केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया है। इस समिति की जिम्मेदारी देश में लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाने को लेकर अपना मंतव्य प्रस्तुत करना है। इस समिति में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद, वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एन.के. सिंह, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे, संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप और पूर्व नौकरशाह संजय कोठारी शामिल है। हालांकि सरकार ने लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी को भी शामिल किया था, लेकिन उन्होंने इससे इंकार कर दिया है। वहीं केंद्रीय कानून राज्यमंत्री अर्जुन राम मेघवाल इसके आमंत्रित सदस्य बनाए गए हैं। केंद्र सरकार द्वारा की गई यह कवायद इस कारण से भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है, क्योंकि सरकार ने आगामी 18 सितंबर से लेकर 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र आहूत किया है।
सनद रहे कि यह पूरी कवायद तब की जा रही है जब विपक्षी दलों के द्वारा ‘इंडिया’ के बैनर तले हाल ही में मुंबई में दो दिवसीय बैठक का आयोजन किया गया। यह माना जा रहा है कि केंद्र सरकार के द्वारा इस बैठक के आलोक में ‘एक देश – एक चुनाव’ की पहल की गई है। इस संबंध में फारवर्ड प्रेस ने सामाजिक-राजनीतिक क्षेत्र से जुड़े लोगों से बातचीत की।
लोकतंत्र खत्म करने की साजिश : दीपंकर भट्टाचार्य
भाकपा (माले) के राष्ट्रीय महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने दूरभाष पर बताया कि केंद्र सरकार अब देश में लोकतंत्र को तबाह कर स्थायी रूप से तानाशाही व्यवस्था कायम करने की दिशा में अग्रसर है। पहले भाजपा ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ की बात कहती थी। अब उसके निशाने पर संपूर्ण विपक्ष है। इसका मतलब यह है कि वह देश में केवल एक पार्टी चाहती है। यह मुमकिन है कि आनेवाले समय में वह यह कानून बना दे कि देश में चुनाव की ही कोई आवश्यकता नहीं है। इसलिए केंद्र सरकार देश में लोकतंत्र को खत्म करने के लिए ही पहल कर रही है, जिसका हर स्तर पर विरोध किया जाना चाहिए।
होगा वही, जो मोदी चाहेंगे, बेशक लोकतंत्र की हत्या क्यों न हो : कंवल भारती
वहीं इस संबंध में प्रसिद्ध साहित्य समालोचक कंवल भारती का मत है कि निश्चित तौर पर भाजपा देश में लोकतंत्र के बदले राजतंत्र को स्थापित करना चाहती है और उसका यह एजेंडा बहुत पुराना है। दुखद यह है कि उसे दलित-बहुजनों का साथ मिल रहा है। आप यह देखिए कि भाजपा आधार वोट के मामले में अल्पमत है। उसके पास पारंपरिक रूप से केवल खास वर्ग और खास जातियों का समर्थन है। लेकिन अब उसके हिस्से में दलित-बहुजनों के वोट भी है, जिसके कारण वह रोज-ब-रोज शक्तिशाली हो रही है। आप यह भी देखें कि इस स्थिति तक पहुंचने के लिए कैसे दूरगामी रणनीतियां बनाईं। पहले उसके निशाने पर कांग्रेस और वामपंथी पार्टियां रहीं। और आप यह देखें कि कांग्रेस के पास एक समय द्विज, मुसलमान, दलित और ओबीसी सभी का समर्थन हासिल था। मुसलमान कांग्रेस से दूर हों, इसके लिए बाबरी विध्वंस कराया गया। और मुझे यह भी कहने दें कि कांशीराम ने भी अपनी राजनीति से भाजपा की मदद की। उनकी पूरी राजनीति कांग्रेस के खिलाफ थी। पूना पैक्ट के विरोध के बहाने उन्होंने कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक साइकिल यात्रा निकाली। वे जहां जाते थे, वहां कांग्रेस का विरोध करते थे। वे जब पश्चिम बंगाल गए तो उन्होंने वहां सारे वामपंथियों को बंगाल की खाड़ी में फेंकने की बात की। रही बात ‘एक देश – एक चुनाव’ के मुद्दे की तो भाजपा यह जानती है कि विरोध में कौन है। कुछ थोड़े से राजनीतिज्ञ और बहुत थोड़े से वामपंथी व मुट्ठी भर बुद्धिजीवी। दलित-बहुजनों को तो उसने धर्म का भांग पिला रखा है। इसलिए यह तय है कि वही होगा, जो मोदी चाहते हैं। फिर बेशक वह लोकतंत्र के विरूद्ध ही क्यों न हो।
केवल शिगूफा, और कुछ भी नहीं : श्याम रजक
बिहार सरकार के पूर्व मंत्री श्याम रजक इस मामले में कहते हैं कि यह केवल शिगूफा है। यह इतना सहज नहीं है। यह इसके बावजूद कि यदि संसद में कोई विधेयक पारित कर दिया जाय। इसके लिए देश के सभी राज्यों के विधानसभाओं की सहमति आवश्यक होगी। जब तक सभी राज्यों के विधानसभा इस संबंध में सहमति नहीं देंगे तब तक यह लागू नहीं किया जा सकता है। केंद्र सरकार यह जानती है लेकिन वह जनता को भ्रम में रखना चाहती है। इसकी वजह यह भी है कि विपक्षी एकता उस पर भारी पड़ रही है।
पहले वन ‘नेशन – वन इनकम’ और ‘वन नेशन – वन एजुकेशन’ लागू करे सरकार : नीरज कुमार
जनता दल यूनाईटेड के प्रवक्ता नीरज कुमार इस बारे में कहते हैं कि केंद्र ‘इंडिया’ के कारण बदहवास हो गया है। केंद्र में सत्तासीन भाजपा विपक्षी दलों की एकता से डर गई है। रही बात ‘एक देश – एक चुनाव’ की तो यह समझा जाना चाहिए कि विधानसभा, लोकसभा चुनाव और नगर निकायों के चुनावों के संदर्भ व मुद्दे अलग-अलग होते हैं। जब मुद्दे और संदर्भ अलग होते हैं तो एक साथ चुनाव कराने का औचित्य क्या है। यदि सत्ता पक्ष यह चाहता है कि लोगों में समानता आए तो सबसे पहले जो दलित और वंचित हैं उनको विकास की धारा में सबके समान खड़ा करे। उसे भी समान तरह की शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजी-रोजगार उपलब्ध कराए। ‘एक देश – एक आय’ के लिए सरकार को कानून बनाना चाहिए। इस देश में ‘एक देश – एक शिक्षा’ की बात होनी चहिए। लेकिन सरकार जमीनी काम के बदले हवा-हवाई बातें कर रही है। लेकिन इससे कुछ भी नहीं बदलनेवाला। देश के लोगों ने यह ठान लिया है कि नरेंद्र मोदी की हुकूमत को उखाड़ फेंकेगे।
भाजपा के निशाने पर दलित-बहुजनों की पार्टियां : प्रो. श्रावण देवरे
वहीं जाने-माने राजनीतिक कर्मी व विश्लेषक प्रो. श्रावण देवरे का कहना है कि ‘एक देश – एक चुनाव’ का सीधा असर क्षेत्रीय पार्टियों के ऊपर पड़ेगा। इसकी वजह यह कि आजकल चुनाव एक महंगा आयोजन है। चूंकि भाजपा के पास तो संसाधनों की कोई कमी नहीं है, उसे बड़ी-बड़ी कंपनियं चंदा दे रही हैं। लेकिन क्षेत्रीय पार्टियों के पास आर्थिक संसाधन नहीं है, इसलिए वे टिक नहीं पाएंगीं और खत्म हो जाएंगीं। इसे दूसरे अर्थों में हम कहें तो हमारे देश की संघीय व्यवस्था ही तहस-नहस हो जाएगी और निस्संदेह इसका सबसे बुरा असर दलित-बहुजनों के ऊपर ही पड़ेग।
सत्ता का केंद्रीकरण चाहती है भाजपा : रूपेश
बिहार के जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता रूपेश ने बताया कि इस देश में लोकतंत्र की स्थापना ही इस मकसद से की गई ताकि सत्ता का विकेंद्रीकरण हो। लेकिन मौजूदा सरकार इसके विपरीत केंद्रीकरण पर जोर दे रही है। जब सत्ता विकेंद्रित होती है तो उसका लाभ आम लोगों को मिलता है। लेकिन जब सत्ता व्यक्ति केंद्रित होती चली जाती है तो उसका लाभ शासक वर्ग के लोगों तक ही पहुंचता है। इसलिए केंद्र सरकार का यह फैसला कि देश में एक ही चुनाव हो, संविधान विरोधी है। कहां जनप्रतिनिधियों को हम वापस बुलाने के अधिकार की मांग कर रहे थे और अब सरकार देश में तानाशाही स्थापित करना चाहती है।