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 अब विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A को कुछ बड़े फैसले लेने की जरूरत

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सागरिका घोष

विपक्षी दलों के गठबंधन I.N.D.I.A की तीसरी बैठक अभी हाल ही में मुंबई में खत्म हुई। I.N.D.I.A की हर बैठक के बाद, बीजेपी सवाल पूछती है- ‘मोदी बनाम कौन’ 2024 में पीएम मोदी को चुनौती देने के लिए विपक्ष का ‘चेहरा’ कौन होगा? यह वह सवाल है जिसके बाद विपक्षी गठबंधन थोड़ा मुश्किल में पड़ जाता है। हालांकि विपक्ष को इसकी चिंता करने की बजाय ‘मोदी बनाम संदेश’ पर फोकस करना चाहिए। आम चुनाव में कुछ ही महीने बाकी हैं और ऐसे वक्त में विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A को वैकल्पिक, रचनात्मक दृष्टि के साथ लोगों के पास जाने की जरूरत है। केवल बढ़ते बहुसंख्यकवाद और लोकतंत्र के खतरे की आशंका व्यक्त करने की बजाय, एक ठोस और क्लियर संदेश तैयार करने का समय आ गया है।

वरिष्ठ पत्रकार सागरिका घोष ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में लेख लिखकर इस मुद्दे का जिक्र किया है कि विपक्षी गठबंधन की अगले चुनाव में क्या रणनीति होनी चाहिए? चुनाव के समय जनता भविष्य के रोडमैप की तलाश करती है। नकारात्मकता नहीं सकारात्मकता की जरूरत है। ‘संविधान खतरे में है’ यह बात टीवी डिबेट को भड़काने के लिए ठीक है लेकिन क्या आम नागरिक को वास्तव में इसकी परवाह है? हाल ही में इंडिया टुडे के सर्वे में बहुमत ने प्रत्येक राजनीतिक दल को राज्य सत्ता के दुरुपयोग का दोषी ठहराया। बड़ी संख्या में सर्वे में लोगों ने कहा कि बीजेपी की सरकार सरकारी एजेंसियों का अधिक दुरुपयोग करती है। हालांकि बीजेपी वोट बैंक लगातार बढ़ा है। बीजेपी ने 2009 में 7.8 करोड़ वोट हासिल किए थे, जो 2019 में लगभग 22.9 करोड़ वोट तक पहुंच गया।

वहीं इसके विपरीत, इसी दौरान कांग्रेस लगभग 11.9 करोड़ वोटों पर स्थिर रही है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का नारा ‘नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान’ (नफरत के बाजार में प्यार की दुकान) कांग्रेस के मूल वोट को मजबूत कर सकता है, लेकिन क्या यह नए वोटर को आकर्षित करेगा? फिर भी विपक्ष का मुद्दा किसी भी तरह खत्म नहीं हुआ है। ‘इंडिया’ नाम और नारा ‘जुड़ेगा भारत, जीतेगा इंडिया’ राष्ट्रवाद की प्रचलित भावना से मेल खाता है। सभी विपक्षी नेता एक कमरे में एक साथ एकत्र हुए, जिससे अच्छी संभावनाएं बनती हैं। विपक्षी दलों का एक दर्जन से अधिक राज्यों में शासन है, जिसमें 300 से अधिक लोकसभा सीटें शामिल हैं।

यह बातें गठबंधन को मजबूत बनाती हैं। सच है कि सभी गैर-एनडीए दल एक साथ नहीं हैं और राज्य स्तर पर प्रतिद्वंद्विता मौजूद है। हालांकि बावजूद इसके ममता बनर्जी और एमके स्टालिन जैसे कई विपक्षी नेताओं का उनके राज्यों में खासा प्रभाव है। शरद पवार राजनीति के एक बड़े खिलाड़ी हैं। लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार 2015 में बीजेपी के रथ को रोकने में कामयाब हुए थे और अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली AAP ने दिल्ली में बीजेपी को तीन बार हराया है। I.N.D.I.A का नाम, नारा सब ठीक है लेकिन जो गायब है वह एक संदेश है जो मोदी-विरोध से परे है।

बीजेपी 2047 तक अमृत काल का वादा कर रही है। विपक्ष को गरीबों से जुड़े कार्यक्रमों का एक वैकल्पिक दृष्टिकोण पेश करने की जरूरत है जो इस ‘नए’ भारत के सपने में पीछे छूट गए लोगों तक पहुंचे। सर्वे में पाया गया कि 72% भारतीयों का मानना है कि बेरोजगारी एक गंभीर संकट है, जबकि 55% का मानना है कि सरकार की नीतियां बड़े व्यवसायों को मदद करती हैं, छोटे उद्यमों को नहीं। सरकार ने एलपीजी की कीमतों में कटौती करके जनता की समस्याओं को दूर करने की दिशा में कदम उठाया है। लेकिन एक अधिक एकजुट विपक्ष इस महत्वपूर्ण आर्थिक चिंता को संबोधित करके एक ऐसे विकास मॉडल की वकालत कर सकता है जो अधिक न्यायसंगत हो।

क्या विपक्ष खुद को अधिक चुनाव योग्य बनाने के लिए एक नया खाका तैयार कर सकता है? विपक्ष को केवल मोदी-विरोध या ‘प्यार’ बनाम ‘नफरत’ की बात से अधिक आगे के लिए खड़े होने की जरूरत है। विपक्षी गठबंधन के पास अर्थशास्त्रियों की कमी नहीं है। एक अच्छी तरह से डिजाइन की गई सामाजिक सुरक्षा आय गारंटी योजना, जो पिछड़े हुए लोगों के लिए हो। एक वास्तविक आवश्यकता को पूरा करती हो इसे लेकर कुछ ठोस विपक्षी गठबंधन करे तो 2024 में वह मजबूत दावेदारी कर सकती है।

इस वैकल्पिक कार्यक्रम को बनाने के लिए विपक्ष शासित राज्यों से सर्वश्रेष्ठ क्यों नहीं लिया जाए? बंगाल से कन्याश्री योजना, तमिलनाडु की स्कूली शिक्षा आउटरीच, राजस्थान से चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना, दिल्ली का प्राथमिक स्वास्थ्य मोहल्ला क्लिनिक मॉडल को लिया जा सकता है। इसे व्यापक स्तर पर विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A की ओर से पेश कर बेस्ट ऑफ इंडिया का नाम दिया जा सकता है। 2024 में विपक्षी गठबंधन को चुनौती देने के लिए चुनौती ‘मोदी बनाम कौन’ की लड़ाई की बजाय इसे ‘मोदी बनाम मुद्दा’ (मुद्दे) बनाने पर जोर देना चाहिए।

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