अग्नि आलोक
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*मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

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व्यंग्य : राजेन्द्र शर्मा*

इन कश्मीरी पंडितों ने क्या हद्द ही नहीं कर दी! बताइए, मोदी महान की सरकार के आठ साल पूरे होने के जश्न का मजा किरकिरा करने पर तुले हुए हैं। न मौके का ख्याल कर रहे हैं, न माहौल का, बस एक ही बात की जिद पकडक़र बैठे हैं — हमें जम्मू में वापस जाना है। हमें कश्मीर में डर लग रहा है। हमें अभी यहां से निकाला जाए और जम्मू पहुंचाया जाए।

और जिद ही पकडक़र बैठने तक बात रहती, तो फिर भी चल सकता था। आखिर, जब मोदी जी की सरकार ने किसानों का साल भर दिल्ली के बार्डरों पर हठ कर के बैठना बर्दाश्त कर लिया, तो कश्मीरी पंडितों का जिद पकडक़र बैठना ही उसे क्यों बहुत नागवार गुजरता। पर पट्ठे कश्मीरी पंडित तो जुलूस-वुलूस निकालने पर आ गए, धरने-वरने देने लगे। मीडिया के लिए तस्वीरें-वस्वीरें बनाने लगे। चैनलों पर बयान-वयान देने लगे। ‘कश्मीर में सब चंगा सी’5 के मोदीशाही के प्रचार के गुब्बारे में पिन चुभाने लगे। आठ साल में सब खुशहाल के विज्ञापनों के भारत में कश्मीर को टूटी रेखाओं से दिखाने लगे!

पर मोदी जी तो अपनी असीम उदारता में इतना भी बर्दाश्त कर लेते। आखिरकार, कश्मीर से और कश्मीरी पंडितों से उनका विशेष कनेक्शन जो है। अभी कुछ ही हफ्ता पहले तो उन्होंने कश्मीरी पंडितों के 1990 के दशक के पलायन पर गहरा दु:ख जताया था। अग्निहोत्री की कश्मीर फाइल्स के प्रमोशन को अपना सौभाग्य और फिल्म को सच्चा इतिहास बताया था। तब दो-चार हजार कश्मीरी पंडितों की हाय-हाय से मोदी जी विचलित होते या उसे यूं ही हंसी-मजाक में लेते। खैर! विनोद में नहीं भी लेते और इसे अपना विरोध मानते, तब भी मोदी जी उससे नाराज होने वाले नहीं थे। उन्होंने तो बार-बार कहा भी है कि वह तो बहुत चाहते हैं कि विपक्ष मजबूत हो। जिससे विपक्ष को हराने में उनको कुछ मजा भी आए। कमजोर विपक्ष को हराकर जीतना भी कोई जीतना है, लल्लू!

बस मोदी जी इतना चाहते हैं कि विपक्ष जरा जिम्मेदारी से काम करे। ऐसा कुछ नहीं करे, जिससे दुनिया में राष्ट्र का गौरव कम होता है। आठ साल में मोदी ने न खुद ऐसा कुछ किया है और न किसी को करने दिया है, जिससे दुनिया में देश का नाम खराब होता हो। भारत का माथा, न मोदी जी झुकाएंगे और न किसी को झुकाने देंगे। कश्मीरी पंडित करते रहते धरना-प्रदर्शन भी, मोदी जी की बला से। पर उन्होंने तो  मोदी जी की उदारता को कमजोरी समझ लिया और जम्मू के लिए पलायन करने का एलान कर दिया। पलायन, यानी 1990 की दशक की वापसी का एलान। दोबारा पलायन यानी इसका एलान कि 370 के खात्मे का कोई फायदा नहीं। जम्मू-कश्मीर को तोड़ऩे और उसका दर्जा घटाने का कोई फायदा नहीं। डेढ़ साल से ज्यादा पूरे कश्मीर को जेल बनाकर रखने का, सारे कश्मीरी नेताओं को जेल में बंद या घर पर नजरबंद रखने का, कोई फायदा नहीं। बंदूक से जवाब के छप्पन इंची छाती के एलान का कोई फायदा नहीं। उल्टे ‘आठ साल चले, बत्तीस साल पीछे’ का एलान और वह भी आठ साल वाले बर्थ डे के मौके पर। इतनी उद्दंडता कौन सम्राट बर्दाश्त करता है जी!

फिर भी हमें तो लगता है और लगता क्या है, हमें पक्का यकीन है कि अगर यह सिर्फ मोदी जी के प्रति नाशुक्रेपन का मामला होता या आठवीं सालगिरह के जश्न के रंग में भंग डालने भर का मामला होता या अपनी सरकार की बात काटने का बल्कि उसे झूठी कर देने का भी मामला होता, तब भी मोदी ने कश्मीरी पंडितों को माफ कर दिया होता। लेकिन, यह कश्मीरी पंडितों और मोदी जी की सरकार के बीच का ही मामला होता तब तो। कश्मीरी पंडितों और मोदी जी की सरकार के बीच के ही मामले की बात छोडि़ए, यह तो कश्मीरी पंडितों, मोदी जी की सरकार और आतंकवादियों-अलगाववादियों के बीच का ही मामला भी नहीं है। यह तो पाकिस्तान का मामला है। पाकिस्तान की हार-जीत का मामला है। पंडित जम्मू वापस यानी पाकिस्तान की जीत। और जो पाकिस्तान की हार-जीत का मामला है, वह सबसे पहले और सबसे बढक़र भारत की शान का मामला है। भारत का सिर झुकाने की इजाजत तो मोदी जी खुद अपने आप को भी नहीं देते, फिर कश्मीरी पंडितों की तो बात ही कहां उठती है। वो तो वैसे भी कहलाने को ही पंडित हैं, वर्ना हैं तो कश्मीरी ही। और संघ की शाखाओं में कश्मीर को भारत का सिर भले ही बताया जाता हो, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि कश्मीरियों को सिर चढ़ाया जाएगा, फिर चाहे वे पंडित ही क्यों न हों? पंडितों का नाम लेकर विधर्मियों को उनकी जगह बताना और बात है, पंडितों को सिर चढ़ाना और बात है। और वैसे भी मोदी जी ने सिर तो सिर्फ भारत माता का ऊंचा रखने की गारंटी दी है। रुपए के मूल्य की तरह, भारतवासियों का सिर थोड़ा-बहुत नीचा भी हो, तो भी चलेगा।

सो कश्मीरी पंडितों को मोदी जी इसकी इजाजत हर्गिज नहीं दे सकते हैं कि वे दोबारा जम्मू पलायन कर जाएं यानी पाकिस्तान को जिता दें और भारत का सिर झुका दें। बेशक, कश्मीरी पंडितों से मोदी जी को और मोदी जी ही क्यों, कश्मीर फाइल्स देखकर बदला लेने के नारे लगाने वाले भारत भर के राष्ट्रवादी योद्धाओं को भी, ऐसी उम्मीद नहीं थी।

देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे। और देश का सिर ऊंचा रखना भूलकर, युद्ध के मोर्चे से भागकर बस अपनी और अपने परिवारों की तुच्छ जानें बचाएंगे , जबकि सीमा पर सैनिक उनकी रक्षा के लिए गोली खाएंगे। खैर! मोदी जी पाकिस्तान को जीतने नहीं देंगे। चाहे कश्मीरी पंडितों के कैम्पों को जेल बनाना पड़े, इस बार पंडितों का पलायन नहीं होने देंगे। और हाँ!  कश्मीरी पंडितों को अगर भारत के कश्मीर में इतना असुरक्षित लग रहा है, तो वे पाकिस्तान या अफगानिस्तान जा सकते हैं! कश्मीरी पंडितों, भारत छोड़ो!

*(इस व्यंग्य के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)*

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