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साहिबी मगरमच्छी पीड़ा का पोस्टमार्टम ज़रूरी!                

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                -सुसंस्कृति परिहार

साहिबे इंडिया बहुत अफ़सोसनाक है कि मणिपुर मसलआत पर आपने जो ख़ामोशी तोड़ी वह भी  सीजेआई के हस्तक्षेप  के बाद।महिला पहलवानों के मामले में  आपकी चुप्पी चल गई पर लोगों का दिल दुखा।मुसीबत की मारी भारत की शान ये पहलवान लड़कियां दूसरे देशों के पहलवानों के साथ दांव पेंच में माहिर रहीं पर राजनेताओं से वे सत्याग्रह के रास्ते से परास्त हो गई वे अदालत की शरण में है। मणिपुर की सत्याग्रही इरोम चानू शर्मिला जिन्होंने लगातार 16वर्ष 1958 के विशेष सुरक्षा  बल अधिनियम को हटाने सत्याग्रह  किया वे भी इसी तरह परास्त हुईं थीं उन्होंने राजनीति में प्रवेश लेना चाहा तो उनके अपने लोगों ने उन्हें मात्र 100वोट देकर उनके रास्ते बंद कर दिए। सवाल है क्या महिलाएं आज भी दोयम दर्जे में हैं। उन पर हो रहे अत्याचार और अमानवीय व्यवहार तो यही कहता है।सीजेएम का यह एक्शन सराहनीय है।

बहरहाल बात चुप्पी की जाए जो हमारे साहिब जी को यह बहुत मंहगी पड़ने वाली  है। 3मई से मणिपुर धू धू जलता रहा महिलाओं के साथ दूसरे दिन से सरकारी संरक्षण में यौनिक हमले होते रहे लेकिन साहिब जी विदेशी यात्राओं में मशगूल रहे। यहां तक यूरोपीय संसद में ये मामला उठा भारत के खिलाफ प्रस्ताव भी पास हुआ पर फिर भी साहिब के कान में जूं भी नहीं रेंगी।वे एक चुनाव प्रचारक की भूमिका निभाते रहे।इस घटना को शायद वे मामूली और छोटे राज्य की समस्या मानकर या अपने मुख्यमंत्री पर विश्वास के सहारे छोड़े रहे।जो कहा जा रहा है साहिब की मंशानुरूप काम करता रहा। हालात बाहर ना पहुंचे इसकी जबरदस्त व्यवस्था चाक चौबंद रही इंटरनेट बंद रखे गए।जिसे मुख्यमंत्री ने सहज तौर पर स्वीकारा है लेकिन सच कहां छुपता है देर सबेर उजागर हो ही गया ।जो बात सोशल मीडिया  के ज़रिए घर घर पहुंची वह यूरोपीय संसद तक पहुंच गई  वहां मोदी सरकार के खिलाफ प्रस्ताव भी आया जिस पर सदन ने भारत सरकार को  चेतावनी भी दे डाली। फ्रांस के लोकप्रिय  अखबार लामांद ने तो साहिब को गुजरात का कसाई भी लिख डाला जिससे तमाम देशवासियों में रोष आना वाजिब है किंतु जब मुद्दई ही सुस्त हो तो गवाह क्या करें?

इधर साहिब जी ने विपक्षी एकता से घबराकर अपना बड़ा कद,प्रदर्शित करने दिल्ली में उसी दिन आनन फानन में छुटभैय्ये दलों का जमावड़ा किया। लेकिन वे खुश हो पाते इससे पहले विपक्षी ‘इंडिया’गठबंधन ने उन्हें बेचैन कर दिया।इसी बीच मणिपुर से आए एक वीडियो और दहलते जलते मणिपुर को देखकर सीजेआई ने भारत सरकार को चेतावनी दी यदि सरकार कुछ नहीं कर सकती तो इसे हम देखेंगे। इसके बाद बेमन से ही चंद सेकेंड साहिब जी बोले , ”मणिपुर की घटना से मेरा हृदय पीड़ा और क्रोध से भरा है ।ये घटना शर्मसार करने वाली है। पाप करने वाले कितने हैं, कौन हैं वो अपनी जगह है, पर बेइज्जती पूरे देश की हो रही है। 140 करोड़ देशवासियों को शर्मसार होना पड़ रहा है। मैं मुख्यमंत्रियों से अपील करता हूं कि वो मां-बहनों की रक्षा के लिए कदम उठाएं.”।वे इस पीड़ा के बीच आदतानुसार राजस्थान, छत्तीसगढ़, को बराबर याद किए । मोदी ने कहा, ”घटना चाहे किसी भी राज्य की हो, सरकार  चाहे किसी की भी हो, नारी के सम्मान के लिए राजनीति से ऊपर उठकर काम करें.”यह वक्तव्य देश को स्वीकार्य नहीं क्योंकि यह दबाव से प्रेरित है आपके मन में यदि पीड़ा और क्रोध होता तो आप जलते मणिपुर को यूं बदहाल छोड़कर नहीं जाते और उस आग को बुझाने तत्परता से कदम उठाते क्योंकि यह बताया जा रहा है कि आपको मुख्यमंत्री और राज्यपाल सूचित कर चुके थे।काश आप यह पीड़ा तब व्यक्त किए होते तो कुछ और बात होती ये तो सिर्फ मगरमच्छी आचरण है।

साहिब जी का घटना के 77वें दिन दिए इस भाषण ने समग्र देश में एक चिंगारी प्रज्ज्वलित कर दी। महिलाओं के दुराचार और उत्पीड़न पर बस इतना ही वह भी सीजेआई के दखल के बाद।होना तो यह अब तक चाहिए था यदि सचमुच  दिल में पीड़ा और क्रोध था तो ऐसी बेरहम सरकार को तुरंत बर्खास्त करते और निष्पक्ष जांच का आदेश देते।सच तो यह लगता है कि मणिपुर मुख्यमंत्री और राज्यपाल ने केंद्र  के आदेशानुसार ही काम किया।जबकि उनका दावा है कि दोनों ने प्रधानमंत्री को बराबर राज्य के बिगड़ते हालात की जानकारी दी थी।डबल इंजन सरकार साहिब के बिना कहे कैसे काम कर सकती थी तो वहीं हुआ जो साहिब बहादुर चाहते थे।ऐसा लगता है यह संघ के साथ बिगड़ रहे हालात को सुधारने का उपक्रम भी था। क्योंकि बहुसंख्यक कूकी ईसाई धर्म के अनुयाई हैं उनके तकरीबन 200से अधिक चर्च जलाए जाना इस बात की पुष्टि करता हूं।इसके अलावा बहुसंख्यक समाज मातृसत्तात्मक हैं जो संघ की मनुवादी सोच के खिलाफ है। विदित हो साहिब जी का गुजरात माडल जिसमें अल्पसंख्यकों का बड़े पैमाने पर नरसंहार हुआ था उसी के दम पर संघ ने उन्हें पी एम उम्मीदवार बनाया था।

अब चूंकि मामला सीजेआई चन्द्रचूड़ जी के संज्ञान में है वही मामला निर्णीत होना है तो तमाम काला पीला निश्चित तौर पर उजागर होगा।जनता के प्रति जवाबदेही के लिए कौन कौन सामने आते हैं इसका इंतजार बेसब्री  से जनता कर रही है। यह तय है गुजरात नरसंहार 2002 के बाद मणिपुर नरसंहार 2023साहिब पर भारी पड़ने वाला है आखिरकार इस बार मणिपुर महिलाओं की चीख-पुकार बहुत भारी है उनकी आवाज सारे देश में ही नहीं विदेशों में गूंज रही है। लंबी खामोशी के बाद आई साहसी मगरमच्छी पीड़ा का पोस्टमार्टम बहुत जरूरी है इससे बहुत से राज खुलेंगे।

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