सुशील मानव
प्रयागराज। पीयूसीएल की अध्यक्ष सीमा आज़ाद और अधिवक्ता हमसफ़र विश्वविजय ने अमर उजाला अख़बार के झूठे, निराधार और बेबुनियाद रिपोर्ट के लिए अख़बार के संपादक नवीन सिंह पटेल, और वीरेन्द्र सिंह पठानिया (मुद्रक और प्रकाशक) के खिलाफ़ मानहानि का नोटिस भेजकर 10 दिनों के भीतर माफ़ी माँगने और माफ़ीनामा प्रकाशित करने के संदर्भ में लीगल नोटिस भेजा है। गौरतलब है कि 30 अगस्त को राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के छात्र देवेंद्र आज़ाद के प्रयागराज शिवकुटी, गोविंदपुरी स्थित लॉज़ में छापेमारी करके देवेंद्र आज़ाद को हिरासत में लेकर छः घंटे तक पूछताछ किया था। देवेन्द्र आज़ाद मूलतः आगरा के निवासी हैं जो इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शोध छात्र हैं और इंक़लाबी छात्रमोर्चा के महासचिव हैं।
एऩआईए द्वारा छापेमारी की ख़बर को, 31 अगस्त को अमर उजाला ने अपने प्रयागराज संस्करण के मुख्य पृष्ठ पर –“प्रयागराज व महराजगंज में नक्सल ठिकानों पर छापे” शीर्षक से छापा। इसके अगले दिन यानि 1 सितंबर को अख़बार ने “एनआईए के रडार पर अर्बन नक्सल मूवमेंट से जुड़े स्लीपिंग सेल मॉड्यूल” शीर्षक से एक बैकअप रिपोर्ट छापी। सिर्फ़ इतना ही नहीं अपने कथित जानकारों (सरकारी) के हवाले से अंदर रिपोर्ट में अख़बार ने लिखा- “जानकारों का कहना है कि प्रयागराज नक्सल मूवमेंट को प्रत्यक्ष या परोक्ष समर्थन देने वालों का प्रमुख केंद्र रहा है।
यही वजह है कि एनआईए की ओर से दर्ज़ केस की जाँच के क्रम में प्रयागराज का नाम उभरकर आया है। एफआईआर में नामज़द लोगों में सबसे ज़्यादा संख्या मूल रूप से प्रयागराज में रहने वालों की है।” इस ख़बर की हेडलाइन में जिस तरह से सरकार द्वारा ईज़ाद ‘अर्बन नक्सल’ शब्द का इस्तेमाल अख़बार द्वारा किया गया है वो न सिर्फ़ शर्मनाक है बल्कि पत्रकारिता के बुनियादी वसूलों के ख़िलाफ़ भी है। मीडिया को सत्ता का स्थायी विपक्ष बताया गया है और मीडिया सत्ता की गढ़े शब्दों को और उनकी ज़बान में बोल रहा है।
सरकारी प्रवक्ता बन गये हैं हिंदी अख़बार
संयुक्त किसान मोर्चा आज़मगढ़ के संयोजक राजेश आज़ाद बताते हैं कि अमर उजाला अख़बार ने जनवरी 2023 में आजमगढ़ एयरपोर्ट विस्तारीकरण में ज़मीन लूट के खिलाफ़ खिरिया बाग किसान आंदोलन, बीएचयू और पूर्वांचल के किसानों के बारे में बढ़ा-चढ़ाकर झूठी भड़काऊ ख़बरों को प्रकाशित किया था। इन ख़बरों के शीर्षक थे- आंदोलन अर्बन नक्सल चला रहे हैं और बीएचयू सहित पूरे पूर्वांचल में 31 अर्बन नक्सली किसान आंदोलन में सक्रिय हैं। इस ख़बर के ख़िलाफ़ हम लोगों ने अमर उजाला के अख़बारों को जगह जगह जलाकर विरोध का आह्वान किया था और इसके एडिटर, चीफ एडिटर से फोन करके सीधी बात हुयी तब जाकर उन लोगों ने माफी मांगी और बोले कि ऊपर से दबाव था। हम लोगों ने कहा कि ऊपर का दबाव अन्य अखबारों पर क्यों नहीं काम आया?
पिछले साल एनआईए रेड के बाद हिंदी अख़बारों के टारगेट पर रही भगत सिंह छात्र मोर्चा अध्यक्ष आकांक्षा आज़ाद बताती हैं कि पिछले वर्ष 5 सितंबर 2023 को जब भगत सिंह स्टूडेंट्स मोर्चा बनारस के सदस्यों के रूम पर एनआईए का छापा पड़ा था तब उस समय दैनिक भास्कर की न्यूज वेबसाइट द्वारा इस छापे की रिपोर्टिंग आपत्तिजनक तरीक़े से की गयी थी। इस मामले में हमने न्यूज़ रिपोर्टर से बात करके आपत्ति दर्ज़ करवायी। जिसके 1 घंटे के भीतर सुधार किया गया और माफ़ी मांगी गयी।
रिपोर्टिंग कुछ इस तरीक़े से थी की भगत सिंह स्टूडेंट्स मोर्चा के सदस्यों के घरों से एनआईए द्वारा संदिग्ध लैपटॉप, बहुत सारे मेमोरी कार्ड, हार्ड डिस्क आदि बरामद किया है जिसको जाँच के लिए लैब में भेजा गया है। जबकि वास्तविकता में एनआईए द्वारा कोई लैपटॉप और हार्ड डिस्क नहीं भेजा गया था। इस सिलसिले में जब रिपोर्टर से पूछा गया कि आपने किस प्रेस रिलीज के आधार पर यह ख़बर चलायी है तो उन्होंने अपनी ग़लती स्वीकार की और पूर्व ख़बर में पेश किये गये गलत तथ्यों में फ़ौरन सुधार किया।
पत्रकार और हिंदी मासिक पत्रिका ‘दस्तक’ की संपादक सीमा आज़ाद कहती हैं कि चंडीगढ़ के अधिवक्ता और एक्टिविस्ट अजय सिंघल को एनआईए ने तीन दिन की रिमांड पर लिया है। ज़ाहिर है अब पूछताछ के नाम पर आधा-सच आधा झूठ एनआईए इन अख़बारों को पास करेगी और वो लोग मिर्च मसाला लगाकर लोगों को परोसेंगे। कल से ये सिलसिला शुरु हो जाएगा और आपको तमाम हिंदी अख़बारों में देखने को मिलेगा।
अमर उजाला के ख़िलाफ़ मानहानि
सिर्फ़ छापेमारी हुयी, और कुछ नहीं। यानी बिना किसी जाँच और न्यायिक प्रक्रिया से गुज़रे ही अमर उजाला अख़बार ने छात्रों को नक्सली करार दे दिया। साथ ही इस मामले को पिछले साल पीयूसीएल अध्यक्ष सीमा आज़ाद और उनके भाई मनीष आज़ाद और रितेश विद्यार्थी से जोड़कर लिखते हुए अख़बार ने लिखा कि “एनआईए ने इस मामले में मनीष आज़ाद व उसकी पत्नी अमिता शिरीन, रितेश विद्यार्थी व उसकी पत्नी सोनी आज़ाद विश्व विजय व उसकी पत्नी सीमा आज़ाद, आकांक्षा आज़ाद व राजेश आज़ाद को केस में नामज़द किया था।”
सीमा आज़ाद बताती हैं कि “एनआईए ने केस में नामज़द किया है, “यह दावा तथ्यहीन, झूठा, निराधार और बेबुनियाद है। साथ ही अख़बार ने हमारे बारे में यह ख़बर लिखते हुये अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया है। गौरतलब है कि सीमा आजाद, हाईकोर्ट की अधिवक्ता और मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल की प्रदेश अध्यक्ष हैं। इसके अलावा वो कहानीकार और सम्मान प्राप्त कवि, पत्रकार और संपादक हैं, सामाजिक कार्यकर्ता और जागरुक नागरिक तो वो हैं ही।
बावजूद इसके उनके परिचय में अख़बार द्वारा उन्हें विश्वविजय और ‘उसकी पत्नी सीमा आजाद” कहकर लिखना उनकी पहचान और अस्मिता को रिड्यूस करके उनकी ग़रिमा और व्यक्तित्व का हनन करना है। इससे यह भी पता चलता है कि यह हिन्दी भाषी अख़बार किस हद तक पितृ सत्ता को पोषित करता है और स्त्री की पहचान को उसके पति से जोड़कर देखता है। इस तरह अपनी पितृवादी ग्रंथि के वशीभूत होकर अख़बार ने स्त्री की गरिमा को ठेस पहुंचाने का काम भी किया है।
पीयूसीएल अध्यक्ष सीमा आज़ाद बताती हैं कि उनके ख़िलाफ़ एनआईए द्वारा नामजद़ एफआईआर की झूठी ख़बर लिखते हुए अमर उजाला अख़बार ने न तो उनका बयान लिया, न ही इसकी पुष्टि करने की ज़रूरत समझी।
सिर्फ़ इतना ही नहीं 30 अगस्त को हुई एनआईए छापेमारी पर पीयूसीएल अध्यक्ष के तौर पर सीमा आज़ाद द्वारा भेजे गये बयान को भी अख़बार ने प्रकाशित करना ज़रूरी नहीं समझा। जबकि पत्रकारिता की बुनियादी बातों में बताया जाता है कि किसी भी मामले में दोनों पक्षों की बातें, उनके बयान सामने आना चाहिए। ज़ाहिर है अमर उजाला ने इस मामले में दुर्भावना से ग्रस्त होकर एकपक्षीय और तथ्यहीन ख़बरों को प्रकाशित किया है जो एक आपराधिक कृत्य है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ता विश्वविजय का आरोप है कि उक्त झूठी और तथ्य से परे ख़बर को अख़बार ने एक सोची समझी रणनीति के तहत दुर्भावनापूर्ण साजिश की मंशा के तहत प्रकाशित किया है, जो कि हमारी मानहानि करने वाली, महिला की गरिमा पर हमला करने वाली है, जो कि एक आपराधिक कृत्य है। गौरतलब है कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 हर नागरिक को केवल जीवन का नहीं, सम्मानपूर्ण जीवन जीने का हक़ देता है।
अधिवक्ता दम्पति का कहना है कि हमारी गरिमा को क्षति पहुंचा कर अमर उजाला ने हमारे संवैधानिक अधिकारों का हनन किया है, और हमारी प्रतिष्ठा को अपूरणीय क्षति पहुंचायी है। अतः उन्होंने नोटिस भेजकर अख़बार को 10 दिनों के भीतर पहले पेज पर माफ़ीनामा प्रकाशित करने और मानहानि की क्षतिपूर्ति के लिए प्रतिव्यक्ति 50 लाख रूपये के हिसाब से 1 करोड़ रूपये का भुगतान करने को कहा है।
एनआईए रेड का मतलब है कि सरकार अपनी आलोचना नहीं बर्दाश्त कर पा रही
इससे पहले इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मेधावी छात्र और इंक़लाबी छात्र मोर्चा के सहसचिव देवेंद्र आज़ाद के इलाहाबाद स्थित कमरे पर एनआईए द्वारा की गई छापेमारी की पीयूसीएल ने कड़े शब्दों में निंदा करते हुए कहा कि समाज की बेहतरी के लिए सक्रिय लोगों के निवास स्थानों पर पिछले दो सालों से एनआईए जिस तरह से छापेमारी कर रही है, उससे जाहिर होता है कि सरकार न तो अपनी आलोचना सुन पा रही है, न ही अपने विरोधियों को बर्दाश्त ही कर पा रही है। देश भर के सामाजिक कार्यकर्ताओं के निवास स्थानों पर रेड कर वह बार-बार यही संदेश दे रही है और दहशत फैलाने का काम कर रही है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ द्वारा हाल ही में सोशल मीडिया से जुड़ा जो ऑर्डर पास किया गया है, वह भी यही बात बोल रहा है। शर्म की बात यह है कि पीयूसीएल का मीडिया वक्तव्य छापना अख़बारों ने ज़रूरी नहीं समझा।
इंक़लाबी छात्र मोर्चा के सहसचिव हैं देवेंद्र आज़ाद
देवेंद्र आजाद आगरा के रहने वाले हैं और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ाई के लिए वे इलाहाबाद में रहते हैं। इसी साल उन्होंने राजनीति शास्त्र में एमए किया है और पिछले साल उन्होंने जूनियर रिसर्च फेलोशिप की परीक्षा भी पास कर ली है। वे मेधावी छात्र हैं, और छात्रों की मांगों को उठाने वाले संगठन इंकलाबी छात्र मोर्चा में सहसचिव हैं। विश्वविद्यालय के अलावा वे शहर में लोकतांत्रिक मांगों को लेकर सक्रिय रहते हैं। वे इलाहाबाद नागरिक समाज की कार्यकारी समिति के सदस्य हैं। जाहिर है उनके कमरे, जहाँ वे तीन अन्य रूम पार्टनर के साथ रहते हैं, पर छापेमारी की कार्रवाई उनकी सक्रियता को देखते हुये की गयी है।
30 अगस्त की सुबह तड़के 5:30 बजे से 10 बजे तक की गयी छापेमारी के बाद एनआईए के लोग उनके घर से जो तीन चीज़ें जब्त करके ले गये, उससे भी छापेमारी का मक़सद स्पष्ट होता है। वे चीजे हैं नागरिक समाज द्वारा प्रख्यात अर्थशास्त्री प्रोफेसर अरुण कुमार के व्याख्यान के प्रचार के लिए लिखा गया पर्चा, जिसमें हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के हवाले से अडानी के ख़िलाफ़ बातें लिखी गयी थीं। दूसरा “दस्तक” का मई जून अंक, जिसमें देवेंद्र आज़ाद ने लद्दाख के सोनम वांगचुक के आंदोलन पर लेख लिखा था, और तीसरा उनके संगठन से निकलने वाला अख़बार “मशाल”।
इससे यह समझना मुश्किल नहीं है कि सरकार की संस्था एनआईए क्या करना चाहती है। वह अपना विरोध करने वालों का मुंह बंद रखना चाहती है। जबकि सरकार की नीतियों की आलोचना करना किसी भी लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है, लेकिन सरकार यह लोकतांत्रिक स्पेस सामाजिक कार्यकर्ताओं और नागरिकों से छीन लेना चाहती है। रेड के बाद एनआईए ने देवेंद्र आजाद को सीआरपीसी की धारा 160 का नोटिस देकर 15 सितंबर को पूछताछ के लिए लखनऊ बुलाया है। यह एक छात्र के मानसिक यातना का अगला क़दम है।
आवाज़ चुप कराने के क्रम में मेरा नंबर आया
जिला बार एसोसिएशन सोनीपत ने मानवाधिकार कार्यकर्ता, अधिवक्ता पंकज त्यागी के आवास पर एनआईए रेड की निंदा करते पुलिस आयुक्त सोनीपत को एक ज्ञापन सौंपा है।
गौरतलब है कि 30 अगस्त को एनआईए ने सोनीपत के मानवाधिकार कार्यकर्ता, अधिवक्ता पंकज त्यागी के फ्लैट में भी छापेमारी करके उनका फोन और कागज़ात अपने क़ब्ज़े में लिया और उन्हें हिरासत में लेकर थाने ले गयी जहाँ उनसे तीन घंटे तक पूछताछ के बाद छोड़ दिया था। पंकज त्यागी ने इस मसले पर कहा है कि स्पेशल कोर्ट लखनऊ का एक सर्च वारंट लेकर एनआईए लोकल पुलिस के साथ उनके घर आयी थी। घर का एक एक कोना सर्च करने के बाद उन्होंने उनके दो मोबाइल सीज किये और एक नोटिस देकर लोकल थाने में ले जाकर 3 घंटे पूछताछ की और फिर दूसरा नोटिस थमाते हुए 9 तारीख को लखनऊ बुलाया है आगे की पूछताछ के लिए।
वो बताते हैं कि जून, 2023 को लखनऊ में हुई एक एफआईआर के सिलसिले में ये रेड हुयी थी। पंकज त्यागी ने आगे कि कहा कि उस एफआईआर का उनसे कोई लिंक नहीं है। न एफआईआर में लिखे नामों से उनकी कोई जान पहचान है, न बातचीत या लेना देना है। ये पूरा सरकार द्वारा देश के अंदर बुद्धिजीवियों, वकीलों, एक्टिविस्ट मानवाधिकार के उल्लंघन के ख़िलाफ़ बोलने वालों के समाज में दमन के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाले लोगों की आवाज़ चुप कराने के क्रम में सब हो रहा है। इसी क्रम में मेरे घर पर रेड हुई है।
किसान आंदोलन के चलते निशाने पर आयीं सुखविंदर कौर
बठिंडा, रामपुरा फूल स्थित किसान नेता सुखविंदर कौर के घर पर भी एनआईए ने रेड मारी थी हालांकि उस वक्त वो किसान आंदोलन में थीं। एनआईए ने उनके घर से भी उनके जीवनसाथी हरपिंदर सिंह जलाल का फोन, पेन ड्राइव, और पर्चे लेकर गयी। किसान नेता सुखविंदर सिंह का कहना है कि जब उन्होंने इस मामले में एसएचओ से पूछा कि यह कार्रवाई क्यों हो रही है तो उसने कहा कि कुछ मेल एनआईए को गया था उसमें फेसबुक और इंस्टाग्राम के बारे में बताया गया था। उन्होंने कहा कि हरियाणा-पंजाब के शंभू बॉर्डर पर पिछले छः महीने से एमएसपी की लागत गारंटी समेत अन्य मांगों को लेकर आन्दोलन चल रहा है इसमें भारतीय किसान यूनियन (क्रांतिकारी) भी शामिल है। इसी संघर्ष के चलते सरकार उनको एनआईए के ज़रिये टारगेट कर रही है।
महराजगंज से दो छात्रों को उठाया
उत्तर प्रदेश के महराजगंज में भी एनआईए ने छापेमारी करके बिजेंद्र गुप्ता और एक अन्य युवक को हिरासत में लेकर पूछताछ की और उनके घर से मोबाइल, पत्रिकाएं और अन्य दस्तावेज़ अपने साथ ले गयी। और 9 सितंबर को आगे की जाँच के लिए लखनऊ बुलाया है।
विस्थापन के ख़िलाफ़ बिग़ुल फूंकने वाले बुद्धिजीवी, वकील, एक्टिविस्ट हैं टारगेट
अजय सिंघल सोनीपत जिले के निवासी हैं और हाल फिलहाल पंजाब के एसएस नगर में रहते हैं। अजय सिंघल और उनकी जीवनसाथी दोनों लोग पेशे से अधिवक्ता हैं और चंडीगढ़ हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करते हैं। 30 अगस्त को एनआईए की रेड के बाद 3 सितंबर की सुबह तीन बजे अजय कुमार को गिरफ्तार करके तीन दिन की पुलिस रिमांड पर भेज दिया गया। वो एक कार्यकर्ता, लेखक, वकील और बुद्धिजीवी हैं और पिछले तीन दशक से मेहनतकश जनता के लिए संघर्षरत हैं।
उन्होंने हरियाणा के किसानों और दलितों के दमन और आदिवासियों को झुग्गी झोपड़ी से बेदख़ली के ख़िलाफ़ आंदोलन किया है। वे विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन (VVJVA) के संस्थापक सदस्य भी हैं। लेकिन पिछले एक साल से भारतीय राज्य ने उन्हें डराने और चुप कराने के लिए उनके ख़िलाफ़ अभियान चलाया हुआ है, जिसमें एनआईए, सीबीआई, और हरियाणा की राज्य खुफिया एजेंसी के सदस्य उनके परिजनों और रिश्तेदारों से बार-बार उनके ठिकानों के बारे में पूछकर और उनसे किसी तरह की बातचीत न करने की चेतावनी देकर डराते आ रहे हैं। उन्हें पेगासस स्पाईवेयर के ज़रिये निशाना बनाया गया था।
नागरिक अधिकार नेटवर्क, कैंपेन अगेंस्ट स्टेट रिप्रेशन (CASR) ने अधिवक्ता अजय कुमार को लखनऊ में दर्ज़ झूठे षडयंत्र के मामले में उनकी गिरफ़्तारी की निंदा की है।
(पत्रकार सुशील मानव