अग्नि आलोक
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कैदी !

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रामकिशोर मेहता

कोई भी किताब
ऐसी नहीं होती
जो काल सापेक्ष न हो
चाहे वह तथाकथित
ईश्वर के द्वारा
लिखी गई ही
क्यों न कहलाती हो !
आदमी से ज्यादा
कभी कुछ नहीं जान पाया ईश्वर !
अपने द्वारा रची गई
तथा कथित किसी भी किताब में
ईश्वर का ज्ञान भी !
समय स्थान व समाज सापेक्ष ही रहा
उससे बेहतर नहीं
और
यदि बाद की
आदम की पीढ़ियों ने
उन किताबों की
आलोचना नहीं की !
तो वे पीढ़ियाँ
समय की कंदराओं में
कैद होकर रह गयीं !
विचार करो
कहीं तुम भी तो
कैदी ही नहीं !

      - सुप्रसिद्ध जनकवि वह दार्शनिक  श्री रामकिशोर मेहता ,अहमदाबाद, गुजरात,संपर्क - 919408230881,ईमेल - ramkishoremehta9@gmail.com


      संकलन - निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद, उप्र,संपर्क -9910629632,ईमेल - nirmalkumarsharma3@gmail.com

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