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तीसरे विश्वयुद्ध के सोपान पर

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डॉ. अभिजित वैद्य

तीसरा महायुद्ध अगर हुआ तो वह पानी की वजह से होगा ऐसा कहा जाता है l तीसरा
महायुद्ध अणुयुद्ध होगा और वह इस भूमि के विनाश की मृत्यु की घंटी होगी ऐसाही दूसरी
तरह से कहा जाता है l पानी के कारण महायुद्ध होने के लिए पूरा विश्व पानी के विशाल
अकाल में डुब जाना चाहिए l विश्व की विद्यमान स्थिति का अवलोकन करते हुए कम से
कम एक शती तक ऐसा होना असंभव है l अतः विश्व अचानक तौर पर अणुयुद्ध एवं तीसरे
महायुद्ध के दरवाजे पर दस्तक दे रहा है l पहले एवं दुसरे महायुद्ध में हुए मानवी नरसंहार से
इन्सान ने कुछ सिख हासिल नहीं की यह बात पक्की है l एमॅन्युएल कान्ट नामक महान जर्मन
तत्वज्ञानी ने अपनी आयु के 71 वें साल में 1975 में लिखे ‘ शाश्वत शांति ‘ ( इटर्नल पीस )
इस निबंध में युद्ध सत्ताधारी लोगों का अहंकार तथा मनमानी पर किस तरह से छेडा जाता
है यह सिद्ध करते हुए युद्ध का पूरी तरह से विरोध किया था l यही वो जर्मनी है जो यूरोप
की भूमि पर हुए दोनों महायुद्ध में हार गई थी l पहले महायुद्ध का अपमानास्पद हार का
प्रतिशोध लेने की रणसिंघा फूँककर जर्मनी में कृरात्मा हुक्मशहा हिटलर पैदा हुआ और
बेचिराख हुआ l इस युद्ध ने विश्व को अणुबम की झलक दिखा दी l इस युद्ध में मित्र राष्ट्रों के
कंधों से कंधा मिलाकर प्राणों की बाजी लगाकर रशियाने प्रवेश किया और सभी मित्र राष्ट्र
युद्ध जीत गई l युद्ध में रशियाने जीत जरुर हासिल की लेकिन सवा दो करोड़ सैनिक गँवाए l
आगे चलकर अंदाजन पाँच दशकों के बाद सोविएट रशिया का विघटन हुआ l इस विघटन में
सोविएट संघराज्य के अनेक टुकडे हुए , सबसे बड़ा टुकडा रशिया स्वतंत्र देश निर्माण हुआ l
दिसंबर 1991 में बहुमत से युक्रेन अलग हुआ और स्वतंत्र राष्ट्र हुआ l वह रशिया आज पूरे
विश्व को तीसरे महायुद्ध तथा शायद अणुयुद्ध की और उनके हुक्मशहा ब्लादिमीर पुतीन के
नेतृत्व में ले जा रहा है l इस रशिया में , ‘युद्ध यह बात इतना जुल्म करनेवाली तथा बदसूरत
मानी जाती है कि उस बात को छेड़नेवाले को अपनी सदविवेक बुद्धि का सबसे पहले गला
घोंटना पड़ता है l’ ऐसा कहनेवाला और ‘ वॉर अॅन्ड पीस ‘ जैसा महान उपन्यास
लिखनेवाला महान तत्त्वज्ञ , साहित्यिक लिओ टॉलस्टॉय ने जन्म लिया था इस बात पर
यकीन करना असंभव हो रहा है l तथा इसी रशिया में स्टॅलिन जैसा लाखों लोगों का विनाश
करनेवाला भी पैदा हुआ था इसे हम नहीं भूल सकेंगे l मानव इतिहास की ओर अगर हमने
ध्यान दिया तो नित्शे का ‘ इटर्नल रिकरंस ‘ सिध्दांत तथा ‘ उबर मेंछ ‘ , ‘ महामानव

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तत्वज्ञान ‘ का गुलाम लगने लगते हैं l नित्शे कहता था , ‘ जिसे सेनापति के नेतृत्व में खुमार
होकर मृत्यु को अपनाने के लिए सैनिक तैयार हो जाता है वह सेनापति शोषन करनेवाले
कारखानदार से बहुत बड़ा होता है l वह उनका आर्थिक शोषन करके उन्हें मारता नहीं
अपितु रणभूमि पर इज्जत से बलिदान देने का मौका देता है l सुख में लेटे रहनेवाले लोग
दुबले बन जाते हैं , शांति में जीने वाले लोगों की सहजप्रवृत्ति सड़ जाती है l इस पर युद्ध और
फोजिकरण यही केवल विकल्प है l ‘ विश्व के अनेक देश तथा देश चलानेवाले राज्यकर्ता इस
तत्वज्ञान के अनुयायी है l युक्रेन जैसा जनतंत्र देश जो पहले अपना ही हिस्सा रह चुका है ऐसे
अपने ही देश में रशिया के अध्यक्ष पुतीन जिस बेहरमी से घुस गए हैं यह बात इसे स्पष्ट
करती है l
इस घटना को दूसरा अंग नहीं है ऐसी बात नहीं है l युक्रेन स्वतंत्र होने के बाद 5 दिसंबर
1994 में हंगेरी के बुडापेस्ट में रशिया , इंग्लैंड तथा अमेरिका में ‘ बुडापेस्ट करार ‘ हुआ l
चीन एवं फ्रान्स ने बाद में इसे अनुमोदन दिया l इस करार के अनुसार युक्रेन , बेलारूस तथा
कझाकिस्तान ये देश अपने अण्वस्त्र रशिया को सौंप देंगे और उसके बदले में इन देशों के
सार्वभौमत्व की रक्षा करार करनेवाले देश करेंगे ऐसा तय हुआ l इसी समय युक्रेन ने
स्वित्झर्लंड , ऑस्ट्रिया तथा फिनलंड जैसे देशों की तरह खुद को तटस्थ राष्ट्र घोषित करना
चाहिए था l युक्रेन के राष्ट्राध्यक्ष लिओनिड कुच्मा ने 1994 से 2004 के दरमियान
अप्रत्यक्षरूप में निष्पक्ष नीति अपनाकर अमेरिका , युरोप तथा रशिया के साथ अच्छे संबंध
बनाए रखे l 2005 में अमेरिका पुरस्कृत विक्टर युश्चेन्को सत्ता में आ गए l उनहोंने नाटो एवं
युरोप के समुदाय में सहभागी होने का निर्णय लिया l रशिया – जॉर्जिया युद्ध में जॉर्जिया को
समर्थन दिया l उसके बाद रशिया पुरस्कृत विक्टर यानुकोविच सत्ता में आ गए l अमेरिका ने
उनके विरुद्ध जनता को भड़काया और उन्हें पद से हटा दिया l उसके बाद सत्ता में आसिन
तुर्चीनोव्ह तथा पोरोशेन्को भी अमेरिका के इशारे पर नाचने लगे l यह स्थिति रशिया को
चुभ गई और रशिया ने हमला करके क्रिमिया अलग किया l डोबांस राज्य में अराजक
निर्माण किया l
मई 2019 में वोलोदिमीर झेलेन्स्की अपनी आयु के केवल 41 वें वर्ष में छठे राष्ट्राध्यक्ष के रूप
में सत्ता में आ गए l झेलेन्स्की वंश से ज्यू और मूलतः हास्य अभिनेता l उनके राजकीय पक्ष
का नाम था ‘ सर्वंट ऑफ़ द पिपल ‘l मार्च 2018 में उनकी निर्मिती संस्था ने इस पक्ष की
स्थापना की और इस नाम से लोकप्रिय रहनेवाली धारावाहिक का नाम ही पक्ष को दिया l
चुनाव का प्रचार उन्होंने सामाजिक माध्यम , यूट्यूब तथा खासतौर पर स्टँड अप कॉमेडी के
जरिए किया l व्यवस्था एवं भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़नेवाला ऐसी खुद की प्रतीमा तैयार की l
लेकिन उसके साथ उन्होंने रशिया के साथ जो बैर है उसे भी ख़त्म करेंगे ऐसा आश्वासन

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जनता को दिया l आगे चलकर उन्होंने नाटो एवं युरोपिय संघ में शामिल होने का निर्णय
लिया l
नाटो का अर्थ है ‘ नॉर्थ अॅटलांटिक ट्रिटि ऑर्गेनाइजेशन 1949 में 12 देशों के नेतृत्व में
स्थापित हुई फौजी संघटना l दुसरे महायुद्ध के बाद रशिया का युरोप में बढ़नेवाला विस्तार
को रोकना यह मूल उद्देश इस संघटना का था l लेकिन प्रत्यक्षरूप में नाटो अमेरिका के हाथ
का खिलौना बन गई l समाजवादियों के बारे में डर रखनेवाले अमेरिकन पूँजीवादी समूह का
माध्यम बन गई l इसे शह देने के लिए 1955 में रशियाने पूर्व युरोप के कम्युनिस्ट देशों के
साथ ‘वॉर्सो पॅक्ट‘ इस नाम से फौजी संघटना स्थापन की l 1962 में अमेरिका एवं रशिया
के बीच ‘ शीतयुद्ध ‘ चरमसीमा पर पहुँच गया और उनमे से निर्माण हुआ ‘क्युबान क्रायसिस
‘ राष्ट्राध्यक्ष केनेडी ने रशिया के साथ किए यशस्वी वार्तालाप से शांत हो गया l 1991 में हुए
सोविएत रशिया के विघटन के बाद इसमें से अनेक देशों ने नाटो में शामिल होने का निर्णय
लिया l एस्तोनिया , लातिविया एवं लिथूवानिया जैसे तीन देश तथा बल्गेरिया, हंगेरी ,
पोलंड , झेक रिपब्लिक , रूमानिया एवं स्लोवाकिया इन देशों को नाटो में प्रवेश दिया गया l
शीतयुद्ध समाप्त होने पर नाटो की आवश्यकता ख़त्म हुई थी लेकिन अमेरिका की शस्त्रास्त्र
लॉबी , सीआयए , बड़े कार्पोरेट्स धनवान तथा राजनेताओं ने नाटो जिंदा रखी l विश्व के
युद्ध तथा युद्ध के बाद ध्वस्त हुए देशों को फिर से खड़ा करना यह उनका धंदा है l इस युद्ध
की क्षति पहुँचा हुआ रशिया कमजोर नहीं बनेगा इसका भी फायदा अमेरिका उठाएगी l
दोनों जर्मनी के विलीनीकरण को रशिया का अनुमति लेते समय पोलंड के पूर्व में नाटो का
विस्तार नहीं होगा ऐसा वचन उस समय के अध्यक्ष रोगन ने गोर्बाचेव को दिया था l
अमेरिका ने उसका पालन नहीं किया l लेकिन युक्रेन का नाटो में सहभागी होना रशिया को
बहुत ज्यादा डरावना लगता था l
अमेरिका ने भी युक्रेन को प्यादा बनाया l रूमानिया , लात्विया , इस्तोनिया , लिथूआनिया
, पोलंड , बल्गेरिया , सर्बिया ,अझरबैजान , अर्मेनिया , जॉर्जिया , तुर्कमेनिया ,
किर्गीस्तान, कझाकस्तान एवं मंगोलिया आदि अनेक देश रशिया की सहायता से स्वतंत्र हुए l
अमेरिका ने कोरिया , ग्वातेमाला , इंडोनेशिया , क्युबा , काँगो , लाओस , विएतनाम ,
कंबोडिया , ग्रेनेडा , लेबोनन , लिबिया , निकारग्वा , इराण , पनामा , इराक , कुवेत ,
सोमालिया , बोस्निया , सुदान , अफगानिस्तान , युगोस्लाविया , येमेन , एवं सिरिया पर
अमानुष हमले किए l वहाँ की सत्ता नष्ट की l उनमें से अनेक देश आज अराजक का सामना
कर रहे हैं l अमेरिका यह सब ‘ विश्व के जनतंत्र का रक्षक ‘ के नाते कर रहे हमले में अपनी
जान गवाई हुई लोगों के बारे में विश्व को कभी हमदर्दी महसूस नहीं हुई l इसमें से अनेक देश
मुस्लिम है और अनेक श्वेत वर्ण के है यह बात अपघात नहीं है l युक्रेन पर जब रशिया हमला

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करता है तब पूरा विश्व रशिया विरुद्ध खड़ा होता है लेकिन वहाँ इस्त्राईल खुले आम गत
अनेक दशकों से पॅलेस्टाईन ध्वस्त कर रहा है इसके बारे में पूरे विश्व को कुछ लेना-देना नहीं l
पुतिन बहुत ही ठंडे दिमाख से आगे बढ़ रहे हैं , रास्ते में आनेवालों को भले-बुरे मार्ग से काँटा
निकाल कर झार बन गए हैं l युक्रेन पर हमला करने की पार्श्वभूमि समझने पर भी उनपर हो
रहे हमले का किसी भी प्रकार के बलबुते पर समर्थन नहीं किया जा सकता l अणुयुद्ध की
धमकी का तो सवाल ही खड़ा नहीं हो सकता l 85 साल पूर्व यूरोप की भूमि पर हिटलर ने
जो उन्माद किया था उस इतिहास की पुनरावृत्ति नजर आ रही है l लेकिन विद्यमान स्थिति
में पुतीन के मित्र राष्ट्र चीन , उत्तर कोरिया इस युद्ध से दूर है l दुसरी ओर अमेरिका , इंग्लैंड
एवं यूरोपीय संघ भी प्रत्यक्षरूप में युक्रेन की मदत करने आगे नहीं बढे l लेकिन इन देशों की
ओर से रशिया को आर्थिक घेरे में लपेटने की नीति अपनाई है l शायद इसमें से पाश्चात्य
राष्ट्रों की एकता अधिक मजबूत होगी l युक्रेन की जनता रशिया का स्वागत करेगी या जल्दी
से हार मानेगी ये पुतिन के दो अंदाज गलत साबित हुए l युक्रेन की जनता एकतरफा अपनी
जान की बाजी लगाकर अपनी स्वतंत्रता कायम रखने के लिए लड़ रही है l उनका राष्ट्राध्यक्ष
बड़ी मुश्किल से तीन-एक घंटो की नींद लेकर , बदन पर केवल टी शर्ट-पँट पहनकर अपनी
जिंदगी की परवाह न करते हुए सीधे रणभूमि में खड़ा है l इसे 56 इंच सीना कहा जाता है l
हास्य अभिनेता राष्ट्राध्यक्ष बन चुका है और अब यह राष्ट्राध्यक्ष जननायक बन चुका है l
हमारे यहाँ नायक के रूप में फुलाई हुई बिजूका की तरह नौटंकी बहाद्दर नेता विनोदी
अभिनेता बन गए है l अर्थात झेलेन्स्की द्वारा कारावास के सभी तरह के गुनाहगारों को रिहा
करके उनके हाथ में शस्त्र देना किसी भी प्रकार का समर्थन नहीं करता l अगर इन गुनाहगारों
की युद्ध में मृत्यु हो गई तो युक्रेन को उन्हें देशप्रेमी हुतात्मा कहना पड़ेगा l
भारत की इस संघर्ष में भूमिका तटस्त है ऐसा ऊपर ही ऊपर आभास निर्माण किया है l यह
नीति इस देश को पं. नेहरु द्वारा दी गई है l अगर ऐसा है तो भारत ने पुतिन एवं नाटो का
विरोध करने का धैर्य दिखाना चाहिए l लेकिन कोरोना महामारी के दरमियान पुतिन केवल
दो ही बार देश से बाहर निकले , उसमें एक बार दिल्ली में आकर मोदीजी के साथ दोस्ती का
ऐलान करके चले गए l रशिया एवं भारत की दोस्ती नेहरूं जी से चलती आ रही है l
बांगलादेश के युद्ध में रशिया ने भारत की मदद की थी l लेकिन मोदीजी की मातृसंघटना
कम्युनिस्तोंको और समाजवादियों को दुश्मन मानती है यह शायद पुतिन को मालूम नहीं
होगा l अमेरिका के पूर्व राष्ट्राध्यक्ष डोनाल्ड ट्रम्प पुतिन के दोस्त हैं और मोदीजी ट्रम्प के
चुनाव के प्रचारक रहे हैं l भारत संरक्षण सामग्री , उर्जा आदि के बारे में बडी मात्रा में
रशिया पर निर्भर है l रशिया के साथ बैर तो चीन के साथ बैर l इन अन्यान्य कारणों से
प्रत्यक्षरूप में मोदीजी सही अर्थ में तटस्त नहीं है l इसके कारण युक्रेन के लोगों के क्रोध का

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सामना युक्रेनस्थित अनेक भारतीय विद्यार्थियों को करना पड़ा l इसी अवस्था में ही युक्रेन में
अटके हुए 20 हजार भारतीय विद्यार्थियों को भारत में लाने के लिए जो प्रयास करने पड़े
इसका झूटा प्रचार करने का मौका मोदीजी और उनके समर्थक ले रहे हैं l ज्यादातर विद्यार्थी
बिना कुछ खाए-पीए , तीव्र ठंड का सामना करते हुए , सेंकडो मैल पैदल चलकर तो कभी
लाखों रूपए खर्च करके जो भी वाहन मिलेगा उससे पोलंड या रूमानिया की सीमा पर पहुँच
रहे हैं l इसमें लड़कियों की संख्या बडी मात्रा में है l सरकार वहाँ से उनको ला रहा है l ‘
ऑपरेशन गंगा ‘ बहुत पहले , निडरता से करना चाहिए था l युक्रेन एवं रशियाने वहाँ अटके
हुए सभी विदेशी नागरिकों के लिए युद्धविरहित ह्युमॅनेटीरियन कॉरीड़ोर्स तैयार किए l
इसका भी मोदीजी ने भरसक प्रचार किया l भारत के छात्र इतनी बडी मात्रा में उच्चस्तर की
पढाई के लिए जाते है क्योंकि वहाँ अल्प फी में शिक्षा पूरी होती है l शिक्षा हेतु आर्थिक
प्रावधान कम करनेवाले तथा शिक्षण क्षेत्र का खासगीकरण कनेवाले मोदीजी ने कॉंग्रेस के
माथे इसका ठीकरा फोड़ दिया l वास्तव में यह रोकने के लिए आठ सालों का अवधि पर्याप्त
था l कॉंग्रेस ने जो निर्माण किया उसे बेचकर देश चलानेवाले इन्सान की ओर से क्या अपेक्षा
करेंगे ?
यह युद्ध कौनसा मोड़ लेगा यह कहना मुश्किल हैं l पुतिन ठंडे दिमाख से युक्रेन को परेशान
करके हार देंगे यह संभावना अधिक है l अभी युक्रेन से लाखों लोग स्थलांतरित हुए हैं l
लाखों लोग देश छोड़ने की तैयारी में हैं l शहर ध्वस्त हो रहे हैं l अणुयुद्ध तथा जागतिक
महायुद्ध न हो ऐसी विश्व की सभी संवेदनशील एवं सुजान लोगों की इछा है l नाटो से अलग
रहने का निर्णय युक्रेन द्वारा लिए जाना , युद्ध रोकने का एक मार्ग हो सकता है l लेकिन
2022 में एक देश दुसरे देश में सीधे घुसकर हमला करता है और पूरा विश्व इसे देखने के
बजाए और कुछ नहीं कर सकता इसके बारे में पूरे विश्व को आत्मपरिक्षण करना पड़ेगा यह
बात निश्चित है l

पुरोगामी जनगर्जना

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