अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

आरएसएस में आस्था रखने वाले लोगों के पेट में मरोड़ें उठने लगीं लेल्ला कारुण्यकरा के पदभार ग्रहण करने से

Share

केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को कुलपति के पद पर एक दलित प्रोफेसर रास नहीं आ रहे हैं। वर्धा में महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में कुलपति के पद पर काम करने का अवसर वरिष्ठ प्रोफेसर लेल्ला कारुण्यकरा को मिला था। कुलपति पद से रजनीश कुमार शुक्ला ने 14 अगस्त, 2023 को इस्तीफा दे दिया और उसी दिन परिसर छोड़ दिया। तब रजिस्ट्रार कादर नवाज खान ने एक आदेश जारी किया कि कारुण्यकरा कार्यवाहक कुलपति के रूप में काम करेंगे। जबसे विश्वविद्यालय बना है तब से यही परंपरा रही है कि सबसे वरिष्ठ प्रोफेसर कुलपति का पद भार तब तक के लिए ग्रहण करेंगे जब तक कि स्थायी कुलपति का चयन और नियुक्ति नहीं होती है।

प्रोफेसर लेल्ला कारुण्यकरा के पदभार ग्रहण करने के बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की विचारधारा में आस्था रखने वाले लोगों के पेट में मरोड़ें उठने लगीं। इसके पीछे एक बड़ी वजह तो यह देखी गई कि प्रोफेसर कारुण्यकरा दलित हैं, जो कि केंद्र सरकार के विश्वविद्यालयों में एकमात्र कुलपति के पद पर दिखने लगे। दूसरा प्रोफेसर कारुण्यकरा का जेएनयू से पढ़ाई और विचारधारा के स्तर पर आंबेडकरवादी होना हैं। 

प्रोफेसर कारुण्यकरा के कार्यकारी कुलपति बनने के बाद शिक्षा मंत्रालय को त्राहिमाम का संदेश भेजा गया। शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के कार्यालय से 19 अक्टूबर, 2023 को प्रो. शुक्ला का इस्तीफा स्वीकार किए जाने की जानकारी दी गई और उसी दिन मंत्रालय ने एक पत्र जारी कर कहा कि कुलपति का कार्यभार आईआईएम नागपुर के निदेशक भीमराय मैत्री को सौंपा जाना चाहिए।

जबकि मंत्रालय के इस तरह के निर्देश का महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के अधिनियम में कोई प्रावधान नहीं है। इतना ही नहीं, दूसरे संस्थानों में भी ऐसे पदों के खाली होने के बाद वरिष्ठ शिक्षकों के द्वारा भरे जाने के नियम हैं। विश्वविद्यालय के कानून के अनुसार, यदि कुलपति का पद रिक्त होता है, तो प्रो-वीसी कार्यभार संभालेंगे और उनकी अनुपस्थिति में, सबसे वरिष्ठ प्रोफेसर कार्यभार संभालेंगे। हालांकि, महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में कोई प्रो-वीसी नहीं है और सबसे वरिष्ठ प्रोफेसर कारुण्यकरा हैं, जो कि एक दलित स्कॉलर हैं।

केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय ( वर्धा) व प्रो. लेल्ला कारुण्यकरा

प्रोफेसर कारुण्यकरा ने शिक्षा मंत्रालय के भीमराय मैत्री को कुलपति का कार्यभार सौंपे जाने के निर्देश का विरोध किया और इसे बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ में चुनौती दी। लगभग पांच महीने तक न्यायालय में सुनवाई की प्रक्रिया चलती रही। और 28 मार्च, 2024 को न्यायमूर्ति एम.एस. जावलकर व न्यायमूर्ति अनिल एस. किलोर की दो न्यायाधीशों की पीठ ने मैत्री की नियुक्ति के शिक्षा मंत्रालय के आदेश को रद्द कर दिया।

28 मार्च, 2024 के फैसले में कहा गया– “उपरोक्त कानून की भाषा को ध्यान में रखते हुए, हमें यह कहने में कोई झिझक नहीं है कि ऐसा तरीका संभव नहीं है।”

अदालत ने कहा कि “कुलाध्यक्ष (भारत के राष्ट्रपति) कुलपति (स्थायी) की नियुक्ति प्रक्रिया को आगे बढ़ा सकते हैं।” हालांकि, 1 अप्रैल, 2024 को अदालत द्वारा जारी एक अन्य आदेश में पूर्व के आदेश में टंकन की त्रुटि की बात कही गई और फिर संशोधन करते हुए कहा गया कि “प्रतिवादी नंबर एक (कुलाध्यक्ष) कानून 2(7) के प्रावधान के अनुसार कुलपति का पद सौंपने के संबंध में नया निर्णय ले सकता है।” 

वहीं प्रोफेसर कारुण्यकरा ने विश्वविद्यालय की नियमावली के अनुसार कुलपति का कार्यभार लेने की सूचना भेज दी। लेकिन उसे शिक्षा मंत्रालय मानने को तैयार नहीं है। बल्कि शिक्षा मंत्रालय ने इन कार्रवाइयों को ‘मनमानी’ माना और 5 अप्रैल को कार्यकारी परिषद की बैठक बुलाने और कारुण्यकरा के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए एक पत्र लिखा। इस पत्र में कहा गया है कि कारुण्यकरा ने ‘स्वयं कई मनमाने पत्र-व्यवहार /आदेश’ जारी किए हैं।

पत्र में कहा गया है– “यह माननीय हाईकोर्ट के पूर्वोक्त फैसले का उल्लंघन है। प्रोफेसर कारुण्यकरा के उपरोक्त कृत्य त्रास और व्यवधान पैदा कर रहे हैं, और विश्वविद्यालय के उचित व सुचारु कामकाज में गंभीर बाधा आ रही है।”

विश्वविद्यालय में रजिस्ट्रार ने विश्वविद्यालय की कार्य परिषद की बैठक बुलाकर प्रोफेसर कारुण्यकरा को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया। रजिस्ट्रार को शिक्षक संघ के अध्यक्ष के रूप में एवं रजिस्ट्रार के रूप में अपने आदेशो व निर्णयों से विश्वविद्यालय को कई बार हास्यास्पद स्थिति में डालने पर तीखी प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ा है और उन्हें निलंबन की कार्रवाई से गुजरना पड़ा है। उनके खिलाफ जांच समिति भी बनाई गई। 

अगर प्रोफेसर कारुण्यकरा को कुलपति के रूप में मंत्रालय स्वीकार नहीं कर रहा है तो इसका मतलब यह है कि मुंबई हाईकोर्ट की नागपुर पीठ द्वारा केंद्र सरकार के नियुक्त किए गए उम्मीदवार को हटाए जाने के बाद पिछले एक अप्रैल से महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय कुलपति के बिना चल रहा है।

बताते चलें कि विश्वविद्यालय के कुलाध्यक्ष भारत के राष्ट्रपति होते हैं, जिन्हें विश्वविद्यालय के प्रशासनिक मामलों में शिक्षा मंत्रालय का सहयोग हासिल होता है। अभी तक केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने प्रो. कारुण्यकरा के खिलाफ कार्रवाई करने का पत्र जारी कर दिया और विश्वविद्यालय ने उस पर अति सक्रिय होकर कार्रवाई भी शुरू कर दी। लेकिन शिक्षा मंत्रालय ने यह तय नहीं किया है कि किसे कुलपति नियुक्त किया जाए।

इस तरह प्रो. कारुण्यकरा के खिलाफ मंत्रालय के निर्देश पर कार्रवाई किए जाने की तलवार लटक रही है।

एफपी डेस्‍क की रपट

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें