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सेमी फायनल के बाद (3) खुशफ़हमी के भ्रूण में ग़लतफ़हमी

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कनक तिवारी 

साप्ताहिक हिन्दुस्तान से संबद्ध रहे लेखक-पत्रकार बालस्वरूप राही की पंक्तियां हैं। ‘माना कि गै़र हैं सपने और खुशियां भी अधूरी हैं। ज़िंदगी गुज़ारने के लिए कुछ ग़लतफ़हमियां ज़रूरी हैं।‘ 

ताज़ा वाकया में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत जी के बेहद तराशे हुए करीने से सजाए वाक्यों में भी अव्यक्त नस्ल के अल्फाज़ हैं। वे भी गदगद हैं, जिन्हें संघ और भाजपा की वैचारिकता से लगातार परहेज रहा है। प्रतिपक्षी दलों के प्रवक्ता और गोदी मीडिया की सरकारी दादागिरी के कारण सोशल मीडिया में ही अपनी बातें साहस, तर्क और गंभीरता के साथ कह रहे कुछ पत्रकार भी ग़फ़लत में लगते हैं। मेरे कर्म और फितरत में है कि मैं हर वक्त अल्पमत में रहता हूं। अब बदलना मुश्किल है। 

मोहन भागवत जी ने कई गोलमोल बातें कहीं। उन्हें हर पार्टी और व्यक्तिसमूह पर चस्पा कर देना कठिन नहीं है। मसलन सियासतदां लोग मर्यादा में रहें। अहंकार से दूर रहना चाहिए। विरोधियों को साथ लेकर चलना चाहिए। मणिपुर की बदहाली पर गम्भीरता देना ज़रूरी है। कभी भाजपा सरकार को समझाइश बल्कि निर्देश नहीं दिया कि प्रधानमंत्री वहां जाएं और राष्ट्रपति भी संविधान के अनुच्छेद 78 के तहत प्रधानमंत्री से मणिपुर पर रिपोर्ट मांगें। द्वैध रचते संघ ने कहा था वह एक सांस्कृतिक संगठन है। उस पर प्रतिबंध हटाया जाए। अब ज़ाहिर है वह राजनीतिक संगठन है। पिछली ही मोदी सरकार के वक्त मध्यांचल भवन दिल्ली में संघ प्रमुख ने सभी केन्द्रीय मंत्रियों की क्लास ली थी, जिसमें मोदी भी थे। यह अलग है कि मोदी अपनी बनावट के चलते किसी के सामने झुक नहीं सकते। जिसके सामने झुकते हैं, उसे निपटाते ज़रूर हैं। वे संसद और संविधान को जमीन पर लेटकर प्रणाम करते हैं। आडवाणी और वाजपेयी को भी। राजघाट में गांधी को भी। फिर मटियामेट करने में चूक नहीं होती। 

संघ प्रमुख ने नहीं कहा मोदी मंत्रिमंडल में एक भी मुस्लिम नहीं होने से संविधान की हेठी बल्कि अपमान हुआ है। संविधान की उद्देशिका बाबा साहब ने लिखी क्योंकि बाकी सदस्यों को बार बार प्रारूप समिति में आने में दिक्कत थी। संविधान के पहले शब्द हैं ‘हम भारत के लोग‘ जिन्होंने यह संविधान खुद बनाया है। मोदी मंत्रिमंडल में यह मुखड़ा कुचल दिया गया है। वे अब कहेंगे          ‘हम गैरमुसलमान लोग।‘ वही जो नागरिकता अधिनियम में है। मोदी 400 पार चाहते थे। फिर कहा 370 दे दो। वह जम्मू कश्मीर से एक उपधारा हटाने की याद दिलाता है। अगर 370 मिल जाते तो संविधान को बदलने का काम हो सकता था। राहुल गांधी, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, ममता बनर्जी, अरविन्द केजरीवाल, उद्धव ठाकरे, शरद पवार, रेवंत रेड्डी, सिद्धारमैया, स्टालिन, ममता तथा कम्युनिस्ट एवं अन्य नेता अपने हाथ संविधान लिए मतदाता को सीधे कनेक्ट करते रहे। लिहाज़ा 400 से गिरकर 370 भी नहीं, 272 नहीं, 240 में गिर गये। 

400 पार होते तो डंके की चोट पर पहला वाक्य होता ‘भारत हिन्दू राष्ट्र बनेगा।‘ फिर कह सकते संसदीय प्रजातंत्र खत्म करो और अमेरिकी नस्ल की राष्ट्रपति प्रणाली लाओ। मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति करेंगे लेकिन उन्हें सचिव कहा जाएगा। 

मोहन भागवत जी और नरेन्द्र मोदी के जन्म (1950) के पहले अप्रेल 1947 में हिन्दू महासभा के और बाद में भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने लिखकर दिया ‘‘भारत किसी एक मजहब का देश नहीं बनेगा। अल्पसंख्यकों को उनकी आबादी के अनुपात में विधायिका और सरकारी नौकरी में स्थान दिया जाएगा। किसी भी समुदाय की संस्कृति और धर्म से छेड़खानी की अनुमति नहीं होगी।‘‘ दुखद है संविधान में वह शामिल नहीं हो पाया। प्रधानमंत्री और भागवत जी पूर्वज का कहा आज मानेंगे? ग़लत तोहमत लगाते हैं इंदिरा गांधी ने पंथनिरपेक्षता को आपातकाल लगाकर 1977 में जोड़ा। बताते नहीं हैं 1973 में अब सबसे बडे़ मुुकदमे केशवानन्द भारती में सुप्रीम कोर्ट के 13 जजों ने फैसला किया धर्मनिरपेक्षता संविधान का बुनियादी ढांचा है और सरकार और संसद के हर काम को न्यायिक पुनरीक्षण में देखा जा सकता है। इंदिरा गांधी ने एक तरह से सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अनुमोदन ही किया। 

भागवत जी कह सकते थे कि प्रधानमंत्री मोदी मणिपुर में जाएं और शांति बहाल कराएं। सभी पार्टियों को लेकर जाएं। भाजपा पर संघ के नियंत्रण को लेकर भ्रम पैदा किया गया। जेपी नड्डा ने किसके इशारे पर कहा हमें संघ की ज़रूरत नहीं है। अपना काम खुद कर सकते हैं। संघ ने मौन रहकर भ्रम फैलने दिया। कहा जाता रहा ‘मोदी की गारंटी,‘ ‘मोदी है तो मुुमकिन है।‘ ‘मोदी का परिवार।‘ तब भी संघ चुप रहा। कहा गया मनमोहन सिंह ने कहा है कि हिन्दुओं की संपत्ति छीनकर उनको दे दी जाएगी जिनके बहुत बच्चे होते हैं।‘ इस फिकरे पर भी संघ चुप रहा। ‘उन्हें उनके कपड़ों से पहचाना जा सकता है। मुसलमानों को धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जाएगा।‘ तब भाजपा का ग्राफ नीचे गिरकर 240 पर आ गया। हवा भी खिलाफ बह रही है। भाजपा को बचाने मिली जुली कुश्ती ज़रूरी हुई। संघ के मुख पत्र में आर्गनाइज़र में नसीहत की भाषा में कुछ लिखा गया ताकि रिकाॅर्ड पर ही रहे। करेंगे कुछ नहीं। 

ऐसा नहीं है कि संघ की कोई भूमिका नहीं रही। उससे बेहतर कोई अनुशासित, सेवाभावी, सक्रिय, और अपनी इकलौती सोच का अन्य संगठन नहीं है। स्वयंसेवकों ने त्याग किया है। हर क्षेत्र में संस्थाएं खड़ी की हैं। नरेन्द्र मोदी कमज़ोर हैं। यह सोचना एकदम गलत है। उन्हें हर हाल में बहुमत रहेगा। इन्तज़ाम कर ही लिया होगा। मोदी जी अपने दम पर यहां पहुंचे हैं। संघ उनके लिए मंज़िल नहीं, सीढ़ी है। 

प्रतिपक्ष के पास जोश में लड़ने के अलावा विकल्प नहीं है। केजरीवाल और उद्धव पर भाजपा डोरे डाल सकती है। सामूहिक विपक्ष खामखयाली में न बहकर पसीना बहाने और ईडी, सीबीआई, इन्कम टैक्स की रेड कराने के लिए तैयार है। तब ही कुछ हो सकता है। मोहन भागवत जी का सुविचारित आत्मग़ाफिल फलसफाई संदेश और कोई नहीं, नरेन्द्र मोदी की समझ में आ गया होगा कि करना धरना कुछ नहीं है। हम तो एजेंडा सेट करते रहते हैं। बाकी लोग लपकते रहते हैं। हम शिगूफा छेड़ते हैं। लोग गंभीर होकर उस धुएं को पेड़ समझकर पकड़ना चाहते हैं। मुसलमान को दोयम दर्जे़ का नागरिक बनाने का ख्वाब तो गोलवलकर जी के वक्त से ही देखा जा रहा है। गोडसे का मंदिर बनाते हैं। कुर्सी पर बैठने के पहले राजघाट गए। गांधी गा रहे थे ‘ईश्वर अल्लाह तेरे नाम।‘ मोदी ने नहीं सुना। वे सुनते कहां हैं? वे तो बस बोलते हैं। 

चुनाव के इतिहास में कांग्रेस का घोषणा पत्र पढ़ने में नरेन्द्र मोदी से आत्ममुग्ध ग़फ़लत हो गई। ग़लती में कह दिया मुस्लिम लीग का घोषणा पत्र है। वह तो उलटा निकला। युवकों में हर किसी को रोजगार दिया जाएगा। महिलाओं को आर्थिक मदद की जाएगी। रिसर्च की मदद, बेरोजगारी भत्ता न जाने क्या क्या। ठीक पकड़ा होगा मोदी ने कि यह सब राहुल का किया धरा है। इसलिए उसी पर हमला करो। लेकिन लोकतंत्र में जनता भी होती है। उसे पांच किलो प्रतिमाह राशन देकर कब तक मुंह बंद रखेंगे। इंडिया गठबंधन की 234 सीटें अगले चुनावों में राजनीतिक समझ की बुनियाद की अंकगणित में तब्दील होकर बीजगणित में तब्दील हो सकें। तभी भारत का कुछ हो सकता है।

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