हर साल की तरह ,
इस साल भी ,
रक्षाबंधन के त्यौहार के बाद ,
एक-एक करके सभी बहनें -बुआएं ,
लौट गई अपने अपने घरों को ।
किसी ने भी पैतृक संपत्ति में ,
अपना हिस्सा नहीं मांगा ।
ना हीं कुछ रुपयों-पैसों की कामना की।
सभी हमेशा की तरह खुशी-खुशी आई ।
राखी-नारियल-करदोने-मिठाइयां लाईं ।
सभी ने पूजा की थाली में ,
दीपक प्रज्जवलित कर ,
कलश स्थापित किया ।
थाली को रोली-कुमकुम-अक्षत-राखी से सजाया ,
सभी के ललाट पर तिलक सुशोभित किया ,
अक्षत अर्पित किए ।
भाइयों-भोजाईयों-भतीजों की कलाईयों पर ,
प्रेम-स्नेह से रची-बसी राखी बांधी ।
वे अपने मायके आती है ,
साल में एक बार ,
बीता हुआ कल जीने के लिए ।
मां-बाप के दिवंगत होने के बाद ,
वे चली आतीं है उनके फोटों को ,
प्यार से निहारने के लिए ,
वे आती है देखने पुराना खपरैलों वाला ,
कच्चा घर , कैसे साल दर साल ,
पक्का होता जा रहा है ।
भाइयों-भान्जों का रसूख ,
बढ़ रहा है या घटता जा रहा है ।
भोजाईयों मां को याद करती है या नहीं करती ,
वे आती है यादों की जुगाली करने ।
गली की सखियों से मिलने-मिलाने ,
जो सखी बिछड़ गई उसका गम मनाने ।
मायके आने में ,
नहीं होता उनका
कोई लालच ।
वे तो हरदम देती रहती है ,
भाईयों-भोजाईयों-भतीजों को ,
झोला भर-भर के दुआएं ।
वे कभी इनके सामने नहीं पसारती हाथ ,
राखी के समय दो-तीन दिनों के लिए ,
रातें बातों ही बातों में ,
आखों ही आखों में कट जाती हैं ।
वे खो जाती हैं ,
अपने बचपन-जवानी के दिनों में ,
याद करती है अपनी पढ़ाई , स्कूल ,
बाई-बाबूजी का निखालिस प्यार-दुलार ।
उनके साथ गुजारे तंगहाली के दिन ,
अपने अपने ब्याह शादी में घटने वाले ,
दुखद-सुखद प्रसंग ।
क्योंकि शादी के बाद तो ,
उनका अपना बाबुल का घर छुट जाता है पीछे ,
और उनका नया घर बन जाता है पिया का घर ।
वे तो बस चाहती है कि उनके दुख-तकलीफ में ,
भाई बस उनके घर-ससुराल आकर खड़ा भर हो जाए ,
ताकि उनकी छाती हरी हो जाए ,
भाई दूज पर उनके बच्चे ,
मामा जी आया मामा जी आया करके पुकारे ,
रसोई के हाथ खुद के आंचल से पोंछते हुए ,
बहनें बैठक तक आ जाएं ।
बच्चों के शादी ब्याह में भाई ले आए मांमेरा ,
अपनी श्रद्धा के अनुसार ।
चलता रहे जगत व्यवहार ।
बहनें राखी पर पैतृक संपत्ति में ,
हिस्सा मांगने नहीं आती ।
वे तो भाईयों-भाभियों-भतीजों पर ,
अपना प्यार न्यौछावर करने आती हैं ।
वे तो भाईयों-भाभियों-भतीजों पर ,
अपना प्यार न्योछावर करने आती हैं ।
लेखक : चन्द्रशेखर बिरथरे