अग्नि आलोक
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प्रतिपक्ष पर मोदी को भरोसा नहीं….?

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ओमप्रकाश मेहता

प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी जी के तीसरे कार्यकाल में सरकार व प्रतिपक्ष के बीच बढ़ती दूरी पूरे देश के लिए आज चिंता का विषय बनी हुई है और अब तो यह चिंता और भी इसलिए बढ़ गई है क्योंकि सरकार के नीति निर्माण सम्बंधी मामलों में प्रतिपक्ष से दूरी बनाई जा रही है और हिम्मत करके कोई प्रतिपक्षी दल का प्रतिनिधि बैठक में शामिल हो भी जाता है तो उसे बोलने नही दिया जाता। यह विचार मेरे अपने नही बल्कि प्रतिपक्षी दलों के नेताओं के है। पिछले दिनों नीति आयोग की बैठक में उपस्थित एकमात्र प्रतिपक्षी प्रतिनिधि तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्षा ममता बैनर्जी को जिस तरह उनके विचार प्रकट करने से रोका गया, उनका माईक बंद कर दिया गया, यह घटना आखिर सत्तारूढ़ दल की किस मंशा को उजागर करती है, बाकी प्रतिपक्षी दलों ने इस महत्वपूर्ण बैठक का बहिष्कार किया था।


आज हर छोटे-बड़े राजनीतिक कार्यकर्ता को राजनीति के सही सिद्धांतांे की जानकारी होना चाहिए, जिसका अभाव है। आज सत्तारूढ़ दल अपने आपको देश का सबसे बड़ा भाग्यविधाता मानता है और फिर इस गुरूर में वह अपने दायित्व और राजनीति के नियम सिद्धांत भी भुला देता है, इस तरह उस पर तानाशाही सवार होने लगती है। मोदीजी को अपने तीसरें कार्यकाल में यह सब समझना चाहिए और उन्हें इस तथ्य का भी सदैव ध्यान रखना चाहिए कि उनकी व उनकी सरकार की स्थिति पिछली दो सरकारों जैसी नही रही है, उनकी सरकार अन्य कुछ सहयोगी दलों की बैसाखियों पर टिकी है, इसलिए उन्हें हर कदम और हर बोल सोच-समझकर प्रस्तुत करना चाहिए, क्योंकि इस सरकार के गठन के साथ ही इसके स्थायित्व और इसके भविष्य को लेकर कई भविष्यवाणियां सामने आ चुकी है, इसलिए मोदी जी के इस तीसरे कार्यकाल को यदि ‘अग्निपरीक्षा काल’ कहा जाए तो कतई गलत नही होगा… और उन्हें याद रखना चाहिए कि सरकार की ‘ताली’ भी एक हाथ से नही बजती उसके सफल संचालन के लिए प्रतिपक्ष का भरपूर सहयोग अत्यंत जरूरी है।
इस तथ्य को देश की आजादी के बाद सबसे पहले संविधान के निर्माता डॉ. भीमराव आम्बेडकर ने समझा था और इसीलिए उन्होंने प्रतिपक्ष को महत्व देते हुए उसे संसद या विधानसभा के नेता की बराबरी का दर्जा दिया था और उसे सत्तारूढ़ दल के नेता की बराबरी की शासकीय सुविधाएं भी मुहैया कराने की संविधान में पैरवी की थी। आज हमारे संसदीय मंडलों में इस नियम का पूरी निष्ठा व ईमानदारी से सत्तारूढ़ दलों द्वारा पालन भी किया जा रहा है।
किंतु विगत दिवस नीति आयोग की बैठक में प्रतिपक्ष की एक अहम् नैत्री के साथ जो सलूक किया गया, वह निंदनिय होने के साथ ठीक भी नही है, देश के लगभग सभी प्रतिपक्षी दलों ने आयोग की इस बैठक का बहिष्कार किया था और मोदी सरकार द्वारा प्रतिपक्ष के साथ किए जा रहे सुलूक की निंदा की थी, अकेली तृणमूल कांग्रेस नैत्री ही इस बैठक में शामिल हुई थी और सम्बोधन का साहस किया था, जिसे सत्तारूढ़ दल ने निष्फल कर दिया, क्या किसी भी प्रजातंत्री देश में प्रतिपक्ष से इस तरह का व्यवहार निंदनीय नही है? आज का सत्तारूढ़ दल यह क्यों भूल जाता है कि वह भी करीब पांंच दशकों तक प्रतिपक्ष में रहा, किंतु क्या तत्कालीन सत्तारूढ़ दल ने कभी भी ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया? यही नही आज के बुजुर्गों ने तो नेहरू लोहिया को गले में हाथ डालकर संसद भवन से बाहर आते देखा है, क्या ऐसे उदाहरण या परिदृष्य प्रधानमंत्री मोदी जी पुनः उपस्थित नही कर सकते?
वैसे भी हमारे पथ प्रदर्शक पुरातन कवियों ने कहा है कि- ‘‘निंदक नियरे राखिये, आंगन कुटी छबाय – बिन पानी-साबुन बिना निर्मल करै सुभाय….’’। किंतु आज की सत्ता के अहम् के सामने इस कहावत या कविता की पंक्तियों का कोई महत्व नही है, किंतु यह याद रखना जरूरी है कि भारत के भविष्य के लिए ठीक नही है।

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