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नेहरू और उनके बारे में एक पुस्तक

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सत्ता हस्तांतरण संविधान सभा ने स्वीकारा*

*गांधी की हत्या के बाद सत्ता पलटने का था षडयंत्र ?*

           आधुनिक भारत के निर्माता देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु और उनकी नीतियों को लगभग भुला दिया गया था। वह भी उस पार्टी और देश द्वारा जिस के निर्माण में स्वयं नेहरु का बड़ा योगदान था। वर्ष 2014 में देश की राजनीति ने करवट बदली, वह मध्य मार्ग से हटकर पूरी तरह दक्षिण पंथ की और मुड़ गई। देश की सत्ता उस दल के हाथ में आ गई जो औपनिवेशिक आजादी के लिए लड़ी जा रही लड़ाई से न केवल दूर था अपितु जिसने अंग्रेज शासकों का खुलकर साथ दिया था। इस पार्टी का निशाना यूं तो संपूर्ण स्वतंत्रता संग्राम और उसकी विरासत रही है लेकिन जवाहरलाल नेहरु उनकी नफरती  प्रचार के प्रिय पात्र बन हुए हैं। ऐसा क्यों हुआ इसका जवाब देने का प्रयास किया है वरिष्ठ पत्रकार,  लज्जा शंकर हरदेनिया नें अपनी पुस्तक *आधुनिक भारत के निर्माता जवाहर लाल नेहरू* में । इस पुस्तक में हरदेनिया जी सहित देश के चुनिंदा विद्वानों द्वारा नेहरु को याद किया गया है। उसके अलावा स्वयं नेहरु का लेखन भी पुस्तक में समाहित है।

             पुस्तक के संपादक श्री हरदेनियाजी के अनुसार नेहरु जी ने भारत में धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र की स्थापना की थी। अब केंद्र की सत्ता पर एक ऐसी पार्टी काबिज है जिसकी धर्मनिरपेक्षता एवं प्रजातंत्र के मूल सिद्धांत में आस्था नहीं है। ऐसी विकट परिस्थितियों में धर्मनिरपेक्ष ताकतों का कर्तव्य है कि वह एकजुट होकर सांप्रदायिक ताकतों को शिकस्त दें। धर्मनिरपेक्षता की नींव को मजबूत करने में नेहरु जी की विचारधारा का महत्व है, इसलिए इस विचारधारा को युवा वर्ग तक पहुंचाने के उद्देश्य से उन्होंने यह पुस्तक तैयार की है।

 *संसद सत्र के दौरान न विदेश न विदेशी*

           नेहरु जी के मन में लोकतांत्रिक संस्थाओं के प्रति बड़ा सम्मान था। वे संसद की कार्यवाही में मुस्तैदी  से भाग लेते थे। सत्र के दौरान विदेशी मेहमानों को भारत आने से विनम्रता पूर्वक मना कर देते थे। वे स्वयं भी सत्र के दौरान देश के बाहर नहीं जाते थे।

           लोकसभा में चीनी हमने पर बहस चल रही थी बहस के दौरान नेहरु जी की मौजूदगी में समाजवादी सदस्य हेम बरुआ ने उन्हें गद्दार कह दिया। भोजन अवकाश के दौरान नेहरु जी ने हेमंत बरुआ को अपने कक्ष में बुलाया उन्हें काफी पिलाई और उनके भाषण की प्रशंसा की। इसी तरह लोकसभा में एक समाचार पत्र के विरुद्ध अवमानना के प्रस्ताव पर बहस चल रही थी। अखबार में लोकसभा अध्यक्ष हुकुम सिंह के विरुद्ध अपमानजनक टिप्पणी की थी। अनेक सदस्यों ने मांग की कि अखबार के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही की जाए। नेहरू जी ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि मेरी राय में समाचार पत्र की उपेक्षा की जाए , उसकी टिप्पणी को नजरअंदाज किया जाए यही कड़ी कार्यवाही हो सकती है।ये दोनों घटनाएं बताती है कि नेहरू कितने सहिष्णु थे।

            संघ परिवार हमेशा यह प्रयास करता रहा है कि आजाद भारत निर्माण में नेहरू की भूमिका को कम करके पेश किया जाए। नेहरू देश को पूंजीवादी राष्ट्र नहीं बनाना चाहते थे इसीलिए उन्होंने मिश्रित अर्थव्यवस्था की नींव रखी। औद्योगिकरण की अधोसंरचना  के लिए सार्वजनिक क्षेत्र का निर्माण किया। विदेश नीति का आधार गुटनिरपेक्षता को बनाया तथा पूरी ताकत लगाकर देश को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाया।

 *सत्ता पलटने का षड्यंत्र*

           महात्मा गांधी की हत्या के बाद 5 फरवरी 1948 को नेहरू ने मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर सूचित किया था कि देश में विद्रोह कर सत्ता पलटने का षड्यंत्र किया गया था। इस षड्यंत्र के अनुसार देश में अनेक महत्वपूर्ण व्यक्तियों की हत्या की जानी थी। पत्र में वे आगे लिखते हैं कि भारत सरकार ने एक प्रस्ताव पारित किया है उसके अनुसार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।…. गांधी जी की हत्या किसी एक व्यक्ति द्वारा किया गया अपराध नहीं था… इस घटना के पीछे एक राष्ट्रव्यापी संगठन है… मुझे कुछ ऐसे लोगों के भी शोक संदेश प्राप्त हुए हैं जो इस षड्यंत्र का हिस्सा थे… इस तरह के खतरनाक तत्वों ने सरकार के विभिन्न अंगों में घुसपैठ कर ली है। उल्लेखनीय है कि नेहरू जी मुख्यमंत्रियों को हर पखवाड़े चिट्टियां लिखते थे ये पत्र राज्यपालों को भी भेजे जाते थे।

 *अंधभक्ति बुरी होती है*

           नेहरू भारत के अतीत से उसकी ऐतिहासिकता से बेहद प्रभावित थे। उन्होंने वेद, उपनिषद, पुराण, गीता जैसे ग्रंथों और रामायण, महाभारत जैसे महाकाव्यों का विश्लेषण परक अध्ययन किया। अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “हिंदुस्तान की कहानी” में वे एक जगह लिखते हैं ” पिछली बातों के लिए अंधभक्ति बुरी होती है, साथ ही उनके लिए नफरत भी उतनी ही बुरी है। इन दोनों में से किसी पर भविष्य की बुनियाद नहीं रखी जा सकती। वे वेदों के स्वाभाविक प्रशंसक थे। उनके अनुसार वेदों में बड़ी ऊंची प्रकृति संबंधी कविताएं हैं। उन में मूर्ति पूजा नहीं है, देवताओं के मंदिरों की चर्चा नहीं है। उपनिषदों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इनमें सच्चाई पर बड़ा जोर दिया गया है। उपनिषदों की यह प्रार्थना मशहूर है “असत्य से मुझे सत्य की ओर ले चल…” रामायण के संबंध में नेहरू कहते हैं रामायण मोहब्बत, दया, क्षमा का अपार और अथाह समुंदर है। वे संस्कृत भाषा के भी बड़े प्रशंसक थे। उनके अनुसार संस्कृत अद्भुत रूप से संपन्न हरी-भरी और फूलों से लदी भाषा है। फिर भी वह नियमों से बंधी है 26 सौ वर्ष पूर्व व्याकरण का जो चोखटा पाणिनि ने इसके लिए तैयार किया उसी के भीतर ही चल रही है।

 *संविधान सभा ने सत्ता ग्रहण की थी*

           भारत की संविधान सभा का गठन 1946 में हुआ था परंतु 14 अगस्त 1947 की मध्य रात्रि में संविधान सभा ने ही आजाद भारत की सत्ता ग्रहण की थी। रात्रि 12:00 बजे संविधान सभा ने एक प्रस्ताव पारित कर सत्ता के हस्तांतरण को स्वीकार किया। संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद ने सदस्यों को शपथ दिलवाई। सभा ने उसी समय तय किया कि लॉर्ड माउंटबेटन आजाद भारत के प्रथम गवर्नर जनरल होंगे। उसी रात्रि में देश के राष्ट्र ध्वज को स्वीकार किया गया। सुचेता कृपलानी ने डॉ इकबाल द्वारा रचित गीत ” सारे जहां से अच्छा हिंदुस्ता हमारा…” और रविंद्र नाथ टैगोर के गीत ” जन गण मन…” गाया था। संविधान सभा के अध्यक्ष ने जवाहरलाल नेहरू को प्रस्ताव पेश करने का अनुरोध किया जो ऐतिहासिक दस्तावेज बन गया। नेहरू ने अपने भाषण का प्रारंभ करते हुए कहा था कि ” वर्षों पूर्व हमने नियति से एक वादा किया था….” संविधान सभा के सभी सदस्यों ने खड़े होकर तालियों की गड़गड़ाहट के बीच नेहरू द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव को स्वीकार किया।

           नेहरू जी के बारे में उनकी पुत्री इंदिरा गांधी के अनुसार नेहरू जी की मान्यता थी कि साम्राज्यवाद सबसे बड़ा अभिशाप है। वे प्रतिबद्ध मार्क्सवादी नहीं थे परंतु वे समाजवाद के सिद्धांतों से काफी हद तक प्रभावित थे। उनका व्यक्तित्व प्रधानमंत्री पद से भी बड़ा था। नेहरू जी मुख्यमंत्रियों को नियमित रूप से पत्र लिखते थे इन पत्रों की कुल पृष्ठ संख्या 6000 से अधिक है।

           केरल के मुख्यमंत्री रह चुके कम्युनिस्ट नेता अच्युत मेनन नेहरू को गुटनिरपेक्ष विदेश नीति निर्माता के रूप में याद करते हैं। उनके अनुसार अंतरराष्ट्रीय मामलों की उनकी गहरी समझ द्वितीय विश्वयुद्ध की विध्वंसकारी नतीजों पर आधारित थी। धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों के लिए लड़ने वाले डी आर गोयल के अनुसार नेहरू जी हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग को एक ही तराजू पर तोलते थे, उनके अनुसार दोनों की राजनीति समान थी। हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग को देश की जनता की तकलीफों से कोई लेना-देना नहीं था। उन्हें किसानों, मजदूरों की समस्याओं की तनिक भी चिंता नहीं थी। ये सांप्रदायिक संगठन ब्रिटिश साम्राज्यवाद के लगभग पिट्ठू बन गए थे। 

          27 सितंबर 1948 को प्रधानमंत्री कार्यालय के केबी पाई द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक श्री माधव सदाशिव राव गोलवलकर को लिखे पत्र में कहा गया कि ” सरकार के पास इस बात के सबूत हैं कि संघ की गतिविधियां देश के बुनियादी हितों के विरुद्ध है… सरकार कतई यह मानने को तैयार नहीं है कि संघ एक खतरनाक संगठन नहीं है… संघ के नेताओं की कथनी और करनी में जमीन आसमान का अंतर है।

           प्रोफ़ेसर अर्जुन देव लिखते हैं कि नेहरू जी ईश्वर की सत्ता में विश्वास नहीं करते थे। वे धर्म से जुड़े अंधविश्वासों के घोर विरोधी थे। नेहरू युग के महान चिंतक पीएन हक्सर के अनुसार नेहरू जी का कहना है कि हम जितना ज्यादा प्रकृति को समझने का प्रयास करते हैं उतने ही अंधविश्वास के चुंगल से मुक्त होते हैं।

           संसद में लंबे समय तक कम्युनिस्ट पार्टी का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रोफेसर हीरेन मुखर्जी ने एक घटना का उल्लेख किया जिस ने नेहरू को आजादी की लड़ाई में शामिल होने के लिए प्रेरित किया था। प्रोफ़ेसर मुखर्जी बताते हैं कि जब नेहरू कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे थे उसी दौरान एक आयोजन में उन्होंने विश्वविद्यालय के कुलपति द्वारा कतिपय लोगों को सम्मान स्वरूप दी जाने वाली आनररी डिग्री दिए  जाने का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि कुलपति सभी को खड़े होकर डिग्री सौंप रहे थे परंतु जब दो भारतीय आगा खां और महाराजा बीकानेर डिग्री लेने आए तो कुलपति ने उन्हें बैठे-बैठे ही डिग्री सौंप दी। नेहरू जी को यह अच्छा नहीं लगा उन्होंने भारत के दो सम्मानीय नागरिकों का अपमान माना।

         सेकुलर फोरम के राम पुनियानी फ्रांसीसी पत्रकार आन्द्रे मार्लक्स को उद्धृत करते हुए कहते हैं कि ” भारतीय राज्य तो धर्मनिरपेक्ष है परंतु भारतीय समाज अत्यंत धार्मिक। नेहरू कहते थे कि धर्म मुझे हमेशा अंधविश्वासों, कट्टरता, अंधभक्ति और शोषण का स्त्रोत नजर आते हैं। इसके बावजूद धर्म में कुछ तो है जो मनुष्य की आंतरिक भूख को मिटाता है।

            बावजूद इसके नेहरू धर्मनिरपेक्षता के प्रति पूर्णतया प्रतिबद्ध थे। जो नीति निर्धारण में पथ प्रदर्शक बनी। इसलिए सोमनाथ मंदिर का सरकारी खर्च से जीर्णोद्धार किए जाने की मांग उन्होंने दृढ़ता से ठुकरा दी थी। यद्यपि कांग्रेस धर्मनिरपेक्ष पार्टी है परंतु कुछ अवसरवादी सांप्रदायिक तत्वों ने सत्ता की खातिर उसमें प्रवेश पा लिया है। नेहरू की मृत्यु के बाद कांग्रेस नेतृत्व अपनी राह से भटक गया।

 *स्वयं के बारे में नेहरु*

          14 नवंबर 1937 को प्रगतिशील लेखक संघ के इलाहाबाद सम्मेलन को संबोधित करते हुए नेहरू ने कहा कि लेखकों को अपने आदर्शों को इस ढंग से पेश करना चाहिए कि उसकी रचना से पाठकों में उन आदर्शों तक पहुंचने की इच्छा और अपेक्षित उत्साह पैदा हो।

           स्वतंत्र भारत में औद्योगीकरण को लेकर नेहरू व गांधी में मतभेद थे। एक पत्र में नेहरू ने गांधीजी को लिखा कि भारत को औद्योगिक क्रांति स्वीकार करना होगी आप औद्योगिकवाद के जिन पहलुओं की आलोचना करते हैं उनका संबंध पूंजीवादी व्यवस्था से है जिसका मुख्य आधार मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण है।

           नेहरू जी अपनी           आत्मकथा में लिखते हैं कि बापू विरोधाभासों से परिपूर्ण व्यक्ति थे… गांधी जी एक और गरीबों और शोषितों के मसीहा के रूप में जाने जाते थे दूसरी ओर वे उस व्यवस्था के समर्थक हैं जो उन्हें दबाती कुचलती है। कभी-कभी वे स्वयं को समाजवादी भी कहते हैं परंतु उनका समाजवाद वैज्ञानिक विचारधारा पर आधारित नहीं है।

          एक कायर हिंदू द्वारा गांधी जी की हत्या पर राष्ट्र के नाम संदेश मैं नेहरू जी ने कहा कि ” एक पागल आदमी ने उनकी हत्या कर दी परंतु उसे पागल उस जहरीले प्रचार ने बनाया जो पिछले कई वर्षों से किया जा रहा था। यह जहर अभी भी मौजूद है। हमें इसका मुकाबला करना होगा।

            अन्त में महान वैज्ञानिक आइंस्टाइन अल्बर्ट का वह पत्र जो उन्होंने नेहरू की पुस्तक ” द डिस्कवरी ऑफ इंडिया ” पढ़ने के बाद उन्हें लिखा था। पत्र में आइंस्टाइन लिखते हैं किताब को पढ़ने से मुझे तुम्हारे महान देश की गौरवशाली बौद्धिक और आध्यात्मिक परंपराओं को समझने का मौका मिला… तानाशाही के दबाव, बाहरी और भीतरी घृणा से पीड़ित होते हुए तुम्हारे संघर्ष ने दुनिया के इतिहास में एक अद्भुत स्थान बनाया है। पुस्तक में सुभद्रा जोशी, कम्युनिस्ट नेता शाकिर अली के भी नेहरू से संबंधित संस्मरण दिए गए हैं।

 हरनाम सिंह

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