अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

किराया_क्यों_लेना_घर_दे_दो_ना

Share

(शाम का वक्त था। घर में हल्की हलचल थी। माँ किचन में चाय बना रही थीं, पिता आंगन में बैठे पुराने अख़बार पलट रहे थे। घर के अंदर हल्की खुशबू फैली हुई थी, मानो कोई त्योहार आने वाला हो। अचानक दरवाजे की घंटी बजी।)

माँ (चौंकते हुए): अरे! इस वक्त कौन आ गया?

पिता (धीमे स्वर में): देखो तो सही, शायद मकान मालिक होगा…

(माँ जल्दी से हाथ पोंछती हैं और दरवाजा खोलती हैं। दरवाजा खुलते ही सामने एक जाना-पहचाना चेहरा देखकर माँ स्तब्ध रह जाती हैं।)

माँ (आँखों में आँसू लिए): अरे… ये…!

(दरवाजे पर उनका पोता खड़ा था, बड़ी-बड़ी आँखों में चमक लिए, दोनों हाथ फैलाए। माँ कुछ समझ पातीं, इससे पहले ही पोता दौड़कर उनके गले लग जाता है।)

पोता: “दादीiii! मैं आ गया!”

(माँ की आँखों से आँसू छलक पड़ते हैं। वो पोते को कसकर गले लगा लेती हैं। तभी पीछे से एक और आवाज़ आती है।)

बेटा-बहू (मुस्कुराते हुए): “मां,हम भी आ गया!”

(पिता अख़बार एक ओर रखकर धीरे-धीरे उठते हैं। उनकी आँखों में आश्चर्य था। बेटे-बहू को देखकर उनकी आँखें नम हो गईं, लेकिन वो अपनी भावनाओं को छिपाने की कोशिश करते हैं।)

पिता (हल्की आवाज़ में): “अचानक कैसे आ गया? कुछ बताया भी नहीं?”

(बेटा-बहू आगे बढ़कर पिता के पैर छूते है। पिता उसके सिर पर हाथ रखते हैं, लेकिन कुछ बोल नहीं पाते। उनकी आँखों में हजारों सवाल थे।)

#कुछ_हफ्ते_पहले – विदेश में बेटे के पास एक कॉल आता है

(बेटा अपने ऑफिस में बैठा काम कर रहा था कि अचानक उसका फोन बजा। देखा तो मकान मालिक का नंबर था।)

मकान मालिक: “बेटा, तुम्हारे घर से दो महीने से किराया नहीं आया, #कोई_दिक्कत_है_क्या?”

(बेटा कुछ सेकंड चुप रहता है, फिर हल्का हंसते हुए बोलता है…)

बेटा:#अंकल_किराया_क्यों_लेना_मकान_ही_दे_दो_ना!”

(मकान मालिक हंसता है, लेकिन बेटे की आवाज़ में गंभीरता थी।)

मकान मालिक: “हाहा, तू मजाक कर रहा है, बेटा?”

बेटा: “बिलकुल नहीं अंकल, मुझे मकान खरीदना है। चलिए बात करते हैं।”

(इसके बाद कुछ ही दिनों में सौदा पक्का हो जाता है। बेटा घर को अपने पिता के नाम एग्रीमेंट करवा देता है, लेकिन उसने अपने माता-पिता को कुछ नहीं बताया।)

#वापस_वर्तमान_में

(बेटा जेब से एक लिफाफा निकालकर पिता की ओर बढ़ाता है।)

बेटा: “पापा, इसे देखिए।”

(पिता संदेह से लिफाफा खोलते हैं। जैसे ही उन्होंने कागज पर नजर डाली, उनकी आँखें बड़ी हो गईं। हाथ हल्के से कांपने लगे।)

पिता (हैरानी से): “ये… ये क्या है?”

बेटा (मुस्कुराते हुए): “अब आपको किराया नहीं देना पड़ेगा। ये घर अब आपका है😊पापा। मैंने इसे घर को खरीद लिया है… आपके नाम पर।

“#पापा_मैने_घर_छोड़ा_था_आपको_नहीं

(पिता कुछ नहीं बोल पाते। उनका गला भर आता है। वो बेटे को देख रहे थे, जिसे उन्होंने हमेशा मजबूत बनाना चाहा था। आज वही बेटा उनके लिए वो कर गया जो उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था।)

(पिता की आँखों में आँसू छलक आते हैं, लेकिन वो जल्दी से चेहरा दूसरी तरफ कर लेते हैं। बेटा आगे बढ़कर पिता के गले लग जाता है।)

पिता (आवाज़ भारी करते हुए): “पागल है तू… ये सब करने की क्या जरूरत थी?”

बेटा (गले लगाकर): “पापा, आप हमेशा कहते थे कि इस घर को छोड़कर मैं कैसे जाऊंगा!!

 यहां आस-पास के लोगों से इतना जुड़ाव हो गया है !!!,

 इस घर में तुम्हारी बचपन की यादें हैं !!!

तुम्हारी मां के साथ बिताए  वह खुशनुमा पल है। तो पापा आपके इस यादों का घरौंदा  हमेशा आपके पास रहेगा। ना अब कोई किराया नहीं मांगेगा और ना हीं आपको ये घर कभी छोड़कर जाना पड़ेगा…

(माँ ने बेटे-बहू के सिर पर हाथ फेरा और पोते को फिर से गले लगा लिया।)

माँ (आँखों में आंसू लिए): “बेटा, तू तो कहता था कि विदेश में खुश है… लेकिन सच कह, तू वहां हमारे बिना खुश नहीं था, ना?”

बेटा (गहरी सांस लेते हुए): “नहीं माँ, सच्ची खुशी तो आज महसूस हो रही है… घर लौटकर।”

(पिता बेटे की पीठ थपथपाते हैं। घर में खुशबू अब और भी गहरी हो गई थी—माँ के हाथों के खाने की, बेटे के प्यार की, और एक सुकून भरे भविष्य की। अब ये सिर्फ एक किराए का मकान नहीं था, ये एक बेटे की ममता से खरीदा गया ‘घर’ था।)

 पोस्ट पसंद है तो लाइक और शेयर जरूर करें कमेंट में बताएं कैसा लगा।

Add comment

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें