‘यजमान हम यह क्या सुन रहे हैं?’ पंडित जी सुमेर के घर में पूजा कराने के बाद बोले- ‘आप अपने हृदय की शल्य क्रिया करा रहे हैं। इतने बड़े ऑपरेशन के लिए आपने मुहूर्त का शोधन क्यों नहीं कराया?’
‘जी, मुहूर्त तो निकलवाया है परंतु नए तरीके से।’ सुमेर बोला।
‘कोई नया विद्वान ढूंढ लिया है क्या?’ पंडित जी अचकचाए।
‘नहीं ! आप गलत समझ रहे हैं।’ सुमेर ने बात को स्पष्ट किया- ‘मुहूर्त अर्थात किसी कार्य हेतु निश्चित किया गया विशिष्ट समय। ऑपरेशन का समय हमने भलीभाँति सोच विचार कर तय किया है।’
‘कैसे?’ पंडित जी कुछ समझे नहीं।
‘जब पता चल गया कि ऑपरेशन अपरिहार्य है तब हमने इसे जितनी जल्दी संभव हो करा लेने का निश्चय कर लिया।’ सुमेर बताने लगा- ‘हमने सही सर्जन की खोज शुरू की। सभी ऐंगल से सोच-विचारकर शॉर्ट-लिस्ट किए गए तीन में से एक नाम को फाइनल कर दिया। यह सर्जन दो अस्पतालों में सर्जरी करते हैं। हमने अपनी हैसियत और जरूरत के मुताबिक सर्जन की राय का सम्मान करते हुए अस्पताल भी चुन लिया। अब मरीज की शारीरिक और मानसिक अवस्था का अध्ययन किया जाएगा। ब्लड प्रेशर, मधुमेह, क्रिएटिनिन, फेफड़ों की हालत, शरीर में मिनरल और विटामिन जैसे तत्वों की परीक्षा की जाएगी। इस मेजर सर्जरी को बर्दाश्त करने की मरीज की क्षमता का सभी ऐंगल से परीक्षण कर सर्जन की उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए शल्य-क्रिया की तारीख और समय तय कर दिया जाएगा। किसी सर्जरी के लिए इससे बेहतर मुहूर्त शोधन और कैसे हो सकता है?’ सुमेर ने अपनी बात को यूँ पूरा किया- ‘जब तकनीकी रूप से इतना कुछ संभव नहीं था तब लोग अन्य विकल्पों का सहारा लिया करते थे। पारंपरिक मुहूर्त निकालने की प्रक्रिया भी उनमें से एक है। क्या आपको अभी भी लगता है कि हमने मुहूर्त नहीं निकलाया?’
‘आप बिलकुल उचित तरीके से काम कर रहे हैं।’ पंडित जी ने आशीर्वाद दिया- ‘भगवान आपको शीघ्र ही नीरोग करें।’
,रमेश रंजन त्रिपाठी,
सुप्रसिद्ध कहानी लेखक
इंदौर, संपर्क-94253 17788
संकलन-निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद, उप्र,संपर्क-9910629632