
कैलाश रावत
सतयुग के अंत में वैशाख शुक्ल तृतीया अक्षय तृतीया को रोहिणी नक्षत्र में परशुराम जी का अवतरण भुगुकुल मैं हुआ ऐ वही महर्षि भुगु है जिनके चरण नारायण ह्रदय पर धारण करते हैं भगवान श्री कृष्ण ने गीता में के दसवें अध्याय में कहां है मैं ऋषियों में भुगु हूं उनके पिता महर्षि जमदग्नि माता सूर्यवंशी प्रतापी सम्राट राजा रेणु की पुत्री देवी रेणुका है मन की गति से चल सकते हैं एवं चिरयौवन का उन्हें वरदान है ओजस्विता तेजस्विता के आगे कोई है नहीं सकता उनके आगे वेद चलते हैं पीठ पर तीनों भरा अक्षत तुणीर सदैव रहता है एक हाथ में शस्त तो दूसरे हाथ में शाप देने दंड देने दोनों में समर्थ है युद्ध काल में आतातयियो का नाश किया तप करके शिवजी को प्रसन्न किया

ज्ञान पर ब्राह्मणों का एकाधिकार कभी नहीं रहा उसे हर वर्ग के लोगों में संपन्न किया विश्व के 2 महान ग्रंथ पहला बाल्मीकि क्रत रामायण दूसरा वेदव्यास क्रत महाभारत के रचयिता दोनों महापुरुष जन्म से ब्राह्मण नहीं थे सूत जी जिन्हें कथा वाचक यह सूत्रधार के रूप में पुराणों को लोक मानस तक पहुंचाने का श्रेय जाता है वह भी ब्राह्मण नहीं थे
हम ब्राह्मण के गौरव का उपभोग करना चाहते हैं पर उसके जीवन आचरण के कठोर अनुशासन को विस्मित कर देते हैं वैदिक काल में ब्राह्मणों का सत्कार इसलिए सबसे अधिक था कि वे कठोर जीवन का निर्वहन करते थे
धर्म शास्त्रों में ब्राह्मणों का स्थान अप्रतिम और अमोध माना गया है लोग कह सकते हैं क्योंकि शास्त्रकार सब के सब ब्राह्मण होते थे इसलिए खुद को सर्वोपरि रखा
फिर भी ब्राह्मण में ऐसा कुछ ना कुछ तो होगा
प्रत्येक धर्म शास्त्रों में बार-बार समाज को सावधान किया गया है कि ब्राह्मणों को रुस्ट होने का अवसर ना दें
ब्राह्मण नैतिकता की पहरी है भाई समाज के विवेक के पहरी प्रतिनिधि होते हैं अतैव उनका धर्म है कि राजा भी कुमाग अधर्म पर चले तो उसका विरोध प्रतिरोध करें राजा के चरणों में बिछा ब्राह्मण चारण हो सकता है ब्राह्मण नहीं वह धन और कीर्ति के लोभ में पढ़कर अपने कर्तव्य से विमुख ना हो सच्चा ब्राह्मण धन यश कीर्ति सम्मान की अपेक्षा ना करें वह स्वयं अपने पुरुषार्थसे अर्जित करें
वास्तविक पक्ष यह है कि ब्राह्मणों के शील स्वभाव चरित्र् तपस्या परोपकार की कल्पना जिस ऊचे धरातल पर की गई है उसे देखते हुए यह सर्वोपरि स्थान प्राप्त हुआ इस को कायम रखना ब्राह्मण समाज की जिम्मेवारी है
भगवान परशुराम जी नारायण के अवतार हैं नारायण जब भी अवतार लेते हैं उनके अवतार का जीवन में प्रत्येक कार्य कहीं ना कहीं निर्मित होता है इसी अवतार में पत्नी का वियोग एक पत्नी सैकड़ों पत्नी रणछोड़ का आक्षेप लगना सब निर्धारित होता है इसलिए नारायण अवतार के कार्यों को कर्म नहीं लिला कहा जाता है भगवान परशुराम जी नारायण के अवतार हैं किसी जाति विशेष का छय नहीं करते भगवान परशुराम जी क्षत्रिय जाति के विरोधी नहीं थे जबरन कामधेनु ले जा रहे हे हैदयवशी राजा सहस्त्रबाहु को युद्ध में माता पिता के हत्यारे हैदय वंशीजो का उन्होंने बंध किया गर्भवती महिलाओं पर कभी उन्होंने हाथ नहीं उठाया ना उनकी हत्या की तभी तो बार-बार बंश उत्पन्न होता था क्षत्रियों के अनेक कुलथे उनमें से एक मात हैदय वंश से उनकी दुश्मनी थी
क्षत्रिय राजा महाराजाओं से उनके बहुत अच्छे संबंध थे अपितु महाराजा जनक जी सहित अनेक राजवंशों के कुल गुरु जी क्षत्रिय कुल द्रोही को कोई क्षत्रिय राजा महाराजा राजवंशी कैसे अपना कुल गुरु बना सकता है भगवान परशुराम जी को क्षत्रिय जाति के शत्रु या संहारक के रूप में प्रचारित करना धर्म शास्त्रों के प्रतिकूल है भगवान परशुराम जी यदि क्षत्रिय द्रोही होते तो भगवान शंकर जी का दिव्य धनुष अजगव कभी क्षत्रिय राजा मिथिला नरेश महाराजा जनक जी के यहां धरोहर के रूप में नहीं रखते महा ऋषि पुलस्त्य कुल शिरोमणि। लंका नरेश रावण के यहां भी रख सकते थे
शक्तिशाली राजा सहस्त्रबाहु अर्जुन ने सत्ता और शक्ति के मद में चूर होकर महर्षि जमदग्नि के आश्रम की गाय कामधेनु को चुरा लिया और आश्रम को तहस-नहस कर दिया उनके पुत्रों की हत्या कर दी क्रोधित परशुराम ने सहस्त्रबाहु सहित हैदयवंशी क्षत्रियो इस समूल नास का संकल्प लिया परशुराम सहस्त्रबाहु अर्जुन को पराजित कर मार डाला भगवान परशुराम का यह संकल्प निरंकारी सत्ता के खिलाफ जनमानस के आक्रोश की अभिव्यक्ति थी जिसे क्रांति कहते हैं और जिसकी ज्वाला शक्तिशाली से शक्तिशाली राज्य भस्म हो जाते हैं। पुरातत्व काल से आज तक अहंकारी निरंकुश सर्व शक्तिमान सताओके विरुद्ध क्रांति का अलख जगाने वाले हर व्यक्ति में परशुराम का अंश होता है जय पराजय के अनेक संघर्षों के बाद अंत में निरंकुश सत्ता परिवर्तित होती है और जनमानस की शक्ति से धारित किसी क्रांतिकारी ऋषि का संकल्प जीता है
सही अर्थों में भगवान परशुराम जी किसी वर्ग विशेष के नहीं वरन् सर्वहारा वर्ग के आक्रोश क्रोध संकल्प संघर्ष के जीवंत प्रतीक है
शस्त्र और शास्त्र श्री विधा का संसार को ज्ञान देने वाले भगवान परशुराम जी के जन्मोत्सव अवसर पर चरणों में शत शत नमन करता हूं
कैलाश रावत
मुकाम पोस्ट मडिया जिला निवाड़ी मध्य प्रदेश 472336
7999606143
9826665847