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पैदा हो रहे हैं बीमार कानून,ध्यान दिए जाने की जरूरत

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सनत जैन

उत्तराखंड की सरकार ने दो माह पहले समान नागरिक संहिता (यूसीसी) का कानून तैयार किया है। इसको लेकर लंबे समय तक बहस चली। तरह-तरह के सुझाव लिए गए। देश में उत्तराखंड पहली सरकार बनी, जिसने समान नागरिक संहिता का कानून लागू किया। इस कानून को लागू हुए 2 महीने भी नहीं हुए हैं, इसमें बदलाव करने की मांग होने लगी है। कानून को लेकर उत्तराखंड की राज्य सरकार के खिलाफ नागरिकों तथा सरकारी कर्मचारियों ने विरोध शुरू कर दिया है। कई ऐसी परेशानियां खड़ी हो गई हैं, जिसके कारण पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन ही खतरे में पड़ गया है। नौकरी पर संकट खड़ा हो गया है। समान नागरिक सहायता कानून लागू होने के बाद उत्तराखंड के नागरिकों को कई परेशानियों से गुजरना पड़ रहा है।

व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन पर भी इसका बड़ी तेजी के साथ असर पड़ रहा है। इसका निराकरण वर्तमान कानूनो में नहीं हो पा रहा है। सरकार को लोगों की परेशानी अब समझ में आ रही है। अतः दो माह पहले बने कानून में संशोधन की तैयारी शुरू हो गई है। उत्तराखंड के लाखों सरकारी कर्मचारी इस कानून से हैरान और परेशान हैं। सभी कर्मचारियों के लिए शादी का रजिस्ट्रेशन पोर्टल पर करवाना अनिवार्य है। इसमें कर्मचारियों को कई तरह से परेशानियां आ रही हैं। जिसके कारण कर्मचारी संगठनों द्वारा कड़ा विरोध दर्ज कराते हुए संशोधन की मांग की जा रही है। सरकारी कर्मचारियों के अलावा लाखों अन्य लोग भी हैं, जिन्हें भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। सरकारी कर्मचारियों के विरोध को देखते हुए उत्तराखंड की सरकार ने एक हाई पावर कमेटी का गठन कर दिया है। जो जल्द ही संशोधन प्रस्तावों पर विचार करेगी। उत्तराखंड के मुख्य सचिव द्वारा जारी आदेश के अनुसार सभी सरकारी कर्मचारियों को विवाह रजिस्ट्रेशन पोर्टल पर कराना है। निश्चित समय सीमा पर पोर्टल पर अपलोड नहीं करने वाले कर्मचारी और अधिकारियों के वेतन रोकने के आदेश शासन स्तर पर दिए गए हैं। समान नागरिक संहिता के प्रावधान के अनुसार विवाह का पंजीकरण, तलाक विच्छेदन, लिव इन रिलेशन इत्यादि की जानकारी पोर्टल पर सभी लोगों को अपलोड करना है। इसके लिए जो सिस्टम तैयार किया गया है। वह आधा अधूरा होने से लोग परेशान हैं।


समान नागरिक संहिता कानून के जिन तीन प्रावधान को लेकर सबसे ज्यादा विरोध हो रहा है। उसमें समलैंगिक विवाह कानून, विदेशी नागरिक से शादी, लिव इन रिलेशन, विवाह के समय नाबालिग और अब बालिग हैं। ऐसे मामलों में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अंतरजातीय विवाह के पंजीकरण में तरह-तरह की समस्याएं आ रही हैं। जिसके कारण उत्तराखंड में इस कानून का विरोध सभी वर्गों में हो रहा है। सरकार जिस तरह से निजी मामलों में कानून बनाकर पारिवारिक संबंधों को लेकर हस्तक्षेप कर रही है, उससे सभी वर्गों के लोगों की नाराजी सरकार के प्रति बढ़ रही है। उत्तराखंड में नेपाल और उत्तराखंड के युवक और युवतियों की बड़ी संख्या में शादी होती है। उत्तराखंड में इसे सामाजिक स्वीकार्यता प्राप्त है।

नेपाल की नागरिकता होने के कारण विवाह पंजीकरण में आधार कार्ड की अनिवार्यता भारी पड़ रही है। उत्तराखंड अनुसूचित जनजाति के विवाह पंजीकरण में भी कई तरह की समस्याएं आ रही हैं। उत्तराखंड में सभी सरकारी कर्मचारी, अधिवक्ता, राजनीतिक एवं सामाजिक संगठन, समान नागरिक संहिता के विरोध में एकजुट हो रहे हैं। इसके कारण सरकार को 2 माह पहले बने इस कानून में संशोधन करने के लिए एक हाई पावर कमेटी का गठन करना पड़ा है। इस कानून का असर गैर मुसलमानों पर ज्यादा पड़ रहा है। सार्वजनिक रूप से सरकार यह बात स्वीकार नहीं कर रही है, लेकिन जिस तरह से विरोध हो रहे हैं, उसको देखते हुए सरकार एक बार फिर समान नागरिक संहिता में संशोधन की तैयारी कर रही है। जिस जल्दबाजी में कानूनो को तैयार किया जाता है। कानून को तैयार करते समय बड़े-बड़े दावे सरकार द्वारा किए जाते हैं। सरकारें जिस तरह के कानून बना रही हैं। उसमें निजता का उल्लंघन हो रहा है। मौलिक अधिकारों का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सरकारों द्वारा, कानून बनाकर नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन किया जा रहा है। जिसके परिणाम स्वरूप नागरिकों और सरकार के बीच में टकराहट बढ़ने लगी है। न्यायालय में भी मुकदमो की संख्या बढ़ने लगी है।

जब बच्चा पैदा होता है, वह सारी ऊर्जा और संभावनाओं को लेकर पैदा होता है। बच्चों में बीमारी की संभावनाएं बहुत कम होती हैं। वह तेजी के साथ आगे बढ़ते हैं। पिछले वर्षों में जिस तरह के कानून केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा तावड़-तोड़ तरीके से बनाए जा रहे हैं। कानून बनने के साथ ही उसमें संशोधन शुरू हो जाते हैं। नए-नए कानून लोगों के दैनिक एवं सामाजिक जीवन को बुरी तरह से प्रभावित कर रहे हैं। सरकारों, विधान मंडलों, और न्यायालयों को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। भीड़ तंत्र के सिद्धांत से बचना होगा। सामाजिक एवं मानवीय विकास सभी के एकजुट होने से बढ़ता है। निजी मामलों में सरकारों का हस्तक्षेप कहीं से भी न्याय संगत नहीं है। इस दिशा में ध्यान दिए जाने की जरूरत है।

ramswaroop mantri

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