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भारत सरकार के विकास की पोल खोल दी ओक्सफैम इंडिया की ताजा रिपोर्ट ने

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,मुनेश त्यागी 

        ओक्सफैम इंडिया की ताजा तरीन रिपोर्ट ने भारत सरकार के विकास की पोल खोल दी है। इसके आंकड़ों और तथ्यों को पढ़कर दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर होना पड़ रहा है।ऑक्सफैम इंडिया की ताजा तरीन रिपोर्ट के अनुसार भारत के सबसे धनी 21 अरबपतियों के पास 70 करोड़ से ज्यादा भारतीयों के धन से भी ज्यादा धन और संपत्ति है। महामारी के समय में पिछले नवम्बर तक भारत की धन-संपत्ति में 121% यानी ₹3608 करोड रुपए प्रतिदिन का इजाफा हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार भारत के 5% धनवान लोगों के पास भारत की 62 परसेंट जनता से भी ज्यादा धन है, जबकि भारत की जनता के निचले 50% तबके के पास केवल 3% धन और संपत्ति है यानि भारत के सत्तर करोड़ लोगों के पास भारतीय धन सम्पदा का केवल 3% से भी कम हिस्से में आता है।

      रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में कुछ धनवान अरबपतियों और खरबपतिओं की आमदनी और संपत्ति लगातार बढ़ रही है। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि भारत में अरबपतियों की संख्या 2020 में 102 थी जो 2022 में बढ़कर 166 हो गई है। इस प्रकार हम देख रहे हैं कि हमारे देश में केवल और केवल अरबपतियों और खरबपतियों का विकास हो रहा है। भारत सरकार की यह बात झूठी है कि पूरा देश विकास कर रहा है। इस रिपोर्ट के अनुसार पूरा देश नहीं, केवल चंद पूंजीपति खरबपति ही विकास कर रहे हैं और केवल उन्हीं का विकास हो रहा है, बाकी सारी जनता तो आर्थिक महासंकट की ओर बढ़ रही है।

       रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि भारत के 100 सबसे ज्यादा अमीर लोगों के पास 54 लाख करोड़ रुपए की संपत्ति है। रिपोर्ट के विश्लेषण में आगे कहा गया है कि अगर भारत के अरबपतियों  की धन संपत्ति पर केवल दो पर्सेंट टैक्स लगाया जाए तो यह संपत्ति 40,423 करोड रुपए होगी जो कुपोषण से पीड़ित जनता का अगले 3 साल तक भरण पोषण कर देगी। ऑक्सफैम इंडिया ने भारत के फाइनेंस मिनिस्टर से आग्रह किया है कि वह भारत के अमीरों पर प्रोग्रेसिव धन कर यानी वैल्थ टैक्स लगाए। 

     ऑक्सफैम इंडिया के सीईओ अमिताभ बहर ने कहा है कि भारत की गरीब जनता, हासिए पर पडे लोग, दलित, आदिवासी, महिलाऐं और अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिक एक दुष्चक्र से पीड़ित करोड़ों अरबों लोग, भारत के अमीरों के मुकाबले ज्यादा टैक्स दे रही है, जिस वजह से भारत में आर्थिक असमानता बढ़ती चली जा रही है। रिपोर्ट में जोर देकर कहा गया है कि भारत में 2012 से लेकर 2021 तक आर्थिक मामलों में 40% की वृद्धि हुई है जिसका फायदा भारत की जनसंख्या के केवल 1% हिस्से को हुआ है और रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में निचले स्तर की जो 50% जनसंख्या है उसके हिस्से में संपत्ति का केवल 3% हिस्सा ही गया है।

      रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत सरकार केवल गरीबों और मध्यवर्ग पर ही टैक्स लगा रही है और वह भारत के अमीरों को कई तरह की रियायत दे रही है। उन पर कोई टैक्स नहीं लगा रही है। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि जीएसटी के 15 लाख करोड़ में से 64 पर्सेंट जीएसटी केवल जनता के निचले 50% से आया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जीएसटी का 33 परसेंट मध्यवर्ग से आया है और केवल 3% ऊपर के 10% धनी वर्ग से आया है।

       भारत की जनसंख्या का निचला 50% तबका अमीरों के मुकाबले 6 गुणा अप्रत्यक्ष कर का भुगतान करता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2020 से दुनिया के 1% धनी लोगों ने पूरी पूरे धन वितरण का दो तिहाई हिस्सा कब्जा लिया है जो दुनिया की सात अरब जनसंख्या के धन से ज्यादा है और दुनिया की 90% जनसंख्या के धन से ज्यादा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अरबपतियों की धन-संपत्ति में रोजाना 2. 7 अरब रुपए प्रतिदिन के हिसाब से इजाफा हुआ है जो एक अरब सात करोड़ मजदूरों के वेतन से ज्यादा है।

      ये आंकड़े प्रदर्शित करते हैं कि जब भारत की सरकार कहती है कि वह भारत के 80 करोड़ लोगों को 5 किलो अनाज प्रति महीना देगी तो यह सब दिखाता है कि भारत में आर्थिक आय की असमानता का स्रोत लगातार बढ़ता जा रहा है और आर्थिक विपन्नता पैदा होती जा रही है। इसे आर्थिक विपन्नता और गरीबी के कारण हमारे देश में अमीर और अमीर होते जा रहे हैं और गरीब और ज्यादा गरीब होते जा रहे हैं।

      इन अमीरों की आमदनी बढ़ने का एक और सबसे बड़ा कारण है कि भारत का पूंजीपति वर्ग अपने 85 परसेंट मजदूरों को न्यूनतम वेतन भी नहीं देता है और रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को कम वेतन मिलता है और हकीकत यह भी है कि भारत के अधिकांश प्रतिष्ठान, हस्पताल और दुकानें अपने मजदूरों से 15-16 घंटे काम कराती हैं और उन्हें मात्र ₹8000 प्रतिमाह भुगतान करती है, जबकि कानून के हिसाब से ओवर टाइम को मिलाकर उन्हें 12 घंटों का लगभग ₹25000 प्रति माह मिलना चाहिए।

      इस प्रकार हम देखते हैं कि भारत के अधिकांश मजदूरों  को लगभग ₹17,000 प्रति माह, प्रति मजदूर को कम वेतन भुगतान किया जा रहा है। इस आर्थिक असमान विकास का एक और सबसे बड़ा कारण है कि सरकार भारत देश के गरीबों पर और मिडिल क्लास पर तरह-तरह की जीएसटी और अप्रत्यक्ष कर लगा रही है, जबकि भारत के अमीरों पर वह वैल्थ टैक्स के नाम से या धनकर के नाम से कोई टैक्स नहीं लगा रही है।

      इस बारे में अनेक अर्थशास्त्रियों और राजनीतिक दलों ने कहा है कि जनता की आर्थिक गरीबी और बढ़ती जा रही आर्थिक अमानता दूर करने के लिए गरीबों को टैक्स में छूट देनी होगी और अमीरों पर वैल्थ टैक्स यानी धनकर लगाना होगा, मगर सरकार इतनी अंधी और बहरी हो गई है और वह पूंजीपतियों के इस कदर दबाव में है कि उसने पूंजीपतियों पर कोई कर नहीं लगा रखा है और वह विशेषज्ञों की सिफारिशों पर भी कोई ध्यान नहीं दे रही है।

       इस प्रकार हम देख रहे हैं कि हमारा देश आर्थिक गरीबी और असमान विकास के कारण महाविनाश की ओर बढ़ रहा है और इसे हकीकत में विकास नहीं कहा जा सकता। यहां तो चंद पूंजीपतियों की चांदी हो रही है और अधिकांश जनता की लुटाई पिटाई हो रही है और वह लगातार आर्थिक विनाश और भयंकर आर्थिक असमानता और तबाही की तरफ बढ़ रही है।

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