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ट्रेफिक जाम के कारण मौत पर उठते सवाल

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*सुसंस्कृति परिहारभारतीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था में राष्ट्रपति सबसे बड़ी संवैधानिक जिम्मेदारी का मालिक होता है इसलिए उसे भारत का प्रथम नागरिक होने का गौरव प्राप्त है।वह सर्वशक्तिमान है लेकिन वह व्यवस्थापिका या यूं कहें केंद्रीय मंत्री मंडल की अनुमति बिना अपनी शक्तियों का इस्तेमाल नहीं कर सकता ।कुल मिलाकर वह देश की आन बान शान का प्रतीक है और उसकी तमाम व्यवस्थाओं की शान शौकत से देश विदेशों में राष्ट्र का सम्मान बढ़ता है।उनकी तमाम व्यवस्थाएं चाक चौबंद होती है।सुरक्षा व्यवस्था तगड़ी होती है।
  देश में महामहिमों जिनमें राष्ट्रपति के अलावा उपराष्ट्रपति के साथ राज्यपाल और उपराज्यपाल भी आते हैं जिनके साथ बड़ा कारवां चलता है पूरी सरकार इसमें लगी होती है। जो कई बार सवाल बनकर सामने आए हैं  कहा जाता रहा है कि ये सब अनावश्यक पद है  जिनमें ताम झाम पर निरर्थक काफी धनराशि ख़र्च होती है  यह भी सवाल  उठे कि यह व्यवस्था सिर्फ दिखावा है यह सामंती  सोच को दर्शाती है। लोकतांत्रिक देश में यह व्यवस्था समाप्त होनी चाहिए पर इस पर कभी गंभीरता से सदन में विमर्श नहीं हुआ बल्कि अब तो प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति के भी सेंट्रल विस्टा में महलनुमा बंगले बन रहे हैं और राष्ट्रपति की तरह ही तमाम व्यवस्थाएं जुटने लगीं हैं ।जिनके कारण आमजन जब तब ट्रेफिक जाम में कई घंटे फंसे रहते हैं उनका कीमती वक्त ज़ाया होता है। कई दफा तो विद्यार्थी परीक्षाओं से भी चूक जाते हैं। सबसे मुश्किल तब होती है जब जीवन से संघर्ष करते मरीज को चिकित्सालय पहुंचने में विलंब होता है और वह अपने प्राण त्याग देता है।
ताजातरीन घटना 25जून की है जिसमें राष्ट्रपति जी के कारवां के ट्रैफिक के कारण कोविड 19से जूझती एक महिला की एंबुलेंस अस्पताल पहुंचते पहुंचते  मौत हो गई ।वे दो घंटे तक जाम में फंसी रहीं। पुलिस प्रोटोकाल का हवाला देती रही । चिकित्सकों का कहना था कि यदि वह जल्द आ जाती तो बचाई जा सकती थी। जबकि अमूमन ये आदेश सब जगह फालो किए जाते हैं कि एंबुलेंस को पहले रास्ता दिया जाए। लेकिन महामहिम की सुरक्षा और तामझाम में ये एक बड़ी चूक सामने आई है।  इस घटना को लेकर  हालांकि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और उत्तर प्रदेश पुलिस ने दुख जताया है.आईआईए की अध्यक्षा बहन वन्दना मिश्रा जी के निधन के लिए कानपुर नगर पुलिस ने व्यक्तिगत रूप से क्षमा मांगते हुए कहा है कि भविष्य के लिए यह बड़ा सबक है। हम प्रण करते हैं कि हमारी रूट व्यवस्था ऐसी होगी कि न्यूनतम समय के लिए नागरिकों को रोका जाए ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृति न हो। कानपुर के पुलिस कमिश्नर असीम अरुण ने  भी इस घटना के लिए सार्वजनिक तौर पर माफी मांगी है और मामले में एसआई और तीन हेड कॉन्स्टेबल को निलंबित कर दिया है।कानपुर पुलिस कमिश्नर ने बताया कि महामहिम राष्ट्रपति भी महिला के असामयिक निधन से व्यथित हैं और उन्होंने पुलिस आयुक्त और जिलाधिकारी को बुलाकर जानकारी ली एवं शोक संतप्त परिवार तक उनका संदेश पहुंचाने को कहा दोनों अधिकारियों ने अंत्येष्टि में शामिल होकर परिवार तक महामहिम का संदेश पहुंचाया ।
कम से कम कानपुर पुलिस और राष्ट्रपति कोविंद जी ने इतनी भलमनसाहत तो दिखाई। ज़रूरी तो अब यह है कि इस दर्दनाक घटना से कैसा सबक सरकार और पुलिस लेती है ?महामहिमों को यदि आम रोड्स से निकलना है जो मरीजों का ध्यान रखने की हिदायत जारी की जानी चाहिए।यदि फिर भी सुरक्षा में ख़तरा नज़र आए तो हैलीकाप्टर से जाया जाए। बड़े शहरों की सड़कों पर भीड़ में दो चार एंबुलेंस तो सामान्यत: मिल ही जाती हैं ।दो घंटे का जाम तो लंबा होता है। सबसे अहम सवाल तो यही है कि जाम क्यों लगे सिर्फ ट्रेफिक सिग्नल पर ही व्यवस्था सुचारू की जाए। सबसे बेहतर तो यही होगा कि प्रोटोकाल को इतना जटिल स्वरूप ना दिया जाए।यह जटिलता ही काम को दुरुस्त और कठोर बनाती है। इंसानियत का तकाज़ा है कि इस तरह के टे्फिक जाम पर गंभीरता से विमर्श हो।

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