रमाशंकर सिंह
लाला दीन दयाल उस्ताद आदमी थे । जिस साल पैदा हुए उसी साल अंग्रेज भारत में photography लेकर आए यानी 1844 और सभी बड़े शहरों में इसे सिखाने के लिए स्टूडीओ खोले गए। स्टूडेंट्स के तौर पर अंगरेज़ और राजा महाराजा के बच्चे जाते थे। काशी नरेश और जयपुर नरेश ने भी इसके कोर्स में admission लिया था लेकिन वो कुछ ख़ास ना कर सके।
एक थे लाला दीन दयाल
रमाशंकर सिंह
लाला दीन दयाल उस्ताद आदमी थे । जिस साल पैदा हुए उसी साल अंग्रेज भारत में photography लेकर आए यानी 1844 और सभी बड़े शहरों में इसे सिखाने के लिए स्टूडीओ खोले गए। स्टूडेंट्स के तौर पर अंगरेज़ और राजा महाराजा के बच्चे जाते थे। काशी नरेश और जयपुर नरेश ने भी इसके कोर्स में admission लिया था लेकिन वो कुछ ख़ास ना कर सके।
Roorkee के Thomason Civil Engineering College से पास होकर इंदौर के Public Works Department में नौकरी के दौरान अपने अंग्रेज दोस्तों के साथ दीन दयाल फ़ोटो खींचने लगे और उनसे बहुत आगे निकल गए । इंदौर के राजा होलकर की मदद से उन्होंने एक स्टूडीओ खोला ।
इंदौर के इस स्टूडीओ में सभी राजा महाराजा अपने तमाम कपड़ों और ज़ेवरात के साथ लकदक आते और फ़ोटो खिचवाते। फ़ोटो के लिए पोज देना भी सिखाया जाता था और उसकी अलग से भारी फ़ीस वसूल की जाती। लगभग 50 सहायकों के साथ इनका स्टूडीओ एक बेहद महँगी जगह थी। जब प्रिन्स ओफ़ वेल्ज़ ( जो बाद में किंग जॉर्ज पंचम कहलाए और ब्रिटेन के राजा बने, भारत आए तो उनकी तस्वीर खींच कर दीन दयाल की शोहरत दुनिया भर में फैल गई। कोई भी ब्रिटिश फ़ोटोग्राफ़र इतनी अच्छी तस्वीर खींच नहीं पाता था। 2 मन का कैमरा और 2-2 किलो के काँच के negatives सम्भालना आसान नहीं था।
उसी दौरान वो हैदराबाद निज़ाम के कोर्ट फ़ोटोग्राफ़र बन गए थे। सिकंदराबाद में महिलाओं के लिए अलग से खोले गए स्टूडीओ को नाम दिया गया “ज़नाना” जहां ब्रिटिश महिला फ़ोटोग्राफ़र मिसेज़ केन्नी उनकी असिस्टेंट थीं ।
उन दिनों हिन्दोस्तान में पेंटर राजा रावी वर्मा का बोलबाला था और हर रजवाड़े के सेनापति, नवाब, राजा महाराजा, अंग्रेज, हिंदुस्तानी उनसे अपनी पोर्ट्रेट पेंटिंग बनवाते थे दीन दयाल की तस्वीरों के प्रिंट आने के बाद एक लम्बी बहस छिड़ गई की कौन सी कला बेहतर है । हैदराबाद के निज़ाम महबूब अली खान उनसे इतना ज़्यादा ख़ुश थे कि उनका बस चलता तो उन्हें निज़ाम ही बना देते। वो ऐसा नहीं कर पाए तो नाम ही निज़ाम जैसा रख दिया – राजा बहादुर मुसव्विर जंग । मुसव्विर यानी तस्वीर बनाने वाला।
“अजब ये करते हैं तस्वीर में कमाल कमाल,
उस्तादों के हैं उस्ताद राजा दीन दयाल”
एक अंग्रेज रीसर्चर ने भारत के architectural ट्रिप पर दीनदयाल की मदद से हज़ारों तस्वीरें खींची जो एक किताब “फ़ेमस मोनुमेंट्स ओफ़ सेंट्रल इंडिया” के नाम से 1886 में छपी । हालाँकि लाला दीन दयाल ज़्यादातर अंग्रेजों, नवाबों और राज घरानों की तस्वीरें खींचते थे लेकिन कभी कभी वो सड़कों, दुकानों और तवायफ़ों की तस्वीरें लेने भी पहुँच जाते थे। उनके स्टूडीओ ने क़रीब 30,000 फ़ोटो बनाए और उनके 2,857 ग्लास प्लेट नेगेटिव के संग्रह को इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर द आर्ट्स, नई दिल्ली ने 1989 में खरीदा था। आज यह उनके काम का सबसे बड़ा भंडार है।
उनका एक बड़ा संग्रह पीबॉडी एसेक्स संग्रहालय, संयुक्त राज्य अमेरिका और दिल्ली में अल्काज़ी संग्रह के पास है। ये सब कुछ दे दा कर 1905 में वो परलोक सिधार गए ।
Roorkee के Thomason Civil Engineering College से पास होकर इंदौर के Public Works Department में नौकरी के दौरान अपने अंग्रेज दोस्तों के साथ दीन दयाल फ़ोटो खींचने लगे और उनसे बहुत आगे निकल गए । इंदौर के राजा होलकर की मदद से उन्होंने एक स्टूडीओ खोला ।
इंदौर के इस स्टूडीओ में सभी राजा महाराजा अपने तमाम कपड़ों और ज़ेवरात के साथ लकदक आते और फ़ोटो खिचवाते। फ़ोटो के लिए पोज देना भी सिखाया जाता था और उसकी अलग से भारी फ़ीस वसूल की जाती। लगभग 50 सहायकों के साथ इनका स्टूडीओ एक बेहद महँगी जगह थी। जब प्रिन्स ओफ़ वेल्ज़ ( जो बाद में किंग जॉर्ज पंचम कहलाए और ब्रिटेन के राजा बने, भारत आए तो उनकी तस्वीर खींच कर दीन दयाल की शोहरत दुनिया भर में फैल गई। कोई भी ब्रिटिश फ़ोटोग्राफ़र इतनी अच्छी तस्वीर खींच नहीं पाता था। 2 मन का कैमरा और 2-2 किलो के काँच के negatives सम्भालना आसान नहीं था।
उसी दौरान वो हैदराबाद निज़ाम के कोर्ट फ़ोटोग्राफ़र बन गए थे। सिकंदराबाद में महिलाओं के लिए अलग से खोले गए स्टूडीओ को नाम दिया गया “ज़नाना” जहां ब्रिटिश महिला फ़ोटोग्राफ़र मिसेज़ केन्नी उनकी असिस्टेंट थीं ।
उन दिनों हिन्दोस्तान में पेंटर राजा रावी वर्मा का बोलबाला था और हर रजवाड़े के सेनापति, नवाब, राजा महाराजा, अंग्रेज, हिंदुस्तानी उनसे अपनी पोर्ट्रेट पेंटिंग बनवाते थे दीन दयाल की तस्वीरों के प्रिंट आने के बाद एक लम्बी बहस छिड़ गई की कौन सी कला बेहतर है । हैदराबाद के निज़ाम महबूब अली खान उनसे इतना ज़्यादा ख़ुश थे कि उनका बस चलता तो उन्हें निज़ाम ही बना देते। वो ऐसा नहीं कर पाए तो नाम ही निज़ाम जैसा रख दिया – राजा बहादुर मुसव्विर जंग । मुसव्विर यानी तस्वीर बनाने वाला।
“अजब ये करते हैं तस्वीर में कमाल कमाल,
उस्तादों के हैं उस्ताद राजा दीन दयाल”
एक अंग्रेज रीसर्चर ने भारत के architectural ट्रिप पर दीनदयाल की मदद से हज़ारों तस्वीरें खींची जो एक किताब “फ़ेमस मोनुमेंट्स ओफ़ सेंट्रल इंडिया” के नाम से 1886 में छपी । हालाँकि लाला दीन दयाल ज़्यादातर अंग्रेजों, नवाबों और राज घरानों की तस्वीरें खींचते थे लेकिन कभी कभी वो सड़कों, दुकानों और तवायफ़ों की तस्वीरें लेने भी पहुँच जाते थे। उनके स्टूडीओ ने क़रीब 30,000 फ़ोटो बनाए और उनके 2,857 ग्लास प्लेट नेगेटिव के संग्रह को इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर द आर्ट्स, नई दिल्ली ने 1989 में खरीदा था। आज यह उनके काम का सबसे बड़ा भंडार है।
उनका एक बड़ा संग्रह पीबॉडी एसेक्स संग्रहालय, संयुक्त राज्य अमेरिका और दिल्ली में अल्काज़ी संग्रह के पास है। ये सब कुछ दे दा कर 1905 में वो परलोक सिधार गए ।
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