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त्याग के बिना शांति संभव नहीं : डॉ. श्रेयांस जैन

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त्याग के बिना शान्ति की प्राप्ति नहीं हो सकती है। अप्राप्त भोगों की इच्छा न करना तथा प्राप्त भोगों से विमुख हो जाना त्याग है। जीवन में जब सच्चे त्याग का आविर्भाव होता है तब मानव पर्याप्त साधन सामग्री के नहीं होने पर भी आत्मसन्तोष और परम आनन्द का अनुभव करता है। भोग लिप्सु व्यक्ति के पास चाहे कितने भी भोग साधन क्यों न हों पर वह कभी भी सन्तोष का अनुभव नहीं कर सकता है। उत्तम त्याग धर्म की प्राप्ति के लिए अनावश्यक वस्तुओं का त्याग करना चाहिए।
त्याग हमारी आत्मा को स्वस्थ और सुन्दरतम बनाता है। त्याग का संस्कार हमें प्रकृति से ही मिला है। वृक्षों में पत्ते आते हैं और झर जाते हैं, फल लगते हैं और गिर जाते हैं। गाय अपना दूध छोड़ती है। गाय यदि अपना दूध न छोड़े तो अस्वस्थता महसूस करती है। श्वास लेने के साथ-साथ श्वास का छोड़ना भी जरूरी है। ये उदाहरण हमें ये प्रेरणा देते हैं कि त्याग एक ऐसा धर्म है जिसके बिना हमारा जीवन भारी कष्टमय हो जाता है।
डॉ. श्रेयांसकुमार जैन, बड़ौत ने दस दिवसीय धार्मिक विज्ञप्तियों के क्रम में उत्तम त्याग धर्म पर विज्ञप्ति जारी करते हुए डॉ. महेन्द्र कुमार जैन को उक्त विचारों से अवगत कराते हुए आगे कहा कि- ‘‘त्यजनं त्यागः’ निश्चय नय से राग-द्वेष को छोड़ना त्याग धर्म है। बाह्य और आभ्यन्तर परिग्रह का त्याग करना वा पात्रों को दान देना त्याग धर्म है।
गृहस्थों के लिए त्याग के स्थान पर दान करने का विधान है। स्व और पर का उपकार करने के लिए अपने द्वारा अर्जित धन का चार प्रकार के दान- आहारदान, अभयदान, ज्ञानदान, औषधिदान में में विनियोग करना त्याग धर्म कहा है। ये चारों प्रकार के दान चाऱि का करता है। विनय को बढ़ाता है। आगम ज्ञान को उल्लसित करता है। पुण्य की जड़ों को पुष्ट करता है। पापों को नष्ट करता है। स्वर्ग सुख प्रदान करता है। परम्परा से मोक्षलक्ष्मी का वरण करता है।
त्याग के बिना शान्ति की प्राप्ति नहीं हो सकती है। उत्तम त्याग धर्म का निर्वाह वही कर सकता है जिसका मिथ्यात्व छूट गया तथा जिसकी कषायें शान्त हो गई। उत्तम त्याग धर्म से निराकुलता प्राप्त होती है। त्याग धर्म सच्चा श्रेयोमार्ग है, अतः आत्मकल्याण के इच्छुक मानव को उत्तम त्याग धर्म अवश्य ही धारण करना चाहिए।

संकलन- डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’
22/2, रामगंज, जिंसी, इन्दौर

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