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आजादी के लिए बनाई थी नेताजी सुभाष चन्द्र बोष ने आज़ाद हिंद फौज!

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डॉ श्रीगोपाल नारसन

नेताजी सुभाषचंद्र बोष एक मात्र ऐसे आजादी के महानायक हुए है जिन्होंने अंग्रेजों को धूल चटाने के लिए एक सैन्य संगठन आज़ाद हिंद फ़ौज का गठन किया था।उन्होंने अपने इंकलाबी नारे
तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा..! को चरितार्थ कर दिखाया था ।महान क्रांतिकारी सुभाष चंद्र बोस देश के लिए न सिर्फ 11 बार जेल गए थे।उन्होंने देश मे ही नही ,विदेश में भी अपनी सैन्य शक्ति का लौहा मनवाया।नेताजी सुभाष चन्द्र बोष का जन्म 23 जनवरी सन 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में हुआ। उनके पिता कटक शहर के जाने-माने वकील थे।वे एक संपन्न बंगाली परिवार से संबंध रखते थे।उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस था। जबकि उनकी मां का नाम प्रभावती था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस समेत उनकी 14 संतानें थी। जिनमें 8 बेटे और 6 बेटियां थी। सुभाष चंद्र उनकी 9वीं संतान और पांचवें बेटे थे।


उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कटक से प्राप्त की। उच्च शिक्षा के लिए वे कलकत्ता चले गए। और वहां के प्रेज़िडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी की।इसके बाद वे इण्डियन सिविल सर्विस की तैयारी के लिए इंग्लैंड के केंब्रिज विश्वविद्यालय चले गए।अंग्रेज़ों के शासन में भारतीयों के लिए सिविल सर्विस में जाना बहुत मुश्किल था।सुभाष चंद्र बोस ने सिविल सर्विस की परीक्षा में चौथा स्थान हासिल किया।सन 1921 में भारत में आजादी आंदोलन की बढ़ती राजनीतिक गतिविधियों का समाचार पाकर सुभाष बोस भारत लौट आए और उन्होंने सिविल सर्विस छोड़ दी।इसके बाद नेताजी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़ गए थे।वह सर्वोच्च प्रशासनिक सेवा को छोड़कर देश को आजाद कराने की मुहिम का हिस्सा बन गए थे जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने उनके खिलाफ कई मुकदमें दर्ज किए गए।जिस कारण सुभाष चंद्र बोस को अपने जीवन में 11 बार जेल जाना पड़ा। वे सबसे पहले 16 जुलाई 1921 को जेल गए थे।जब उन्हें छह महीने के लिए सलाखों के पीछे जाना पड़ा था।


महात्मा गांधीजी को सबसे पहले राष्ट्रपिता कहकर सुभाष चंद्र बोस ने ही संबोधित किया था। जबकि सुभाष चंद्र बोस को सबसे पहले नेताजी कहकर एडोल्फ हिटलर ने पुकारा था। जलियांवाला बाग कांड से विचलित होकर ही वह आजादी की लड़ाई में कूदे थे।विद्यार्थी जीवन मे एक अंग्रेजी शिक्षक द्वारा भारतीयों को लेकर आपत्तिजनक बयान करने पर उन्होंने उसका खासा विरोध किया, जिस कारण उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया था। नेताजी बचपन ही से विलक्षण प्रतिभा के छात्र रहे। आज़ादी के संग्राम में शामिल होने के लिए उन्होंने भारतीय सिविल सेवा की नौकरी तक ठुकरा दी थी। उन्होंने लंदन से आईसीएस की परीक्षा पास की थी। सन1921 से सन1941 के बीच नेताजी को भारत में अलग-अलग जेलों में 11 बार कैद में रखा गया।

सन 1943 में नेताजी जब बर्लिन में थे तब उन्होंने वहां आज़ाद हिंद रेडियो और फ्री इंडिया सेंटर की स्थापना की थी। नेताजी को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का दो बार अध्यक्ष चुना गया। उन्हें किताबों को पढ़ने का बहुत शौक था। उन्होंने स्वामी विवेकानंद की बहुत सी किताबें पढ़ीं। सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज की स्थापना की। देश के बाहर रह रहे लोग इस सेना में शामिल हो गए। आजाद हिंद फौज में महिलाओं के लिए झांसी की रानी रेजीमेंट बनाई गई। सन 1928 में जब साइमन कमीशन भारत आया तब कांग्रेस ने उसे काले झंडे दिखाए और कोलकाता में सुभाष चंद्र बोस ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया।सुभाष चन्द्र बोष आजादी के आंदोलन में गरमदल के नायक थे,लेकिन नरम दल से जुड़े आजादी के नायकों का भी सम्मान करते थे।देश के लिए समर्पित आजाद हिंद फौज के इस महानायक की मृत्यु का रहस्य आज तक बना हुआ है कि उनकी मृत्यु कहा,कब और कैसे हुई।आज भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत से जुड़े कई किस्से – कहानियां बताए जाते हैं, लेकिन पुख्ता तौर पर आज भी ये सामने नहीं आया है कि उनकी मौत कैसे हुई।वहीं सरकारी घोषणा के अनुसार, नेताजी की मौत 18 अगस्त 1945 में एक विमान हादसे में हुई थी।


नेताजी सुभाष चंद्र बोस के प्रपौत्र चंद्र कुमार बोस ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती को देश प्रेम दिवस घोषित करने की मांग की थी,जो आज तक पूरी नही हुई। इस बारे में पहले भी केंद्र सरकार से मांग की गयी है।नेताजी ने पूर्ण स्वराज की बात कही थी।उन्होंने कहा था कि देश में विभाजन की राजनीति बंद होनी चाहिए।नेताजी के अध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद व नेताजी ने देश के युवाओं को एकजुट रहने का आह्वान किया था तथा सभी धर्म के लोगों में सदभाव बात कही थी।उसका पालन किया जाना चाहिए।


नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पोते चंद्रकुमार बोस ने टोक्यो के रैंकोजी मंदिर में रखी नेताजी की अस्थियों का डीएनए टेस्ट कराया जाना चाहिए ताकि नेताजी के निधन को लेकर बने रहस्य पर पूर्ण विराम लगाया जा सके। आज तक यह पता नहीं चला कि 18 अगस्त सन1945 को तायहोकु में हुए हवाई हादसे के बाद क्या वाकई वो जिंदा थे या फिर उनकी मृत्यु हो गई थी, भारत में इसकी जांच को लेकर तीन आयोग बन चुके हैं।


पहले दो आयोगों का कहना है कि नेताजी का निधन 18 अगस्त 1945 को ताइवान के तायहोकु एयरपोर्ट पर हो चुका है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस मनोज मुखर्जी जांच आयोग ने इससे एकदम उलट रिपोर्ट दी।उसके बाद से ही नेताजी की जापान के मंदिर में रखी अस्थियों की डीएनए जांच का मुद्दाचर्चा में रहा है।वास्तव में इस रहस्य से पर्दा उठाना व उनके जैसी राष्ट्रभक्ति का जज़्बा पैदा करना ही नेताजी सुभाष चन्द्र बोष के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि कही जा सकती है।
(लेखक अमर शहीद जगदीश प्रसाद वत्स के भांजे व वरिष्ठ पत्रकार है)

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