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संघ में मुसलमानों के प्रवेश का प्रस्ताव और संघ के तृतीय सरसंघचालक बाला साहेब देवरस!

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विनोद कोचर

बाला साहब के कार्यकाल के दौरान ही आरएसएस में मुसलमानों के प्रवेश का प्रस्ताव प्रतिनिधि सभा में विचार के लिए आया था. लेकिन वो ख़ारिज कर दिया गया और देवरस संघ की परंपरागत सोच को नहीं बदल पाए. 

राम बहादुर राय बताते हैं, “मैं इसका साक्षी हूँ. 1975 की इमरजेंसी के दौरान मुस्लिम और आरएसएस नेता साथ साथ जेलों में थे और उनमें आपस में एक सौहार्द बना था. जब जनता पार्टी की सरकार आई तो शाही इमाम वगैरह आरएसएस के दफ़्तर में जाते थे और शाम को अगर नमाज़ का वक्त होता था, तो वहीं नमाज़ भी पढ़ते थे. मोरारजी भाई की आरएसएस को सलाह थी कि वो संघ को हिंदुओं तक सीमित करने के बजाए उसे सब के लिए खोल दें.” 

वो कहते हैं, “1977 की आरएसएस की प्रतिनिधि सभा में इस सवाल पर विचार हुआ. उस पर बहुत बहस हुई. उसमें बाला साहब देवरस का रुख़ था कि हमें आरएसएस को मुसलमानों के लिए खोलना चाहिए. लेकिन उनके जो प्रमुख सहयोगी थे, जैसे यादवराव जोशी, मोरोपंत पिंगले, दत्तोपंत ठेंगड़ी, इन सबने इसका घोर विरोध किया.” 

राय के मुताबिक, “जब बाला साहब के अलावा सभी लोग इसके विरोध में खड़े हो गए तो उन्होंने अपने समापन भाषण में इस अध्याय को बंद किया. अगर ये फ़ैसला बाला साहब के ऊपर छोड़ा जाता तो वो संघ की शाखाओं में सबको आने की अनुमति दे देते.”

♂ ( बीबीसी हिंदी में रेहान फजल के एक लेख का अंश)

( अगर ऐसा हुआ होता तो संभव है कि संघ का हिन्दूराष्ट्रवाद ,सर्वधर्मसमभाव के सर्वोच्च वैचारिक शिखर की ओर उड़ने के लिए अपने संगठन के पंख खोल देने में कामयाब हो जाता और उसका वर्तमान नफ़रत व हिंसा फैलाऊ वीभत्स चेहरा भारतीय अस्मिता को शर्मसार नहीं करता)

विनोद कोचर

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