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सही विकल्प…..समाजवाद

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*रजनीश भारती

पूँजीवाद का विकल्प समाजवाद है इसके अलावा कुछ नहीं। इसी तरह 1947 में पेट्रोल 27 पैसे और डीजल लगभग 17 पैसे प्रति लीटर था। 1989 में डीजल 3.50 रूपये प्रतिलीटर और पेट्रोल 8.50 रूप प्रतिलीटर हो गया।

27 पैसे में पाँच बार 2 का गुणा करिए- 27×2×2×2×2×2=8.64 रूपये। अब बीते 40 साल के कांग्रेस के शासन काल का पाँच भाग करें तो आठ साल होता है। इसका मतलब औसतन हर आठवें साल डीजल, पेट्रोल के दाम दोगुना हो जाते रहे। जनता पार्टी के दो साल के शासन को छोड़ दें तो 1947 से 1989 तक कांग्रेस की ही सरकार केन्द्र में थी। इसने जमकर मँहगाई बढ़ाया। 

2004 से 2014 के बीच दस सालों तक कांग्रेस की गठबंधन सरकार थी। इन दस सालों का आँकड़ा देखें तो डीजल, पेट्रोल, दूध का दाम लगभग दोगुना हो गए थे।

जहाँ 2004 में डीजल 24.16 रूपये, पेट्रोल 36.81 रूपये प्रतिलीटर, दूध 16 रूपये प्रति किलोग्राम था वहीं सन् 2014 में डीजल 57 रूपये, पेट्रोल 71 रूपये प्रतिलीटर, दूध 32 रूपये प्रति लीटर हो गया।

2014 से 2022 तक भाजपा गठबंधन की सरकार में डीजल 57 रूपये से बढ़कर तकरीबन 100 रूपये हो गया, पेट्रोल 71 रूपये से बढ़कर 106 रूपये प्रतिलीटर हो गया, दूध 32 रूपये से बढ़कर 60 रूपये प्रति किलो, रसोई गैस 414  से बढ़ कर 1100 रूपये हो गये।

इस तरह देखा जाए तो भाजपा की गठबंधन सरकार ने आठ साल में चीजों के दाम डेवढ़ा या दोगुना कर दिया है अभी दो साल बाकी है, यानी भाजपा शासन के 10 साल पूरा होते-होते दोगुना से ऊपर हो जाने की संभावना है। रफ्तार यही रही तो रसोई गैस का दाम तो तिगुना से भी ज्यादा हो जायेगा।

19 मार्च 1998 से 1 जून 2004 तक अटल की सरकार थी। कुछ लोग कहते हैं अटल की सरकार बहुत बढ़िया थी, मगर आँकड़े तो भयावह हैं- 1997 में डीजल 10.25 रूपये प्रतिलीटर था और जून 2004 तक बढ़कर 22.74 रूपये हो गया।

1998 में जो पेट्रोल 23.94 रूपये प्रति लीटर था वो जून 2004 तक बढ़कर 35.71 रूपये प्रतिलीटर हो गया। रसोई गैस का दाम 1998 में लगभग 146 रूपये था जो 2004 में बढ़कर 261.60 रूपये हो गया। महज 6 साल में जिस अनुपात में भयानक मँहगाई बढ़ी, अगर अटल जी चार साल और प्रधानमंत्री रहे होते तो मँहगाई दो गुना हो गयी होती।

बीते 75 साल के आँकड़ों पर गौर करें तो औसतन हर आठ-दस साल बीतते-बीतते डीजल, पेट्रोल, गैस जैसी बुनियादी चीजों के दाम दोगुना होते रहे हैं, इस दौरान, चाहे भाजपा की सरकार रही हो या काँग्रेस की या जनता पार्टी अथवा जनता दल की, सभी सरकारों ने मँहगाई बढ़ाया है। किसी भी नयी सरकार ने अपने पूर्ववर्ती सरकार द्वारा बढ़ायी गयी मँहगाई को वापस नहीं लिया। डीजल पेट्रोल का दाम बढ़ने से सभी चीजों के दाम बढ़ते रहे हैं। 

अत: ये कहना कि ‘भई, कुछ भी हो, कांग्रेस के समय में तो इतनी मँहगाई नहीं थी’, एक नासमझी है। ऐसा कहकर भाजपा का विकल्प कांग्रेस को बताना जनता को धोखा देने के बराबर है। नागनाथ का विकल्प साँपनाथ को बताना, धोखाधड़ी नहीं तो क्या है?

बीते 75 साल में सिर्फ मँहगाई ही नहीं बेरोजगारी और भ्रष्टाचार में भी बढ़ोत्तरी होती रही है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ा कि सरकार भाजपा की है या काँग्रेस की। आज भाजपा कह रही है कि ‘भाजपा सरकार में भ्रष्टाचार नहीं है। मगर आमजनता जान रही है कि हर विभाग में घूसखोरी बढ़ी है, फाइलों को खिसकाने का रेट बीते आठ साल में लगभग दोगुना हो चुका है। 

अत: भाजपा का विकल्प कांग्रेस को बनाकर मँहगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार से निजात नहीं पा सकते। ये पार्टियां तो बड़ी पूंजी की सेवक मात्र हैं, सेवकों को बदलने से पूंजीवाद खत्म नहीं होगा, ना ही अर्धसामन्ती अर्धऔपनिवेशिक स्थिति पर को कोई बुनियादी फर्क पड़ेगा। 

क्रान्ति के जरिए मौजूदा व्यवस्था को बदलकर ही जनता मौजूदा समस्याओं से निजात पा सकती है। अत: क्रान्ति ही सही विकल्प है।

*रजनीश भारती*

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