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दिल्ली उच्च न्यायालय को सलाम…..!

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दिल्ली उच्च न्यायालय ने जेल अधिकारियों और पुलिस को सीधे सीधे फटकार लगाई।जेल के भीतर कैदियों के साथ होने वाली मारपीट और बर्बरता को लेकर न्यायालय ने उक्त फटकार लगाई है।यह खबर पढ़ कर व्यंग्यकार व्यथित हो गया।व्यंग्यकार कभी भी सीधे शाब्दिक प्रहार नहीं करता है।उच्च न्यायलय ने कानून के तहत फटकार लगाई है।उच्च न्यालयल का कहना है कि, जो अपराधी जेल में रहता है वह न्यायलय की अभिरक्षा में रहता है।धन्य है माननीय न्यायालय।इस खबर को पढ़कर  व्यंग्यकार के मन मतिष्क में बहुतसे असामान्य प्रश्न उपस्थित हुए हैं?क्या हर एक बात पर न्यायपालिका को ही संज्ञान लेना पड़ेगा?

क्या कैद में अपराधी सुरक्षित नहीं है?देशी फिल्मों में जरूर इस तरह की बर्बरता के दृश्य बेख़ौफ़ होकर फिल्माए जातें हैं।न्यायालय ने जेल के भीतर की बर्बरतापूर्ण रवैये पर फटकार लगाई है।जेल के बाहर तो बेरोकटोक  ऐसे घटनाओं को सरे आम आंजाम दिया जाता है।रसूखदारों द्वारा जंघन्य अपराध को आंजाम देने के बाद यदि कोई भूल भटके ऐसी घटनाओं को कानून के संज्ञान में लाता है,तो मजबूरन पुलिस प्रशासन औपचारिता निभाना पड़ती है?पुलिस प्रशासन तहकीकात के दौरान फरियादी से पुलिसिया भाषा में इतनी पूछताछ करता है कि, फरियादी स्वयं को ही अपराधी समझने लगता है?पुलिस प्रशासन की पूछताछ ही ऐसी होती है। फरियादी को समझ में आ जाता है कि, उसने फरियादी बनकर बहुत बड़ा गुनाह किया है।पुलिस की पुलिसिया भाषा में होने वाली तहक़ीकर में छिपी हकीक़त स्पष्ट समझमें आ जाती है?

फरियादी को हकीकत में यह समझमें आ जाता है कि, घटना को आंजाम देने वाले अपराधी ने पुलिस की अच्छी तरह पूछ परख की होगी?इस स्थिति में यह कहावत चरितार्थ हो जाती है कि, घुटना अंतः पेट की ओर ही मुड़ता है।पुलिस कर्मियों का इसतरह का व्यवहार क्यों होता है।इसके पीछे एक विद्वान का कहना है, सन 1861 या 1862 में बना पुलिस एक्ट ज्यों का त्यों है।यह एक्ट अंग्रेजी हुकूमत ने बनाया था।अंग्रेजी हुक़ूमत सन 1857 की क्रांति से भय भीत हो गई थी।इसीलिए हुकूमत ने 1862 में उक्त एक्ट बनाया।इस एक्ट में संशोधन होना चाहिए ऐसा विद्वानों का मत है।अंग्रेजो में लगभग दो सौ वर्ष तक अपने देश पर राज किया है।वर्तमान सत्ता की मंशा है कि,अंग्रेजो ने जितनी अवधि तक शासन किया उस अवधि के एक चौथाई अवधि तक राज करना है।अंग्रेजी हुकूमत में सिर्फ नाम का लोकतंत्र था।

अंग्रेज शासक क्रांतिकारियों को क्रूरता से प्रताड़ित करते थे।अंग्रेजो ने असंख्य देश भक्तों को जेल में डाल दिया था।अंग्रेज हुक्मरान अपने देश वासियों को गुलाम ही समझतें थे।आज लोकतंत्र है।अंग्रेजों जैसा व्यवहार अब नहीं होगा इसी आशा के साथ चर्चा को यहीं पूर्ण विराम।दिल्ली उच्च न्यालयल को पुनः सलाम।
जय हिंद जय भारत।
शशिकांत गुप्ते इंदौर

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