पवन कुमार, ज्योतिषाचार्य
फलित ज्योतिष अति गहन विषय है। गणित के विद्यार्थी जानते ही होंगे कि १२ एवं ९ का क्रमचय, ७९,८३३,६०० होता है।
P(१२,९) = n !/(n -r )! = १२!/१२!-
३! = १२ x ११ x १० x ९ x ८ x ७ x ६ x ५ x ४÷३×२×१= ७९,८३३,६००
अतः कुण्डली के १२ घरों में बैठे ९ ग्रह लगभग ८० लाख तरह के अलग अलग फल दे सकते हैं।
इतना ही नहीं प्रत्येक ग्रहों कि दृष्टि भी अपने घरों के अलावा अलग अलग घरों पर भी पड़ती है एवं फलादेश के समय उनके फल का भी समावेश किया जाना चाहिये।
ग्रह मैत्री चक्रों का भी फल होता है किसी के साथ बैठा कोई ग्रह अलग फल देने लगता है। उसके बाद कौन ग्रह जन्मके समय कितने अंश पर अवस्थित था उसका भी फल अलग हो जाता है।
बाल एवं वृद्ध ग्रह अपना फल सम्यक रूप से दे भी नहीं पाते हैं। संभव है कि सुपर कम्प्यूटर भी निर्विवाद फल दे पाने में सक्षम न हो।
अतः आप ज्योतिष में तब तक न जाएँ जब तक कि विवाह इत्यादि जैसे महत्त्वपूर्ण कार्य सामने न हों। हमारे ऋषियों ने कहा है कि सदाचारी बालक जो माता-पिता व गुरुजनों का सम्मान करता है एवं जिसके लिए लोगों कि सेवा करना धर्म है उस परोपकारी एवं दुर्व्यसन मुक्त बालक के खराब भाव के ग्रह भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते हैं।
फिर भी यदि आप को कोई प्रश्न जानने की आवश्यकता है तो आप एक बार में एक प्रश्न पूछ सकते हैं।
आप व्हाट्सप्प 63918 87311 पर अपने निम्नलिखित विवरण दें :
•नाम, पुकारने का नाम यदि वह अलग हो।
•जन्म की तारीख
•जन्म का समय
•जन्म स्थान एवं वर्तमान में कहाँ रह रहे हैं।
यदि आप चाहेंगे तो आपके प्रश्न का समाधान एक से अधिक विद्वानों के द्वारा भी कराया जा सकता है. शुल्क प्रश्न और व्यक्ति की स्थिति अनुसार होगा.
“वाराणस्यां भैरवो देवः संसारभयनाशनः।
अनेकजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥
वाराणस्यां पूर्वभागे व्यासो नारायण: स्वयं।
तस्य स्मरणमात्रेण अज्ञानी ज्ञानवान भवेत्॥
वाराणस्यां पश्चिमे भागे भीमचण्डी महासती।
तस्या: स्मरणमात्रेण सर्वदा विजयी भवेत्॥
वाराणस्यां उत्तरे भागे सुमन्तुर्नाम वै द्विजः।
तस्य स्मरणमात्रेण निर्धनो धनवान् भवेत्॥
वाराणस्यां दक्षिणे भागे कुक्कुटो नाम ब्राह्मण।
तस्य स्मरणमात्रेण दुःस्वप्न: सुस्वप्नो भवेत्॥