अगर आपको हम कहें कि चार साल से ज्यादा समय से एक व्यक्ति ने अन्न का एक दाना नहीं खाया। पानी भी दिन में एक बार और वो भी 100 मिलीमीटर के आसपास। तो आप यकीन नहीं करेंगे, पर ये सच है। इसे नर्मदा जल का चमत्कार कहा जा रहा है। आइए विस्तार से बताते हैंयह कहानी नर्मदा जल और आध्यात्मिक साधना की अद्भुत शक्ति को दर्शाती है। समर्थ भैयाजी सरकार का अन्न-त्याग और केवल नर्मदा जल पर निर्भर रहकर चार सालों तक यात्रा करना आश्चर्यजनक है। उनकी नर्मदा परिक्रमा और पर्यावरण संरक्षण के प्रति समर्पण प्रेरणादायक है। डॉक्टरों और वैज्ञानिकों की जांच भी उनकी ऊर्जा का रहस्य नहीं सुलझा सकी, जिससे यह घटना और रोचक बन जाती है। यह सिर्फ एक आध्यात्मिक तप नहीं, बल्कि प्रकृति और जल के महत्व को समझाने का संदेश भी है।

नर्मदा की तीसरी बार परिक्रमा कर रहे दादा गुरु यानी समर्थ भैयाजी सरकार वो शख्स हैं जिन्होंने एक प्रण लेकर अन्न त्याग दिया। 17 अक्तूबर 2020 से उन्होंने अन्न का एक दाना नहीं चखा। वे हर साल कार्तिक पूर्णिमा से नर्मदा की यात्रा शुरू करते हैं और लगभग 200 दिनों तक रोज 30-35 किमी की पैदल यात्रा करते हैं। आहार के नाम पर एक गिलास नर्मदा का पानी ग्रहण करते हैं। इसके अलावा कुछ नहीं। फिर भी वो तंदरुस्त हैं। इतना ही नहीं इन चार सालों में उन्होंने तीन बार रक्तदान भी किया है। रक्तदान करने के लिए शरीर का जितना स्वस्थ होना चाहिए, वे उतने स्वस्थ हैं। दादागुरु के इस महान तप से वैज्ञानिक और डॉक्टर भी हैरान हैं। सरकार की ओर से डॉक्टरों की टीम ने सात दिनों तक उनकी दिनचर्या पर नजर रखी, तमाम जांचें की, पर वे भी उनकी ऊर्जा का पता नहीं लगा सके। अब जल्दी ही उन पर शोध पत्र जारी किया जाएगा।
तीसरी बार 3300 किमी की यात्रा पर निकले
दादा गुरु ने इस बार ओंकारेश्वर के गौ मुखी तट से नर्मदा परिक्रमा की शुरुआत 15 नवंबर 2024 से की है। वे तीसरी बार 3300 किमी की पदयात्रा कर रहे हैं। दादा गुरु कहते हैं कि हमारे पास जो शक्तियां हैं, जो नदियों के रूप में है, उनके जल पर केन्द्रीय होकर जिया जाए, प्रकृति पर केन्द्रीय जीवन जिया जाए। इनका जल, इनकी वायु ही हमारे लिए आहार का काम करती है। ये वो असाधारण नदियों का जल है, जिनके सरंक्षण की जरूरत है। उनके महत्व का समझाने के लिए और पर्यावरण की रक्षा के लिए मां नर्मदा की परिक्रमा कर रहे हैं। बताया जाता है कि वे लंबे समय से नर्मदा के संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं, पर जब जागरूकता नहीं आई तो उन्होंने ध्यान आकर्षण के लिए ऐसा काम करने की ठानी, पर इसे मां नर्मदा का चमत्कार ही कहेंगे कि चार साल सिर्फ नर्मदा जल ही उनकी ऊर्जा का स्रोत बना हुआ है।

रोजाना 25 से 30 किलोमीटर की यात्रा तय कर रहा दादागुरु का जत्था
दादा गुरु के साथ रहे निलेश रावल ने अमर उजाला को बताया कि यात्रा जत्था ओंकारेश्वर से नर्मदा परिक्रमा की शुरुआत के बाद से प्रतिदिन करीब 25 से 30 किमी प्रतिदिन पैदल यात्रा करता है। कभी-कभी यात्रा 40 किमी की भी हो जाती है। दादा गुरु के जत्थे में करीब एक हजार अनुयायी उनके साथ पैदल यात्रा कर रहे हैं। यात्रा के पहले प्रतिदिन सुबह दादा गुरु के सानिध्य में मां नर्मदा की महाआरती का भी आयोजन किया जाता है। इसके बाद सुबह करीब आठ से साढ़े आठ बजे यात्रा शुरू हो जाती है, जो करीब दस से 15 किमी यात्रा होने के बाद दोपहर एक बजे पड़ाव होता है। एक घंटे के पड़ाव के दौरान यात्रा में शामिल अनुयायी भोजन प्रसादी ग्रहण करते हैं और दोपहर दो बजे दूसरे पड़ाव की यात्रा सूर्यास्त के पहले तक जारी रहती है। दूसरे पड़ाव में भी 10 से 15 किमी की यात्रा होती है। दूसरे पड़ाव के बाद रात के समय अनुयायीयो के भोजन प्रसादी के बाद दादागुरू के संवाद होते हैं जिसका अनुयायी और धर्मप्रेमी जनता लाभ लेती है।

पूरे दिनभर यात्रा के बाद रात्रि विश्राम के समय लेते हैं एक गिलास मां नर्मदा का जल
दादा गुरु दिनभर यात्रा करते हैं। यात्रा के दौरान वह शुद्ध वायु के अलावा कुछ भी ग्रहण नहीं करते हैं। दिनभर की यात्रा के बाद दूसरे पड़ाव रात्रि शयन के पहले दादागुरु भोजन के रूप में मां नर्मदा का एक गिलास जल लेते हैं। इसके अलावा वह कुछ भी ग्रहण नहीं करते हैं। निलेश रावल बताते हैं कि मई माह में भी, जब गर्मी चरम पर होती है, तभी भी दादागुरु 30-35 किमी की पैदल यात्रा करते हैं और एक गिलास पानी ही लेते आ रहे हैं।
डॉक्टरों और वैज्ञानिकों की टीम भी कर चुकी जांच
दादा गुरु ने 17 अक्टूबर 2020 से यह महाव्रत शुरू किया था। करीब चार सालों से दादागुरु मां नर्मदा की परिक्रमा कर रहे हैं। इस दौरान दादा गुरु ने अन्न, भोजन, और फलाहार सब त्याग दिया है। चार सालों में उनकी ये लगातार चौथी बार मां नर्मदा की परिक्रमा है। दादा गुरु नर्मदा मिशन के ज़रिए नर्मदा की अविरल धारा के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। दादा गुरु के इस तप को देखकर वैज्ञानिक और डॉक्टर भी हैरान हैं। मेडिकल काउंसिल और कई अस्पतालों के डॉक्टरों की टीम ने उनकी जांच भी की। सात दिनों तक नियमित जांच की गई। उनके द्वारा लिया जाने वाले जल की जांच की गई। हैरानी की बात है कि टीम भी इस बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं बता सकी कि ये कैसे संभव है। हालांकि उन पर जल्द ही शोध पत्र जारी किया जाएगा।