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मानवाधिकार के बंद रास्ते खोलता: किसान आंदोलन

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सुसंस्कृति परिहार

आज नौ दिसंबर आंदोलन के इतिहास का एक महत्वपूर्ण दिन साबित हुआ जब 378 दिनों से संघर्षरत किसानों की अपनी तमाम मांगों पर सरकार ने सहमति की मुहर लगाई है।यह कथित तौर अमीरों की बफादार सरकार की करारी शिकस्त है तथा अधिकारों के लिए लड़ने वाली ताकतों की विजय है। जिन्हें 2014 के बाद बुरी तरह कुचलने और दहशतज़दा माहौल में दबाने के हर संभव प्रयास किए गए।आज ही सामाजिक कार्यकर्ता एडवोकेट सुधा भारद्वाज जी की रिहाई का भी दिन है जो छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के शोषण के खिलाफ संघर्षरत रहीं हैं उन्हें फर्जी दस्तावेज के आधार पर भीमा कोरेगांव कांड में आरोपी बनाकर पिछले तीन साल से हिरासत में रखा गया था।

Latest update on kisan andolan samyukt kisan morcha: संयुक्‍त किसान मोर्चा  और किसान आंदोलन पर लेटेस्‍ट अपडेट - Navbharat Times


कल मानवाधिकार दिवस है। उससे पहले ये समाचार इस दिवस को और महत्वपूर्ण बना रहे हैं।ताज़ा आकार लेता बैंकों का निजीकरण के ख़िलाफ़ आंदोलन निश्चित तौर पर किसान आन्दोलन से प्रेरणा लेगा तथा अपने अधिकारों के लिए एकजुट होकर लड़ेगा और जीतेगा।देश में पिछले सात साल से मानवाधिकारों का जिस तरह हनन हुआ है वैसा दुनिया के इतिहास में कहीं नज़र नहीं आता । सरकार के पास ना तो नोटबंदी के दौरान मरने वालों की संख्या है ना कोरोनाकाल में पलायन करते प्रवासियों की कोई जानकारी है ना तो कोरोनावायरस के मृतकों की संख्या है उसके पास सिर्फ वैक्सीन लगाने वालों की बढ़ती संख्या है जिसका भोंपू दिन भर बजता रहता है। अहम बात ये है कि जब सरकार आंकड़े ही नहीं रखती तो उनकी मददगार कैसे हो सकती है?जबकि सरकार की जिम्मेदारी बनती है वह देश के तमाम पीड़ित लोगों के मूल अधिकार उन्हें मुहैया कराए।
शुक्रिया मनाइए कि किसानों की आंदोलन के दौरान हुई मौतों से भी सरकार ने अनभिज्ञता ज़ाहिर कर दी थी लेकिन सदन में राहुल गांधी ने तमाम मृतकों की सूची पटल पर रख दी जिससे वे इंकार नहीं कर पाए।

देश में बढ़ती बेरोजगारी, मंहगाई की बढ़ती रफ्तार से होने वाली आत्महत्याएं,भूख से मरते परिवार, निजीकरण के कारण बाहर निकले कामगार, महिला उत्पीड़न,बढ़ती यौन हिंसा के आंकड़ों से कथित डिजिटल इंडिया की छवि कैसी बन रही है इस बात को लेकर सरकार चुप्पी साधे हुए है।शिक्षा और स्वास्थ का जो हाल है वह किसी भी देश के विकास का पैमाना होता है आज दोनों महत्वपूर्ण क्षेत्र किस कदर जर्जर हो चुके हैं।इसे कहने की ज़रूरत नहीं। बड़े बड़े एक्सप्रेस वे बनाकर आम जनता को क्या फायदा मिलेगा।नया संसद-भवन भी क्या देगा?3700करोड़ का पी एम का वी वी आई पी हवाई जहाज भी देश के साथ मज़ाक है।

अब तक जिस तरह के दबाव में मंत्री, अधिकारी, कर्मचारी और अवाम थी।उसे किसान आंदोलन से प्रेरणा और ऊर्जा लेनी की ज़रूरत है।कल मानवाधिकार दिवस पर यह प्रतिज्ञा अवश्य करें कि हक के लिए लड़ने वाले लोगों का साथ दें उन्हें कमज़ोर ना पड़ने दें। आंदोलन शांति पूर्वक अहिंसात्मक हो। लड़की हूं लड़ सकती हूं का आव्हान भी मानवाधिकार का एक जबरदस्त हिस्सा है आखिरकार आधी ज़मीं और आसमान पर उनका अधिकार है लेकिन आज वह अपने देह पर भी अधिकार नहीं रख पाई है। ख़ामोशी का दौर गया चुप्पी तोड़ो।कारा से निकलो ।कई महिला संगठन भी नारी शक्ति को सामने लाने मज़बूत इरादों के साथ जुटी हुई हैं। अपने अधिकारों के लिए लड़ो आगे बढ़ो।याद रखिए जब संविधान की उपेक्षा हो रही हो,विपक्ष की आवाज दफन की जा रही हो तब जन आंदोलन ही कामयाब हो सकते हैं।जैसा हमने किसानों की जीत में देखा।

आज के इस कठिन दौर में किसानों ने अधिकारों का जो दरवाजा खोला है उसे खुला ही रखना है जब तक हम भारत के संविधान के मुताबिक अपने भारत देश को नहीं बना लेते। गांधी जी ने कहा था जब तक हम भारत के अंतिम छोर पर बैठे व्यक्ति को मूल धारा में नहीं ला पाते तब तक चैन से नहीं बैठना है।यह भी हमेशा याद रखिए जनता का जनता के लिए जनता द्वारा शासन ही लोकतांत्रिक शासन है। हमें यह शक्ति संविधान देता है। मानवाधिकार दिवस भी हमें अपने अधिकारों के प्रति सजग करता है।

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