पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टी (पीयूसीएल) ने दिल्ली पुलिस द्वारा मानवाधिकार कार्यकर्ता और एपीसीआर के महासचिव नदीम खान का उत्पीड़न किए जाने की निंदा की है। संगठन ने कहा है कि जिस तरह से निशाना बनाकर नदीम खान को परेशान किया जा रहा है वह बेहद चिंता का विषय है। उसने आरोप लगाया है कि ट्विटर पर कुछ सोशल मीडिया एकाउंट के इशारे पर नदीम खान को परेशान किया जा रहा है।
गौरतलब है कि 30 नवंबर को शाहीन बाग के एसएचओ के नेतृत्व में दिल्ली पुलिस की एक टीम बंगलुरू पहुंच गयी और वहां अपने भाई के यहां रुके नदीम खान की गिरफ्तारी की कोशिश शुरू कर दी। जबकि न तो टीम के पास उनकी गिरफ्तारी का कोई वारंट था और न ही उससे संबंधित कोई आदेश।
पीयूसीएल के मुताबिक शाम को करीब 5 बजे से रात 9 बजे तक पुलिस उनके अपार्टमेंट से जुड़े हाल में बैठी रही और उन पर दबाव बनाती रही कि वह उनके साथ अनौपचारिक हिरासत में दिल्ली चलें।
यह बात उसी दिन दोपहर में शाहीन बाग थाने में दर्ज एक एफआईआर की जांच के सिलसिले में थी। वह एफआईआर उसी दिन 12.48 मिनट पर दायर किया गया था। और उसी थाने की पुलिस शाम पांच बजे बंगलुरू स्थित नदीम खान के भाई के घर पहुंच गयी।
पीयूसीएल का कहना है कि पुलिस को ऐसी क्या जल्दी थी जिसके चलते वह सेक्शन 35(3) के तहत बगैर कोई नोटिस जारी किए या फिर गिरफ्तारी का कोई वारंट जारी किए नदीम खान को अपने साथ ले जाने के लिए बंगलुरू पहुंच गयी। तकरीबन छह घंटे वहां बिताने के बाद पुलिस की टीम ने एक नोटिस वहां चस्पा कर दिया।
जिसमें उनके शाहीन बाग थाने में पेश होने के लिए कहा गया है। लेकिन इन छह घंटों के दौरान पुलिस लगातार नदीम खान और उनके भाई के परिवार को परेशान करती रही। इसके साथ ही उसने अवैध तरीके से कमरे में घुसने की कोशिश की।
बताया जा रहा है कि मुकदमा सेक्शन 196, 353(2) के तहत दर्ज किया गया है। इन सभी के लिए अधिकतम सजा तीन साल से कम है। और कानून के मुताबिक अगर सजा की मियाद 7 साल से ज्यादा न हो तो उस केस में किसी की गिरफ्तारी की जरूरत नहीं पड़ती है।
इसके बावजूद शाहीन बाग के थानाध्यक्ष ने नदीम खान को धमकी देने की कोशिश की। जो अपने आप में कानूनन अपराध है। और उन्हें बगैर किसी कानूनी प्रक्रिया का पालन किए अपने साथ दिल्ली आने का उन्होंने दबाव डाला।
नदीम खान एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स के राष्ट्रीय महासचिव हैं, जो एक राष्ट्रीय स्तर का मानवाधिकार संगठन है। एफआईआर दर्ज होने से पहले 29.11.2024 को तकरीबन रात 9 बजे 20-25 पुलिसकर्मी दिल्ली स्थित एपीसीआर दफ्तर पहुंचे बगैर किसी पूर्व सूचना या फिर नोटिस दिए।
उनके साथ एफआईआर की कोई कापी भी नहीं थी। न ही इस सिलसिले में किसी फोन के जरिये उनसे संपर्क किया गया और न ही उस कार्रवाई के बारे में उनको कोई जानकारी दी गयी। क्योंकि उस समय दफ्तर बंद था तो उन्होंने सिक्योरिटी गार्ड और संगठन के दूसरे सदस्यों से एपीसीआर के महासचिव नदीम खान के बारे में जानकारी ली।
पीयूसीएल ने कहा है कि बगैर एफआईआर दर्ज किए 20 से ज्यादा पुलिसकर्मियों का नदीम खान के दफ्तर पहुंचना उनके गलत इरादे को जाहिर करता है। जब उनके इस पूछताछ के आधार के बारे में पूछा गया तो शाहीन बाग पुलिस स्टेशन के हेड कांस्टेबल योगेश ने दफ्तर पर मौजूद वकीलों को कोई भी विवरण देने से इंकार कर दिया।
इतना ही नहीं हेड कांस्टेबल ने वकीलों से बदतमीजी भी की। और उनको इसका नतीजा भुगतने की धमकी भी दे डाली। इसके साथ ही वकीलों ने दफ्तर पर रेड डालने के पीछे की वजह पूछी तो उन्होंने उसका कोई उत्तर नहीं दिया।
एफआईआर के पीछे के कारणों के बारे में छानबीन करने पर पता चला कि उन पर हाल के दिनों में हुई भारत में घृणा और नफरत की घटनाओं पर आधारित एक प्रदर्शनी में शामिल होने का आरोप है। प्रदर्शनी में सुप्रीम कोर्ट में पारित तहसीन पूनावाला बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के फैसले को भी लगाया गया था, जिसमें कोर्ट ने भीड़ हिंसा के मामलों से निपटने के लिए गाइडलाइन जारी की थी।
पीयूसीएल ने कहा कि यह निश्चित तौर पर कुछ और नहीं बल्कि बोलने की आजादी, नागरिक स्वतंत्रता की वकालत और संवैधानिक अधिकारों को आपराधिक बना देना है।
पीयूसीएल ने नदीम खान के खिलाफ दायर एफआईआर को तत्काल रद्द करने की मांग की है। इसके साथ ही उसने नदीम और उनके परिवार के सदस्यों के उत्पीड़न पर तत्काल रोक लगाने के लिए कहा है।
साथ ही संगठन ने शाहीन बाग के एसएचओ के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की है। जिसमें उनके खिलाफ अवैध रूप से धमकी देने, प्रताड़ित करने और अवैध प्रवेश से संबंधित धाराएं लगाने की मांग की गयी हैं। विज्ञप्ति पीयूसीएल की अध्यक्ष कविता श्रीवास्तव और राष्ट्रीय महासचिव वी सुरेश की ओर से जारी की गयी है।
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