अग्नि आलोक
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अफ़सर की कलम से…..मूंज की सिरकियां

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खेतों की तरफ जाती स्त्रियाँ होड़ में हैँकि वो अपनी सहेली से ज्यादा मूंज और कुश की सिरकियां इक्कट्ठी कर लें….
और हो भी क्यों ना यही तो वो तोहफ़े हैँ जो उन्हें कुदरत ने दियें हैँसाथ में दिया है वो हुनर जिससे वो चटाई, टोकरियां और पंखे बनाती हैँ..
और बनाती हैँ कमण्डल जिसमे रखा पानी एक सुगन्धित अमृत जैसा होता है…
इन्हीं कलाकृतियों के साथ साबित होती है उनकी अमीरी..वो तेज धूप में पगडंडियों पर चलकरटीलों पर चढ़ती हैँ..

सरकंडो से सिरकियां निकालती औरतेंपल्लू से चेहरे के पसीने को पोछती हुईं बहुत खूबसूरत लगती हैँउनके बच्चे मूंज के खिले सफ़ेद चमकते फूलों को तोडना चाहते हैँ… माँ उन्हें रोकती है और दो चार सीकें फूलों सहित निकाल कर उन्हें पकड़ा देती हैँ..बच्चे ये दौलत पाकर अमीर बन जाते हैँ…और इन्हीं फूलों की सोंधी ख़ुशबू लेकर घर जाते हैँ
फिर शुरू होता हैइस मूंज को सुखाकर सिरकियां निकालना, और कुश की चटाइयाँ बनाना…
लाल, हरे रंग से रंगती हैँ सीकें और कुछ सिरकियां छोड़ देती हैँ गैर रंगी..फिर बुनती हैँ टोकरियां सुन्दर सुन्दर डिज़ाइन बनाकर…
और साथ में बुनती हैँ कुछ खूबसूरत से ख़्वाब अपने लिए अपने बच्चों के लिए….
सजाबटी सामान और कलाकृतियाँ बनाकर अपना घर सजाती हैँ..शेष बची हुई चीजें हाट ले जाती हैँ…ताकि पूरे कर सकें वो सपने जो टोकरियां और चटाइयाँ बुनते हुए देखे थे…..
लेखक –पूनम भास्कर पाखी

पीसीएस अधिकारी

डिप्टी कलेक्टर सीतापुर यूपी

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