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अब भारत में चार धाम थे उनसे कहीं ज्यादा चौतरफा बन गए धाम….

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राकेश अचल

हमारे घर वाले सनातनी है । देवी-देवताओं को मानते हैं, पूजते है। और परिवार के हर बूढ़े सदस्य की अंतिम इच्छा होती है कि उसे उसके बच्चे चार धाम करा दें ताकि जिंदगी सार्थक हो जाये। पुराने जमाने में चाहे पढ़ा -लिखा आदमी हो या अनपढ़ चार धाम जाने का सपना देखता ही था। जिंदगी भर पेट काटता ,लेकिन चार धाम की यात्रा पर जरूर जाता था। तब आज की तरह चार धाम यात्रा सहज नहीं थी। चार धाम पर जाने का मतलब अंतिम यात्रा पर जाना ही माना जाता था,क्योंकि देश के चारों धाम इतने दुर्गम स्थलों पर स्थित थे कि उन तक पहंच कर अपनी साध पूरा करना भगीरथ को पृथ्वी पर लाने जैसा होता था।


देश में जब से धर्म-धुरंधर और डबल इंजिन की सरकारें बनने लगीं हैं तभी से सब कुछ बदल रहा है । अब देश में जो स्थापित चार धाम थे उनसे कहीं ज्यादा खूबसरत और सम्पन्न धाम इधर-उधर बन गए हैं। हमारी नानी के भाई भगवानदास बताया करते थे कि हिंदू मान्यताओं के अनुसार चार धाम की यात्रा को बहुत ही पवित्र माना गया है। ऐसी मान्यता है कि चार धाम की यात्रा से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है।कक्का के मुताबिक चार धाम यात्रा को दक्षिणावर्त दिशा में पूरा करना चाहिए। इसलिए, तीर्थयात्रा यमुनोत्री से शुरू होती है, गंगोत्री की ओर बढ़ती है, केदारनाथ तक जाती है और अंत में बद्रीनाथ पर समाप्त होती है।
कलियुग में इन चार धामों के मुक़ाबिल अब सनातनी और गैर सनातनियों ने अपने परिश्रम और धन के बूते चार के मुकाबले चालीस धाम बना लिए है। इन धामों में देवता छोटे लेकिन उनके नाम पर दूकान चलाने वाले बड़े -बड़े साधू-सन्यासी बैठने लगे हैं। हर रोज ,हर राज्य में एक न एक नया धाम खुल जाता है। इन नए धामों में इतनी धमाधम होती है कि आप कल्पना नहीं कर सकते । इन धामों में कोई और जाये या न जाये लेकिन नेता ,मंत्री,विधायक,संसद और तो और प्रधानमंत्री जी जरूर जाते हैं। बाबा बागेश्वर ने अपना धाम बना लिया। पंडोखर वालों ने अपना धाम ठोंक दिया। प्रदीप मिश्रा का अपना धाम है और ऐसे ही किसी तीसरे का तीसरा,चौथे का चौथा धाम है। दक्षिण में तो धामों की लम्बी श्रृंखला है। भगवान खुद इतने सारे धाम देखकर चकित हैं।
धाम का मोटा और महीन अर्थ एक ही है की वह स्थान जहाँ किसी देवता का निवास हो, देवस्थान या पुण्यस्थान, मंदिर, तीर्थ हो वो ही धाम है।महाभारत के अनुसार धाम अपने अआप में एक प्रकार के देवता हैं।
शब्दकोश में धाम के लिए गृह, घर, मकानबागडोर, लगामदेह, शरीर, तन,स्वर्ग, बैकुण्ठ चारदीवारी,वैभव,ज्योति,किरण,शोभा ,प्रभाव,तेज,विष्णु,ब्रह्म,जन्म और गति को भी धाम ही कहा जाता है। हंदुओं के धाम चार से ज्यादा नहीं होते और न हो सकते है। ठीक वैसे ही जैसे मक्का और मदीना मुस्लिमों के दो पवित्र स्थान है। ईसाइयों के लिए एक यरुशलम है। सिखों के लिए एक स्वर्ण मंदिर है। लेकिन कलियुग में खासतौर पर मोदी युग में नए -नए धाम खोलने की छूट है । सरकारी जमीनें हड़पो और धाम खोल डालो। कोई सनातनी ,इन धामों का विरोध नहीं कर सकता,क्योंकि ये नए धाम धर्म की राजनीति करने में सहायक होते है। इन धामों के स्वामी राजनीतिक दलों के एजेंडे का खुल्ल्म खुल्ला प्रचार करते हैं।
पहले हर सक्षम हिन्दू चार धाम की तीर्थयात्रा करता था । ये चार धाम वे थे जिसका विधान आदि शंकराचार्य ने बताया था। जब आम हिन्दू बद्रीनाथ धाम जाता था तो उसमें केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री जाना भी शामिल रहता था। जैसे हर हिन्दू काशी, प्रयाग और गंगासागर नियमित रूप से से सुविधा व समयानुसार जाता रहता था। इसके अतिरिक्त समय और सामर्थ के अनुसार हर हिन्दू बारह ज्योतिर्लिंगों और बावन शक्तिपीठों का भ्रमण करता रहता था।लेकिन अब सब कुछ उलटा-पुल्टा हो रहा है। डबल इंजिन की सरकारों ने प्राचीन चारों धामों को तो पर्यटन केंद्रों में बदल ही दिया है साथ ही अयोध्या जैसे पुण्य स्थलों को भी चार धामों से ज्यादा प्रतिष्ठित कर दिया है ,क्योंकि नए धाम से वोट जुड़े हैं,पुराने धामों से वोट की जुगाड़ नहीं होती।अकेले यूपी सरकार धार्मिक पर्यटन से साल में 25 हजार करोड़ की कमाई करने का लक्ष्य बनाये बैठी है।
रामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास को कलियुग में खासकर मोदी युग में धर्म की फजीहत की पूरी आशंका थी। इसीलिए उन्होंने सचेत किया था कि-
मारग सोइ जा कहुॅ जोइ भावा। पंडित सोइ जो गाल बजाबा।
मिथ्यारंभ दंभ रत जोईं। ता कहुॅ संत कहइ सब कोई।
अब बागेश्वर हो,या कांग्रेस से निकले गए एक बाबा आचार्य प्रमोद कृष्णम या कोई और। सब जगह गाल बजाने वाले जमे हुए हैं। हमारे मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक इन नए धामों का शिलान्यास कर रहे है। वहां माथा तक रहे हैं , कोई कल्कि धाम बना रहा है तो कोई किसी और नाम का धाम। धाम ही नहीं अब तो सरकारी संरक्षण में नए पांचवें, छठवें शंकराचार्य भी बन गए हैं। कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता ,क्योकि सत्ता का संरक्षण उनके ऊपर है। सवाल ये है कि नए धाम खोलने कि अनुमति कौन देता है ? कौन इनका प्रमाणीकरण करता है कि ये लूट के अड्डे नहीं हैं,व्यभिचार के केंद्र नहीं हैं। अभी भी ऐसे ही धामों के कथित संस्थापक आसाराम हों या राम-रहीम जेलों में पड़े हैं न ?
सरकार जैसे चिटफंड कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करती उसी तरह इन स्वयंभू धामों के खिलाफ भी कोई कार्रवाई नहीं करती और न करेगी ,क्योंकि ये दुधारू गायें हैं। आप तुलसीदास जी की मदद से ही इन नक्कालों को पहचान सकते है। तुलसी बाबा ने बहुत साफ़ शब्दों में लिखा है –
निराचार जो श्रुतिपथ त्यागी। कलिजुग सोइ ग्यानी सो विरागी
जाकें नख अरू जटा बिसाला। सोइ तापस प्रसिद्ध कलिकाला।
**
असुभ वेस भूसन धरें भच्छाभच्छ जे खाहिं
तेइ जोगी तेइ सिद्ध नर पूज्य ते कलिजुग माहिं।
मेरे कहने का मतलब है कि देश में आजकल केवलोकतंत्र और संविधान ही नहीं बल्कि धर्म भी खतरे में है। धाम भी खतरे में हैं। इन्हें बचाना ही सच्चा धर्म है । धर्म के नाम पर नकली धाम बनाने में मददगार नेताओं और पार्टियों को वोट देना देशहित नहीं है। देशहित पहचानिये और अपने चार धामों के बाद जितने भी धाम बने दिखाई दें वहां झांकिए तक नहीं ,अन्यथा पाप के भागीदार बनेगे आप। मेरा काम आपको सचेत करना था ,सो कर दिय। अब आप जानें और आपका काम जाने। आप को चार धाम करना है या चालीस धाम ! आप कूद तय करें।

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