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अचानक बदलते मौसम की धुंध ?

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शशिकांत गुप्ते

सादर नमन विनम्र श्रद्धांजलि से शुरुआत करना पड़ रही है। देश के रक्षा प्रमुख हमारे बीच नहीं रहें। हेलिकॉप्टर क्रश हुआ।प्रथम दृश्यता कहा जा रहा है,मौसम में अचानक धुंध होने से हादसा हुआ।
आज कलम से सिर्फ संवेदनाएं प्रकट हो रही है। मौसम की खराबी पर व्यंग्य कैसे लिख सकतें हैं। मौसम अचानक बदल गया।मौसम का बदलना प्राकृतिक प्रक्रिया है।
जो भी कारण रहा है,देश को अपूर्णीय क्षति हुई है।
पुनः विनम्र श्रद्धांजलि।
मौसम के अचानक बदलाव के लिए कोई भी कुछ कह नहीं सकता है?
इनदिनों सियासी मौसम में निरंतर बदलाव दिखाई दे रहा है। किसान आंदोलन की धुंध समाप्ति की ओर है। यह धुंध समाप्त होने के लिए सत्ता की मानसिकता पर छाई हठधर्मिता की धुंध हटने के लिए सात सौ अधिक बलिदानों के बाद भी बारह महीने लग गए हैं।
सियासी क्षेत्र में अहंकार की धुंध बहुत जल्दी छा जाती है। जरासी उपलब्धि मिलते ही सियासतदान आसमान छूने की कोशिश करने लग जातें हैं। सूबे की मुखिया की ममता इतनी अधिक तीव्र हो जाती है कि,देश की प्रधान बनने की मंशा जाग जाती है। यह अपरिपक्व मानसिकता के कारण उपजी अहंकार की धुंध ही हो सकती है।
प्रख्यात सूफी संत अब्दुर्रहीम ख़ान-ए-ख़ानां एक अच्छे शायर थे।वे उर्दू और संस्कृत ज़बान के ज्ञाता थे।
सियासी क्षेत्र में छा रही अहंकार की धुंध पर कटाक्ष करते हुए सूफी संत रहीम का यह दोहा प्रासंगिक है।
भार झोंकि कै भार में, ‘रहिमन’ उतरे पार।
पै बूड़े मँझधार में , जिनके सिर पर भार।।

दोहे का अर्थ निम्नानुसार है।
अहम् को यानी खुदी के भार को भाड़ में झोंककर हम तो पार उतर गये। बीच धार में तो वे ही डूबे, जिनके सिर पर अहंकार का भार रखा हुआ था,या जिन्होंने स्वयं भार रख लिया था।
अभी तो सन 24 के फाइनल मैच के पूर्व सन 22 का सेमीफाइनल मैच होने वाला है। सन 22 में ही गलतफहमी की बहुत कुछ धुंध हटने ही वाली है।
हर कोई अपनी ताकत आजमाना चाहता है। एक टीम तो आश्वश्त है कि विपक्षी टीमें कितना भी जोर लगा ले हम तो अजीत हैं। यह नहीं भूलना चाहिए कि,देशी फ़िल्म में प्राण,जीवन, जयंत,सज्जन, और अजीत नाम के कलाकारों ने हमेशा खलनायक का ही रोल अदा किया है।
स्वयं को अपराजित समझने वालों के लिए संत रहीम का यह दोहा है।इस दोहे में रहीम कहतें हैं,सिर्फ वाकचातुर्यता से स्वयं को बड़ा समझने की भूल नहीं करनी चाहिए। दोहा यह है।
बड़े बड़ाई ना करैं , बड़ो न बोले बोल
‘रहिमन’ हीरा कब कहै, लाख टका मम मोल।।

दोहे का अर्थ है:-
जो सचमुच बड़े होते हैं, वे अपनी बड़ाई नहीं किया करते, बड़े-बड़े बोल नहीं बोला करते। हीरा कब कहता है कि मेरा मोल लाख टके का है।
यह बात समझदार लोगों को अपने मानस पटल पर अच्छे से अंकित कर लेना चाहिए कि शकुनि मामा के पाँसे हमेशा ही पक्ष में पड़ेंगे जरूरी नहीं है।
ऐसे मानसिक विकृति पर संत रहीम का यह दोहा है,
बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।
‘रहिमन’ फाटे दूध को, मथै न माखन होय।

दोहे का अर्थ है :-
लाख उपाय क्यों न करो, बिगड़ी हुई बात बनने की नहीं। जो दूध फट गया, उसे कितना ही मथो, उसमें से मक्खन निकलने का नहीं।
विज्ञापन उत्पादों की बिक्री बढ़ाने के लिए होता है। लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि, विज्ञापनी दर्शाई गई उत्पादों की गुणवत्ता सौ फीसदी पूरी होगी जरूरी नहीं है।
आमजन की समस्याएं के लिए विज्ञापनों का उत्पात मचाना असंवेदनशीलता है।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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