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*एमएसपी गारेंटी कानुन का अभिप्राय एमएसपी से कम पर फसल बिक्री को रोकना* 

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डा. वीरेन्द्र सिह लाठर

अन्तरराष्ट्रीय संस्थानो और साहुकारो की कम्पनीयो से वित्त पोषित अर्थशास्त्री और सरकारी पैरोकार एमएसपी गारेंटी कानुन को आर्थिक तौर पर विनाशकारी और असम्भव बताकर, देश मे जानबूझकर भ्रम फैला रहे कि एमएसपी गारेंटी कानुन लागू करने पर सरकार को 17 लाख करोड रूपये वार्षिक से ज्यादा खर्च करने होगे। क्योकि तब सरकार एमएसपी वाली 24 फसलो के कुल उत्पादन को खरीदने के लिए कानुनी तौर पर बाध्य हो जाएगी। इन किसान विरोधी नीतिकारो को समझना चाहिए कि एमएसपी गारेटी कानुन का अभिप्राय, सरकार द्वारा पूरी कृषि उपज खरीदना नही, बल्कि मंडीयो मे एमएसपी दाम से कम पर होने वाली फसल बिक्री को रोकना है। सभी फसलों पर न्यूनतम समर्थन मुल्य (एमएसपी) की गारंटी देने से कृषि आय को बढ़ावा मिलेगा, उपभोग मांग बढ़ेगी और फसल विविधीकरण मे सहायक बनेगा। जो देश मे टिकाऊ खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और किसानो को बिचौलिए साहुकारो के शोषण से बचाने के लिए सुरक्षा कवच साबित होगा।

देश मे प्रचलित कपास की सरकारी खरीद के व्यावहारिक माडल के आधार पर, सरकार मंडी मे एमएसपी से कम दाम होने पर ही खरीद करेगी जो वार्षिक कुल कृषि उत्पादन का एक प्रतिशत से भी कम रहेगा। क्रिसिल मार्केट इंटेलिजेंस एंड एनालिटिक्स के अनुसार सरकार के लिए ऐसी गारंटी की “वास्तविक लागत” कृषि विपणन वर्ष 2023 में लगभग 21,000 करोड़ रुपये बनती थी। जो वर्ष-2025 मे घोषित एमएसपी पर 30,000 करोड़ रुपये से कम ही रहेगी। जिसके लिए सरकार को लगभग ₹6 लाख करोड़ की कार्यशील पूंजी की आवश्यकता होगी। लेकिन, सरकार के लिए वास्तविक लागत एमएसपी और मंडी कीमतों के बीच का अंतर होगी, जो वित्तीय वर्ष 2023 के लिए मात्र ₹21,000 करोड़ बनती है।” 

उल्लेखनीय है कि देश मे धान को छोडकर, किसी भी फसल उपज का सरप्लस नही है। वर्ष 2023- 24 मे लगभग 1.31 लाख करोड रूपये का तिलहन और 6.64 मिलियन मीट्रिक टन दलहन का आयात हुआ। गेंहू के रिकार्ड उत्पादन के झूठे दावो और निर्यात प्रतिबंध के बावजुद, वर्ष 2023 और 2024 मे, सरकार 37 मिलियन मीट्रिक टन के लक्ष्य के मुकाबले क्रमश 26.2 और 26.6 मिलियन मीट्रिक टन खरीद कर सकी। 

प्रचलित सामान्य धारणा और सरकारी दावो के विपरीत, सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए हो रही अनाज की सरकारी खरीद किसानो के लिए नुकसानदेह है। क्योकि सी-2 कुल लागत की बजाए ए-2+ एफएल लागत पर घोषित एमएसपी पर सरकारी खरीद करके सरकार भारतीय किसानो का 72,000 करोड रूपये वार्षिक से ज्यादा का आर्थिक नुक्सान कर रही है। 

मंडीयो मे किसानो की गेंहू आदि अनाज फसल आने से कुछ दिन पहले, सरकार खुले बाजार मे महंगाई नियन्त्रण करने के तथाकथित नाम पर ओपन मार्केट सेल स्कीम के तहत व्यापारियो और उद्योग को लागत और बाजार भाव से कम पर लाखो मीट्रिक टन गेंहू-धान आबंटन करके खुले बाज़ार मे बनावटी मंदी बनाती है जिससे किसानो को भारी आर्थिक नुक्सान होता है। जिसे अन्तरराष्ट्रीय व्यापार मे जानबूझकर की गई डंपिंग कहते है। भारत मे वर्षो से लागत मुल्य और बाजार भाव से कम पर अनाज की हो रही डंपिंग को अनुचित मूल्य निर्धारण करने की पक्षपातपूर्ण सरकारी रणनीति, किसानो के खिलाफ खुला षडयंत्र है। जो भारतीय कृषि उत्पादको की व्यवहार्यता को भी खतरे में डाल रही है।

भारत सरकार के प्रेस सूचना ब्यूरो द्वारा जारी 11 फरवरी 2025 की विज्ञप्ति के अनुसार ओपन मार्केट सेल स्कीम के अन्तर्गत सरकार ने 550 रूपये क़ीमत कम करके 2250 रूपये प्रति किवंटल की दर से 12 लाख मीट्रिक टन चावल राज्य सरकारो, सार्वजनिक कार्पोरेशन आदि के लिए और 24 लाख मीट्रिक टन चावल इथेनॉल डिस्टिलरीज को बिक्री के लिए आबंटित किया है। इसी तरह गेंहू की बिक्री 900 प्रति किवंटल लागत मुल्य और बाजार भाव से कम करके 2325 रूपये प्रति किवंटल रिजर्व मूल्य निर्धारित की गई। सरकार इन पक्षपातपूर्ण नीति से बाजार मे कृत्रिम मंदी बनाकर, किसानो को भारी आर्थिक नुक्सान पहुँचा रही है।

इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल रिलेशंस- ऑर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कॉपरेशन एंड डेवलमेंट का अध्ययन बताता है कि खेती की कीमतों को कृत्रिम रूप से कम रखने की पक्षपाती सरकारी नीतियों के कारण कम कृषि कीमतों मिलने से भारतीय किसानों को अकेले वर्ष- 2022 में 14 लाख करोड़ रुपये और 2000-2017 के दौरान 2017 की कीमतों पर 45 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। जिस के कारण भारतीय किसान गरीब और कर्जबन्द है, और आत्महत्या को मजबूर है।

देश मे जब फसल उत्पादन घरेलू मांग के मुकाबले कम है, तब मंडीयो मे समर्थन मूल्य से कम पर फसल बिकने के लिए बिचौलिए साहुकारो द्वारा जानबूझकर बनाई गई कृत्रिम मंदी जिम्मेवार है। भारतीय रिजर्व बैंक के आर्थिक एवं नीति अनुसंधान विभाग द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार फलों और आवश्यक सब्जियों के उपभोक्ता बिक्री दाम मे से किसानों को मात्र 30 प्रतिशत हिस्सा मिलता है और बिचौलिए 70 प्रतिशत लाभ हडप जाते है। रिजर्व बैंक की रिपोर्ट-2025 मे बताया गया कि रबी फसलो के उपभोक्ता बिक्री दाम मे से किसानो को मात्र 40-67 प्रतिशत हिस्सा ही मिलता है। किसानो के खिलाफ वर्षो से हो रहे इस शोषण को रोकने की जिम्मेवारी सरकार की है, जो एमएसपी गारन्टी कानुन से ही सम्भव हो सकता है। 

पंजाब-हरियाणा सीमा पर फरवरी से आंदोलन कर रहे किसानों की मांगों को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति ने नवंबर 2024 मे न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को  कानूनी  मान्यता देने की सिफारिश की है। इसी तरह संसदीय समिति ने दिसमबर 2024 मे कहा कि किसानों को कानूनी गारंटी के रूप में एमएसपी लागू करना न केवल किसानों की आजीविका की सुरक्षा के लिए बल्कि ग्रामीण आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने के लिए भी आवश्यक है।संसदीय समिति ने सरकार से किसानों को समर्थन देने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी एमएसपी लागू करने का आग्रह किया।

सरकार ने पिछले पाँच दशक से खाद्यान्न मे उपभोक्ता को खुले बाजार के शोषण से बचाने के लिए खाद्य सुरक्षा नीति के अन्तर्गत सार्वजनिक वितरण प्रणाली अपनाई, लेकिन पक्षपातपूर्ण नीति अपनाते हुए किसानो को बिचौलिए साहुकारो के शोषण से बचाने के लिए एमएसपी को कानुन बनाकर कभी कृषि उपज मंडीयो मे लागू नही किया। जिसके कारण पिछले पांच दशको से किसान बिचौलिए साहुकारो और सरकार के शोषण से ग्रस्त है, और कर्जबन्द होकर आत्महत्याएं करने को मजबूर हो रहे हैं। अगर समय रहते, सरकार ने इन पक्षपातपूर्ण किसान विरोधी सरकारी नीतियो मे सुधार नही किये, तो आने वाले समय मे राष्ट्रिय खाद्य सुरक्षा को गम्भीर खतरे का सामना पडेगा। 

डा. वीरेन्द्र सिह लाठर, पूर्व प्रधान वैज्ञानिक, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नयी दिल्ली म: 91 9416801607 drvslather@gmail.com

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