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दो अध्यक्षों के चुनाव: बुरे फंसे मोदी शाह 

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 –सुसंस्कृति परिहार 

 इन दिनों बड़े धर्म संकट में फंसी हुई है मोदी जी की तीसरी सरकार। एक तरफ दलदल है तो दूसरी तरफ़ खाई है। तेलगूदेशम से गठबंधन का खामियाजा उसे  लोकसभा अध्यक्ष  ना बनाने पर भुगतना होगा।जिसके लिए उनकी साली जी एन टी रामाराव की पुत्री डी पुरंदेश्वरी का नाम सुर्खियों में है।वे भाजपा से सांसद हैं। फिर भी यदि आपत्ति है। उन्हें स्पीकर नहीं बनाते हैं तो निश्चित है वे सरकार को अंगूठा दिखा देंगे। 

समझौता करने के हालात तो दूर दूर नज़र नहीं आ रहे हैं। मोदी जी में दिखाई देने वाला हल्का सा परिवर्तन मात्र दिखावा है यह प्रोटेम स्पीकर के नाम पर उठ रहे सवाल में साफ देखा जा सकता है। वे मात्र दो दिनों के लिए कांग्रेस के आठ बार के वरिष्ठ  दलित सांसद को स्वीकार नहीं कर पाए जो सिवाय शपथग्रहण कराने का दायित्व संभालता है।यह संवैधानिक परम्परा रही है जिसे मोदी तोड़कर अपने सांसद को दायित्व दे रहे हैं ।भृतहरि महताब के प्रोटेम स्पीकर बनने पर विवाद हो गया है, क्योंकि विपक्ष का आरोप है कि महताब सात बार के सासंद हैं, जबकि कोडिकुनिल सुरेश आठ बार के सांसद रहे हैं। ऐसे में सुरेश को प्रोटेम स्पीकर पद मिलना चाहिए था।ऐसे हालात में यह विचारणीय है कि वे तेलुगु देशम के मतानुसार वो कैसे   लोकसभाध्यक्ष बनने देंगे जिसका महत्व राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति के बाद होता है जबकि चौथे पायदान पर पीएम होते हैं।

सच तो ये है उन्हें ओम बिड़ला की तरह हांजी हांजी कहने वाला स्पीकर चाहिए जो भारतीय संसदीय इतिहास में सबसे पतित स्पीकर माने जाते हैं। मोदी ने जिस तरह पूर्ववत केबिनेट में कोई तब्दीली नहीं की वैसा ही वे बिड़ला को ही पुनः चाहते हैं और इसकी तैयारी में वे लगे हुए हैं। सवाल तो यह है कि जब तेलुगु देशम रुष्ट हो जाता है तो वे अपना बहुमत कैसे साबित करेंगे? जानकार बताते हैं कि उन्होंने छोटे सहयोगी दलों को जिस तरह केबिनेट और राज्य मंत्री बनाया है वे अपने दल से अलग थलग करने और इंडिया गठबंधन के लोगों को खरीद कर बहुमत हासिल कर सकते हैं।मोदी है तो मुमकिन है।लगता है इस बार यह दूर की कौड़ी ही साबित होगा।अब मोदी का कद पहले जैसा नहीं रहा। यहां संघ दखल कर सकता है क्योंकि वह हर हाल में सरकार बचाने की कोशिश करेगा।भले आगे प्रधानमंत्री बदले।

दूसरी कठिन अग्निपरीक्षा संघ के साथ होनी है।वह है भाजपा के पार्टी अध्यक्ष के चयन का। जयप्रकाश नड्डा तो अब केन्द्रीय मंत्री बन गए हैं।देर सबेर  पद से हटना ही पड़ेगा जिन्होंने साफ़ तौर पर कहा था कि भाजपा अब आत्मनिर्भर हो गई है उसे संघ की कोई आवश्यकता नहीं रही। ये बात संघ प्रमुख को अखर गई। परिणाम जो आए उसमें भाजपा दो बैशाखियों पर आ गई। आत्मनिर्भरता का गुमान जाता रहा।ऐसी स्थिति में संघ भाजपा पार्टी अध्यक्ष पद पर संघ के किसी ऐसे व्यक्ति को बिठाना चाहेगा जो गुजरात लाबी को मटियामेट कर सके। यह मोदी शाह भी समझ रहे हैं इसलिए उनके होश फाख्ता है। इधर नितिन गडकरी के केंद्रीय मंत्री पद से त्यागपत्र की खबरें आ रही हैं इसका मतलब है संभवत: नितिन गडकरी को भाजपा अध्यक्ष बनाने की तैयारी है।यदि वे प्रधानमंत्री की दौड़ में जाते हैं तो फिर संजय जोशी अध्यक्ष पद के दावेदार होंगे।विदित हो मोदी ने चुनाव परिणाम आने के बाद भाजपा संसदीय दल की बैठक नहीं बुलाई जो हमेशा बुलाई जाती रही है।इससे संघ ख़फ़ा है क्योंकि इस बार प्रधानमंत्री बदलने की पूरी तैयारी संघ कर चुका था। सीधे एनडीए की बैठक हुई और मोदी के नाम की मुहर लग गई।आंख बंद कर राष्ट्रपति ने भी उन्हें आमंत्रित कर लिया तथा दही शक्कर खिलाकर शुभकामनाएं दीं। इसलिए संघ अब अध्यक्ष पद पर अपनी दावेदारी जताने प्रतिबद्ध दिख रहा है। नितिन गडकरी का लालकृष्ण अडवाणी और मुरली मनोहर जोशी से मिलना भी इसी कड़ी का हिस्सा है।

दोनों अध्यक्षों के चुनाव को लेकर भाजपा बुरी तरह फंसी हुई है।यदि मोदी अपनी अकड़ पर कायम रहते हैं तो यह सरकार फिर गर्त में चली जाएगी जहां  से वापसी आसान नहीं होगी इसलिए मोदी पर झुकने का दबाव संघ का भी रहेगा। संभावित है तब सरकार को विपक्ष और संघ के दबाव के साथ ही सरकार के सहयोगी दलों की बात भी सुनना पड़े।जनता भी मोदी शाह की हेकड़ी से दस साल से परेशान है। यदि ऐसा नहीं होता है, तिकड़मी दौर चलता है तो उसकी उम्र ज़्यादा नहीं होगी ।।देश को  मध्यावधि चुनाव झेलना पड़ सकता है। इंडिया गठबंधन पहले ही विपक्ष में बैठने का ऐलान कर चुका है। जोड़ तोड़ की सरकार की सरकार शायद उसे पसंद नहीं।

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