शशिकांत गुप्ते
प्रख्यात शायर मशहर आफ़रीदी का यह शेर आज के दौर के लिए प्रासंगिक है।
सब से बेजार हो गया हूँ मैं
जेहनी बीमार हो गया हूँ मैं
कोई अच्छी खबर नहीं है मुझ में
यानी अखबार हो गया हूँ मैं
समाचार माध्यमों की स्थिति ऐसी ही हो गई है।
विज्ञापनों के शोर में सच्ची खबर गायब हो जाती है। यह तो प्रिंट मीडिया की स्थिति है।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बहुत से मीडिया हॉउस तो गोदी में बैठकर शोर मचाने वाले सियासतदानों को ज्यादा तवज्जों देतें हैं।
सियासतदान कितना सच बोलतें हैं।इस पर प्रख्यात शायर वसीम बरेलवी फरमाते हैं।
वो झूट बोल रहा था बड़े सलीक़े से
मैं ए’तिबार न करता तो और क्या करता
यह एतबार भी क्षणिक होता है। लोगों की भावनाएं समाप्त हो जाती है,और यथार्थ प्रकट हो जाता है। यथार्थ प्रकट होने का कारण यह है कि, लोगों के ज्ञान चक्षुओं का खुलना होता है। इसके लिए दिमाग़ी रोशनी का जलना जरूरी है। दिमाग़ी रोशनी के प्रज्ज्वलित करने के लिए ज्ञान रूपी रोशनी का जलना जरूरी होता है।
इस पर वसीम बरेलवी का यह शेर मौजु है।
जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा
किसी चराग़ का अपना मकां नहीं होता
कहा जाता है कि, ज्ञान बांटने से ज्ञान बढ़ता है।
ज्ञान चक्षु खुलने पर सारी वास्तविकता समझ में आती है।
सारा भ्रम दूर हो जाता है,और यह स्पष्ट हो जाता है कि,
आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता है
भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है
यह शेर भी वसीम बरेलवीजी का ही है।
शोर सुनकर भावुक होने के पूर्व शोर क्यों किया जा रहा है,इस बात पर गौर कर लेना चाहिए
यदि सन 2014 में जो प्रचार का शोर प्रसारित हुआ था,इस पर गौर किया होता तो, पन्द्रहलाख के प्रलोभन में कोई नहीं आता।
देश में सर्वत्र कीचड़ फैलने से रुक जाता।
वैसे देश के पूर्व में स्थित पश्चिम बंगाल में कीचड़ फैलाने के लिए बहुत शोर मचाया गया था,जो पूरी तरह असफल हो गया है। अब उत्तरी क्षेत्र की बारी है।
देश की जनता को बनावटी शोर पर गौर करना जरूरी है।
शशिकांत गुप्ते इंदौर