अग्नि आलोक
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राम

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राम-राम करते हो
तुम रावण बनने के
लायक भी नहीं।
ज्ञान-ज्ञान करते हो
तुम अज्ञानी बनने के
लायक भी नहीं।
ध्यान-ध्यान तुम करते हो
तुम ज्ञान के
लायक भी नहीं।
स्वयं को न जाना
न ही पहचाना कभी
फिर भी महाज्ञानी
बने फिरते हो।
राम तो कण-कण में रमते है
फिर भी तुम
क्षण-क्षण पाप कर्म
करते फिरते हो।

डॉ.राजीव डोगरा
(युवा कवि व लेखक)
पता-गांव जनयानकड़
पिन कोड -176038
कांगड़ा हिमाचल प्रदेश
9876777233
rajivdogra1@gmail.com

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