रास्ते गांव के

भावना गड़िया
कक्षा-12, उम्र-17
कन्यालीकोट, कपकोट
उत्तराखंड
बेचैन रास्ते एक गांव के,
जैसे किसी कदमों को पुकार रहे हों,
बंद दरवाज़े और मकानों के,
जैसे अन्दर से दस्तक मार रहे हों,
लोग आज सब कुछ छोड़कर,
शहरों में चल दिए हैं,
मानो गांव की नदियां रूठकर,
समुद्र की लहरों में चल दी हों,
वो गांव जहां कभी मेला हुआ करता था,
वो आंगन जहां कभी किलकारियां सुनाई पड़ती थी,
वो खेत जो मग्न होकर लहलहाया करते थे,
आज वह सब कुछ वीरान-सा है,
जैसे किसी को पुकार रहा हो,
लौट आओ फिर उसी मिट्टी में,
ये रास्ते, ये धरती कहे पुकार के,
बेचैन रास्ते एक गांव के।।
कब आएगा नेटवर्क?

पूजा गोस्वामी
कक्षा 12
रौलियाना, गरुड़
उत्तराखंड
पहाड़ पर नेटवर्क ढूंढने गई लड़की,
छेड़छाड़ से वहां भी बच न सकी,
बेटा गांव से परदेस पहुंच गया,
मगर मां बाप से उसका कनेक्शन टूट गया,
घर की खुशियां साझा करने के लिए,
दिन भर मां भटकती रही इधर उधर,
नेटवर्क न होने की वजह से,
बेटे को मिल न पाई घर की कोई खबर,
नेटवर्क की समस्या ने गांव के भविष्य को पीछे छोड़ा,
सबके सपनों को नेटवर्क की कमी ने इस तरह तोड़ा,
आधुनिक समय में भी गांव इस सुविधा से पीछे है,
विकास में पिछड़ने के डर से भागते सब इधर-उधर हैं,
न जाने कब बिछेगा गांव में नेटवर्क का जाल पूरा?
कब होगी अपनों से बात और कब गम दूर होगा।।
मेरा सफ़र

कविता
उम्र-19
लमचूला, गरुड़
बागेश्वर, उत्तराखंड
जिंदगी के इस कठिन डगर में भी,
मुझे तो हर हाल में आगे जाना है,
जीवन की खुशियों को मुझे पाना है,
अभी बहुत कुछ हासिल करना बाकी है,
अभी तो आसमान को छू लेना बाकी है,
मुझे हर लड़की की ताकत बनना है,
इस दुनिया को मुझे कुछ करके दिखाना है,
एक दिन मुझे भी अपने गांव का नाम रोशन करना है,
अभी तो मुझे जिंदगी का एक लंबा सफर तय करना है॥
खुद की कहानी से भी अनजान हूं

पिंकी अरमोली
सुराग, उत्तराखंड
आखिर क्या लिखूं कहानी अपनी?
न अच्छी है और न कुछ बुरी है,
बस दुनिया की भीड़ में जीने चली हूं,
हां, बड़ी मुश्किलों से मैं ढली हूं,
आज किसी की कहानी नहीं,
खुद की कहानी सुनाऊंगी मैं,
बस कहानी लिखी है अपनी,
और आज वही कहानी सुनाऊंगी,
बेटी बेटी कह कहकर दुनिया ने,
न जाने कितनी बार टोका है मुझे,
मगर मुझ पर हुए अत्याचारों को,
क्यों किसी ने नहीं देखा है,
मैं आज सब कुछ लिखकर बताउंगी,
दर्द से भरे लम्हों को मैं फिर से दोहराऊंगी।।
चरखा फीचर्स