*(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)*
2014 के चुनाव में वादा क्या कर दिया, मोदी जी तो एक चुनाव की बात पकडक़र ही बैठ गए। बाकी सब वादे भूल गए। साल में दो करोड़ नयी नौकरियां। हर खाते में पंद्रह लाख रुपये। विदेशी बैंकों में जमा भारतीयों की काली कमाई देश में वापस लाना। सब भूल गए। यहां तक कि अच्छे दिनों का वादा भी। बस ‘एक देश, एक चुनाव’ याद रहा। और खाली-पीली याद ही नहीं रहा। कमेटियां बनायीं। विधि आयोगों ने चर्चा पर चर्चा करायीं। रिपोर्टों पर रिपोर्टें आयीं। पर पूरे देश वाला एक चुनाव नहीं आया। एक देश एक टैक्स आ गया। एक देश-एक भाषा भी करीब-करीब आ ही गयी। जम्मू-कश्मीर को तोडक़र कैसे भी तो कर के एक देश, एक निशान-विधान भी सब ले आए। और तो और काफी इलाके में तो एक खान-पान और एक परिधान भी आ लिया। और हां एक हिंदू राष्ट्र भी ! बस एक देश वाला एक चुनाव नहीं आया।
एक देश में एक चुनाव आना तो दूर, उल्टे एक देश में चुनाव और ज्यादा अनेक हो गए। ऐसा तक हुआ कि राज्यसभा की एक से ज्यादा सीटों के जो चुनाव एक साथ होने थे, चुनाव आयोग ने उन्हें भी काट के एक से अनेक करा दिया; एक चुनाव में जितना कमल खिलता, इस अनेकता की कीचड़ में थोड़ा एक्स्ट्रा खिलवा दिया! पर मोदी जी फिर भी एक देश में एक चुनाव के अपने वादे से टस से मस नहीं हुए। अब आखिरी साल में भी अपने शौक के लिए एक और कमेटी बनायी है। पर कमेटियों का शौक उन्हें मुबारक। लेकिन सेवानिवृत्त राष्ट्रपति कोविंद को कमेटी का अध्यक्ष नहीं बनाना चाहिए था। अध्यक्ष क्या, पूर्व-राष्ट्रपति को किसी सरकारी कमेटी में शामिल करना ही नहीं चाहिए था। ऐसा पहले कभी किसी राष्ट्रपति के साथ नहीं हुआ। यह तो पूर्व-राष्ट्रपति के पद की गरिमा के ही खिलाफ है। यह तो राष्ट्रपति पद का अपमान है। पहले राष्ट्रपति को नयी संसद के उद्घाटन के ईवेंट से बाहर कर दिया। और अब सेवानिवृत्ति के बाद ये अपमान!
पर ये सब तो इन टुकड़े-टुकड़ेवादियों के झूठे बहाने हैं। मोदी जी के एक देश, एक चुनाव के उद्घोष का सीधे मुकाबला तो कर नहीं सकते हैं, एक देश में कुछ भी एक होने का सीधे विरोध करते पाए जाएंगे, तो टुकड़े-टुकड़े गैंग का हिस्सा साबित हो जाएंगे। सो अब राष्ट्रपति के आसन की आड़ से तीर चला रहे हैं और वह भी पूर्व-राष्ट्रपति के आसन की आड़ से। पर ये नादान क्या जानें कि राष्ट्रपति हुआ तो क्या हुआ, भूतपूर्व का कोई आसन नहीं होता है। राष्ट्रपति हो, भूतपूर्व बस भूतपूर्व होता है। भूतपूर्व का क्या सम्मान और क्या अपमान। अलबत्ता भूतपूर्व का व्याख्यान वगैरह जरूर हो सकता है, मगर वह भी फॉरेन में। खैर मोदी जी ने कोविंद जी को कमेटी का अध्यक्ष बनाकर सम्मान ही दिया है। सच पूछिए तो मोदी जी सेवानिवृत्ति के बाद सम्मान देना बखूबी जानते हैं। मोदी जी ही सेवानिवृत्ति के बाद सम्मान देना जानते हैं। किसी को एक्सटेंशन पर एक्सटेंशन देकर सरकार में ही, तो किसी को राज्यसभा में और किसी-किसी को कमीशन या कमेटी में और किसी को अडानी जी-अंबानी जी की कंपनियों में, मोदी जी के कृपापात्रों को सेवानिवृत्ति के बाद सम्मान तो भरपूर मिलता है। वैसे भी कॉमनसेंस की बात है। राष्ट्रपति भी सेवानिवृत्ति के बाद हो तो बेरोजगार ही जाता है। और बेरोजगार को काम देने से बड़ा सम्मान और क्या दिया जा सकता है। हद तो यह है कि जो लोग मोदी जी को वादा कर के दो करोड़ नौकरियां नहीं देने के लिए ताने दे-देकर नहीं थकते हैं, एक सेवानिवृत्त राष्ट्रपति को काम देने को उसका अपमान करना बता रहे हैं।
फिर अपने मोदी जी एक देश, एक चुनाव पर ही रुकने वाले नहीं हैं। इसी बीच एक देश, एक नागरिक कानून का सुर्रा तो उन्होंने ऑफीशियली छोड़ भी दिया है। एक देश, एक पार्टी पर भी काम चल रहा है, हालांकि बीच में गाड़ी थोड़ा पीछे खिसक गयी लगती है। और एक देश, एक नेता, एक देश एक पोस्ट तो खैर बहुत पहले ही हो चुका है। देश के एकीकरण की मोदी जी की लगन छूटने वाली नहीं है। लेकिन, यह मोदी जी के विरोधियों की उड़ाई एकदम झूठी अफवाह है कि जी-20 हो गया तो हो गया; जी-20 के बाद, मोदी जी अब कोई ईवेंट नहीं करेंगे। अठारह-अठारह, बीस-बीस घंटे, लोगों को बहलाने का काम कर-कर के मोदी जी थक गए हैं। जी-20 के बाद मोदी जी बस आराम करेंगे! जी नहीं, यह सरासर झूठ है।
मोदी जी, मोदी जी हैं, वह ईवेंटों के आयोजन से थकने-रुकने वालों में से नहीं हैं। उल्टे वह तो एक-एक ईवेंट में से सौ-सौ ईवेंट पैदा करने का माद्दा रखते हैं। देखा नहीं कैसे, जो जी-20 बाली में हुआ तो वहां सिर्फ एक ईवेंट था और लूला के ब्राजील में जाएगा, तब भी हमारे ख्याल में एकाध ईवेंट में ही निपट जाएगा, मोदी जी के नये इंडिया में फल-फूलकर सैकड़ों ईवेंटों का बगीचा बन गया। और तो और शिखर सम्मेलन की एक ईवेंट में से भी दर्जनों ईवेंटें तो राजधानी में ही निकल आयी हैं। पहले जी-20 के कन्वेंशन सेंटर के उद्घाटन की ईवेंट। फिर जी-20 के ड्रेस रिहर्सल की ईवेंट। फिर ड्रेस रिहर्सल के बाद के रिहर्सल की ईवेंट। और आखिर में पब्लिक के लिए दिल्ली में एक बार फिर, बिना कोरोना के तीन दिन के टोटल लॉकडाउन की ईवेंट। इस सब के दौरान साइड लाइन पर गरीब हटाओ, गरीब भगाओ ईवेंट। ऐसे मोदी जी भला कैसे और क्यों जी-20 को अपना आखिरी ईवेंट बन जाने देंगे। एक देश के लिए बाकी सब एक कराएंगे, पर जी-20 के बाद भी मोदी जी और भी ईवेंट कराएंगे। इंडिया वालो सुन लो, एक देश, बेशक बाकी सब एक, पर ईवेंट अनेक!
*(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)*