अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

मनोरोग होर्डिंग-डिसऑर्डर : जानकारी और बचाव 

Share

     डॉ. नीलम ज्योति 

 घर के किसी कोने में रद्दी का ढेर लगा है, तो रसोई में घुसते ही कई पुराने डिब्बे और टूटी हुई टोकरियां अभी भी प्याज और लहसुन से भरी हुई हैं। थोड़ा और आगे बढ़ें, तो अलमारी में पुरानी साड़ियों का अंबार लगा है और फटी हुई जींस भी फेंकने का मन नहीं करता है। 

     ये सब देखने और सुनने में थोड़ा सा अटपटा तो लगता है, मगर यह एक सामान्य समस्या है। जिससे बहुत सारे लोग ग्रसित हैं। साइकोलॉजी की भाषा में इसे होर्डिंग डिसऑर्डर  कहा जाता है। यानी उन चीजों को भी इकट्ठा करके रखना, जो अब इस्तेमाल में नहीं हैं या खराब होने की कगार पर हैं।

एंग्ज़ाइटी एंड डिप्रेशन एसोसिएशन ऑफ अमेरिका के अनुसार होर्डिंग डिसऑर्डर यानि संग्रहण विकार उस स्थिति को कहा जाता है, जब कोई व्यक्ति ऐसी वस्तुओं को त्यागने में कठिनाई का सामना करता है, जो उपयोगी नहीं हैं। 

     इसके चलते व्यक्ति घर पर रखी किसी भी पुरानी चीज़ को फेंकना नहीं चाहता है। फिर चाहे, वो अखबार हो, पुराने कपड़े हो, घरेलू सामान हो या टूटे खिलौने। इसका असर धीरे-धीरे व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर भी दिखने लगता है।

     साइकियाट्रिक एसोसिएशन के अनुसार 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में इसके मामले सबसे अधिक पाए जाते हैं। ये समस्या अक्सर किशोरावस्था के दौरान शुरू हो जाती है और फिर उम्र के साथ व्यवहार पर इसका प्रभाव बढ़ने लगता है। इसके चलते 30 की उम्र के बाद ये समस्या बढ़ने लगती है।

      अमेरिकन साइकियाट्रिक एसोसिएशन के रिसर्च के मुताबिक होर्डिंग डिसऑर्डर ओब्सेसिव कंपल्सिव स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर में से एक है। शोध में पाया गया कि से समस्या 2 से 6 फीसदी तक नार्थ कंट्रीज़ के युवाओं में पाई जाती है। जमाखोरी की इस समस्या से ग्रस्त 55 से 62 फीसदी लोग डिप्रेसिव डिसऑर्डर के शिकार हैं. इसी तरह 34 फीसदी लोगों में एंग्जाइटी डिसऑर्डर पाया जाता है और 28 फीसदी लोग सोशल फोबिया से ग्रस्त हैं।

*मेंटल हेल्थ के लिए अच्छा नहीं है होर्डिंग डिसऑर्डर :*

    1. एंग्जाइटी :

सर गंगा राम हॉस्पिटल की सीनियर कंसल्टेंट क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ आरती आनंद का कहना है किj रोजमर्रा के जीवन में छोटी- छोटी बातों पर बढ़ने वाला तनाव एंग्जाइटी का कारण बनने लगता है।

      इससे व्यक्ति इनसिक्योर महसूस करने लगता है, जिससे वो अपनी चीजों को किसी के साथ शेयर करने या उन्हें फेंकने से कतराता है।

*2. अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर :*

ये एक मेंटल हेल्थ कंडीशन है। इस समस्या से ग्रस्त व्यक्तियों का व्यवहार हाइपरएक्टिव और इंपल्सिव होने लगता है। वे लंबे वक्त तक एक स्थान पर बैठकर किसी कार्य को पूरा नहीं कर पाते हैं।

     इससे ग्रस्त व्यक्ति अपने सामान को लेकर बेहद कांशियस रहता है। साथ ही किसी भी बात को जल्दी मन से नहीं निकाल पाता है।

*3 डिमेंशिया का कारण :*

भावनाओं को व्यक्त करने में होने वाली परेशानी और चीजों को आसानी से न समझ पाना डिमेंशिया की समस्या का संकेत देती है। वे लोग जो डिमेंशिया से ग्रस्त है उन्हें हार्डिंग डिसऑर्डर का सामना करना पड़ता है। 

    इसमें व्यक्ति चीजों को कैटेगराइज़ करने और उनकी आवश्यकता को बेहतर तरीके से नहीं समझ पाता है।

*4. अवसाद का जोखिम :*

बढ़ते डिप्रेशन के चलते अध्कितर लोग अपने आसपास फैली चीजों और साफ सफाई का पूरा ख्याल नहीं रख पाते हैं। वे लोग जो अधिक तनाव लेते हैं, उन्हें डिप्रेशन का सामना करना पड़ता है। लंबे वक्त तक डिप्रेशन में रहने से होर्डिंग डिसऑर्डर की समस्या बढ़ जाती है।

इससे राहत पाने के लिए डॉ. मानवश्री द्वारा सुझाए गए इन टिप्स को फॉलो करें :

   *1. सोचें और समझें :*

इस स्थिति से निपटने का सबसे पहला स्टेप यही है कि आप अपने आसपास की चीजों के बारे में सोचें और समझें कि क्या वाकई आपको इनकी जरूरत है? क्या इन्हें फेंक दिए जाने या किसी को दे दिए जाने से आपको कुछ नुकसान हो सकता है? 

     अगर नहीं, तो आपको आगे बढ़कर इन चीजों को हटा देना चाहिए। शुरुआत में यह थोड़ा जटिल लग सकता है। मगर इसे आसान बनाने के लिए आप अपने परिवार के सदस्यों और दोस्तों से सलाह ले सकते हैं।

*2 कॉग्नीटिव बिहेवियरल थेरेपी :*

    होर्डिंग की समस्या से निपटने के लिए कॉग्नीटिव बिहेवियरल थेरेपी का उपयोग किया जाता है। इसकी मदद से थेरेपिस्ट इस बात पर फोकस करते हैं कि व्यक्ति खराब और पुराने वेस्ट मेटीरियल को फेंकने की बजाय उसे क्यों एकत्रित कर रहा है। ये थेरेपी सोलो या ग्रुप दोनों तरह से की जाती है।

*3. फेमली और फ्रेंड्स से अटैचमेंट :*

किशोरावस्था में भी अधिकतर लोग होर्डिंग डिसऑर्डर का शिकार हो जाते हैं। ऐसे में परिवार वालों का समय और दोस्तों का साथ दोनों ही आवश्यक है। इससे व्यक्ति अकेलेपन से बाहर निकलता है और सही व गलत में फर्क को जानने समझने लगता है।

*4. मेडिटेशन :*

  कुछ वक्त ध्यान और योग के लिए निकालना भी मेंटल हेल्थ के लिए फायदेमंद साबित होता है। इससे व्यक्ति ऑर्गनाइज़ होने लगते हैं और अपने आसपास के माहौल को हेल्दी रखते हैं। नियमित मेडिटेशन से नींद न आने की समस्या भी हल हो जाती है।

*5. मेडिसिन :*

मेंटल हेल्थ को बूस्ट करके और दिमाग को रिलैक्स रखने के लिए जांच के बाद दी जाने वाली दवाओं का सेवन करे। डॉक्टरी सलाह से दवा लेने से मेंटल हेल्थ प्रॉबलम्स कम होने लगती हैं। साथ ही चीजों पर फोकस करने की क्षमता में भी सुधार आने लगता है।

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें