों से मेल नहीं खाते वह रिक्वेस्ट या मांग को अस्वीकार करें। विनम्रता से।

*2. विवेकशील बनें :*

बहुत सारी संचार बिना बोले यानी गैर-भाषणिक तरीकों से भी होते हैं। अपने शरीर की भाषा, मेटाकम्यूनिकेशन और दूसरों पर इसके प्रभावों के बारे में जागरूक रहें। आप बिना इसे जाने स्ट्रेस को बढ़ा रहे हो सकते हैं।

*3. बैलेंस बनाएं :*

एक सामान्य कहावत है कि हम जीवित रहने के लिए काम करते हैं और न कि काम करने के लिए जीते हैं। यदि आप अपने काम को एन्जॉय नहीं कर पा रहे, या ऑफिस जाने से आपको घबराहट हो रही है,तो अवकाश लेने में न घबराएं। ये आपके मानसिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी है।

*4. ध्यान करें और सावधान रहें :*

हर सुबह अपने साथ 15 मिनट बिताना अनमोल है। ध्यान करना सावधानी की प्रक्रिया में मदद करता है। 

    यह वर्तमान में बने रहने, अपनी भावनात्मक स्थितियों को समझने, उन्हें नियंत्रित करने और फिर अपनी ऊर्जा को अधिक सकारात्मक तरीकों में निर्देशित करने की क्षमता है।

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