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बढ़ती बेरोज़गारी, युवाओं में आत्महत्या : और दे ही क्या सकती है यह पूँजीवादी व्यवस्था 

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           पुष्पा गुप्ता 

जो शैक्षिक शहर कुछ साल पहले तक छात्रों नौजवानों के ख़्वाबगाह हुआ करता था अब कब्रगाह में बदलता जा रहा है। उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती परीक्षा में पर्चा लीक होने के बाद से इलाहबाद में अब तक 11 से ज़्यादा नौजवानों ने आत्महत्या कर ली है। 

      यह स्थिति केवल इलाहाबाद शहर की नहीं है। एनसीआरबी के हालिया आंकड़ों के मुताबिक़ 2021 की तुलना में 2022 में भविष्य की अनिश्चितता की वजह से आत्महत्या करने वाले छात्रों, बेरोजगारों, स्वरोज़गार करने वालों की संख्या में 22.66 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी हुयी है।

      इस रिपोर्ट के अनुसार साल 2022 में हर घंटे तीन स्वरोज़गारशुदा नौजवान, दो बेरोज़गार और हर 2 घंटे में तीन छात्र आत्महत्या कर रहे हैं। ये वे घटनाएँ है जो मीडिया में ख़बर बनी। इससे कई गुना ज़्यादा घटनाएँ ऐसी हैं जो मीडिया तक पहुँच ही नहीं पाती हैं।  पूरी दुनिया की लगभग 18 प्रतिशत आबादी भारत में रहती है लेकिन विश्व में होने वाली कुल आत्महत्याओं में से एक तिहाई से ज़्यादा केवल भारत में ही होती है।

      इतने बड़े पैमाने पर आत्महत्याएँ! ये महज़ संख्याएँ नहीं हैं बल्कि उस देश की एक जीती-जागती तस्वीर है जिसे दुनिया का सबसे बड़ा लोकतन्त्र होने का तमगा मिला है। जहाँ की 65 प्रतिशत आबादी युवा है। वहाँ पर इतने बड़े पैमाने पर सम्भावनाओं का विनाश हो रहा है, क्यों? क्योंकि इस लुटेरी मानवद्रोही पूँजीवादी व्यवस्था को मुनाफ़े से सरोकार है सम्भावनाओं से नहीं! 

इन आत्महत्याओं का एक प्रमुख कारण भविष्य की अनिश्चितता है। जब से उदारीकरण निजीकरण की नीतियाँ देश में लागू की गयी है तब से रोज़गार में कटौती जारी है। 

     पिछले कुछ सालों से स्किल इण्डिया, मेक इन इण्डिया, प्रधानमन्त्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम, रोज़गार प्रोत्साहन योजना, प्रधानमन्त्री कौशल विकास योजना जैसी तरह-तरह की योजनायें बनायी गयी है और इन योजनाओं के प्रचार में अरबों रूपये खर्च किये गये है लेकिन इन योजनाओं के दफ्तर और प्रचार सम्भालने वाले लोगों को रोज़गार देने के अलावा देश में बेरोज़गारी कम करने की दिशा में कोई प्रगति नहीं हुई है।

       हर साल दो करोड़ नौकरी देने के गुलाबी सपना दिखाकर सत्ता में आयी मोदी सरकार अब अपने वादे से पल्ला झाड़ चुकी है। मोदी  सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनन्था नागेश्वरन के मुताबिक़ सरकार बेरोज़गारी जैसी आर्थिक, सामाजिक समस्याओं से निज़ात नहीं दिला सकती है।

      भाजपा का 10 साल का शासनकाल छात्रों युवाओं के लिए किसी भयावह सपने से कम नहीं है। ‘आईएलओ’ और ‘आइएचडी’ द्वारा जारी एक हालिया रिपोर्ट देश के शिक्षित बेरोज़गारों की संख्या जोकि वर्ष 2000 में 35.2 फ़ीसदी थी वह 2022 में बढ़कर 65.7 फ़ीसदी हो गयी। 

     स्नातक और परा-स्नातक बेरोज़गार युवाओं की संख्या क्रमशः 19.2 फ़ीसदी से बढ़कर 35.8 फ़ीसदी और 21.3% से 36.2% हो गयी। भारत में कुल बेरोज़गारों में 83 प्रतिशत संख्या युवाओं की है। बेरोज़गारी की यह विकराल स्थिति नौजवानों के जीवन पर भारी पड़ रही है। 

     यही वजह है की देश  में पिछले दो दशकों में सरकारी आँकड़ें के मुताबिक़ आत्महत्या की दर 7.9 प्रति लाख पर से बढ़कर 12.14 प्रति लाख हो गई है। देश में कुल आत्महत्या करने वालों में से 40.77 फ़ीसदी 30 साल से कम उम्र के हैं।

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