सावरकर की फ़्रांस में पानी के जहाज़ से भागने और पकड़े जाने की कहानी –
एक जुलाई, 1909 को सावरकर से प्रभावित और अक्सर लंदन के इंडिया हाउस आने वाले मदनलाल ढींगरा ने भारतीय मामलों के मंत्री के सहयोगी कर्ज़न विली को गोली मार दी थी ।
ब्रिटिश सरकार विली की हत्या में सावरकर की भूमिका को तो सिद्ध नहीं कर पाई लेकिन उसे ये अंदाज़ा ज़रूर हो गया कि मदनलाल और सावरकर में गहरी दोस्ती है और सावरकर ने ही ढींगरा के बेगुनाह होने की याचिका तैयार की थी।
मदनलाल ढींगरा पर मुक़दमा चला और डेढ़ महीने के अंदर ही उन्हें 17 अगस्त, 1909 को फाँसी दे दी गई लेकिन इस बीच नासिक में ब्रिटिश कलेक्टर आर्थर जैकसन की हत्या में सावरकर का नाम आने की वजह से लंदन में उनकी मुश्किलें बढ़ गई थीं ।
सावरकर को इस बात का अंदेशा था कि उन्हें जल्द ही गिरफ़्तार कर लिया जाएगा इसलिए वो लंदन से पेरिस चले गए थे ।जब वो मार्च 1910 में लंदन वापस लौटे तो उन्हें विक्टोरिया स्टेशन से बाहर निकलते ही गिरफ़्तार कर लिया गया था ।
शुरू में अंग्रेज़ों ने इस बात पर विचार किया कि क्या सावरकर पर लंदन में मुक़दमा चलाया जाए या भारत में? मुद्दा ये था कि अपराध नासिक में किया गया था जबकि सावरकर उस समय इंग्लैंड में रह रहे थे
उन पर ज़्यादा से ज़्यादा हत्या में मदद करने का मुक़दमा चलाया जा सकता था ।अगर उन पर अपराध सिद्ध भी हो जाता तो अधिक से अधिक उनको दो या तीन साल की सज़ा होती ।
फिर उन्होंने सावरकर के भारत में दिए गए भाषणों को खंगाला कि उनके आधार पर उन पर मुक़दमा चलाया जा सके।
आख़िरकार ये तय हुआ कि उन पर इग्लैंड में मुक़दमा न चलाकर भारत में मुक़दमा चलाया जाएगा ।उन्हें फ़्यूजिटिव ऑफ़ेंडर्स एक्ट 1881 के तहत भारत भेजने का फ़ैसला किया गया ।
– पानी के जहाज़ से भारत भेजा गया –
एक जुलाई, 1910 को इंग्लैंड के टिलबरी बंदरगाह से ‘एसएस मोरिया’ जहाज़ रवाना हुआ जिसमें सावरकर के साथ दो अंग्रेज़ अफ़सर सीजे पावर और स्कॉटलैंड यार्ड के एडवर्ड पार्कर के अलावा दो भारतीय हेड कांस्टेबल मोहम्मद सिद्दीक़ और अमर सिंह भी सवार थे ।
पावर और पार्कर को ज़िम्मेदारी दी गई कि उनमें से एक लगातार सावरकर को अपनी नज़र में रखेगा ।उनको चार बर्थ का एक केबिन दिया गया था. रात को वो केबिन में अंदर से ताला लगा देते थे ।
पार्कर और सावरकर निचली बर्थ पर लेटते थे जबकि पावर को सावरकर के ऊपर वाली बर्थ दी गई थी ।सावरकर के सिर के ऊपर लगी बत्ती को रात भर जलाकर रखा जाता था ।सावरकर को फ़्रांस पहुंचने तक हथकड़ियाँ नहीं पहनाई गई थीं. उनको पहनने के लिए शॉर्ट्स और एक स्वेटर दिया गया था ।
– शौचालय का दरवाज़ा बंद करने की इजाज़त नहीं –
इन अफ़सरों को केबिन का अटेंडेंट सुबह सात बजे जगा देता था ।इसके बाद पावर और पार्कर तैयार होना शुरू करते थे।जब इनमें से किसी को नहाना होता था तो वो सावरकर को दूसरे साथी के पास छोड़ कर जाते थे ताकि वो हमेशा उनकी नज़रों के सामने रहे।
जब क़रीब आठ बजे सावरकर को शौचालय इस्तेमाल करना होता था तो दोनों अफ़सर उन्हें भारतीय पुलिस वालों के हवाले कर देते थे जो केबिन के बाहर उनका इंतज़ार कर रहे होते थे ।
ये सावरकर को शौचालय तक लेकर जाते थे ।इनको निर्देश थे कि वो सावरकर को कभी अंदर से शौचालय का दरवाज़ा न बंद करने दें और शौचालय के दरवाज़े को थोड़ा खुला रखा जाए ।शौचालय जाते समय सावरकर अक्सर ड्रेसिंग गाउन पहन लेते थे ।
जिब्राल्टर में कुछ समय रुकने के बाद सात जुलाई को सुबह जहाज़ फ़्रांस के बंदरगाह मार्सेयेज़ पहुंचा ।
– सावरकर टॉयलेट कमोड के छेद से पानी में कूदे –
सरकारी ब्रिटिश दस्तावेज़ों के अनुसार आठ जुलाई को सावरकर सुबह छह बजे ही उठ गए ।पंद्रह मिनट बाद उन्होंने अब भी नींद से भरे पार्कर से कहा कि क्या वो शौचालय जा सकते हैं?
पार्कर उन्हें अकेले नहीं जाने देना चाहते थे इसलिए उन्होंने केबिन का ताला खोला और सावरकर को शौचालय की दिशा में लेकर गए ।
उन्होंने दोनों भारतीय कांस्टेबलों सिद्दीक़ और अमर सिंह से उनके पीछे आने और सावरकर पर नज़र रखने के लिए कहा और अपने केबिन की तरफ़ लौट आए ।
अमर सिंह ने शौचालय में झाँककर देखा ।दरवाज़े के नीचे की तरफ़ भी एक छेद था जहाँ से उसे चप्पलें दिखाई दे रही थीं, मानों उन चप्पलों को पहनने वाला कमोड पर बैठा हो ।पूरी तरह से निश्चिंत होने के लिए अमर सिंह ने शौचालय के अंदर का नज़ारा देखने की कोशिश की ।
“
वहाँ उसने जो देखा उसे देखकर उसके होश उड़ गए ।सावरकर एक छोटे छेद से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे थे और उनका आधा शरीर बाहर भी निकल चुका था ।अमर सिंह चिल्लाया और शौचालय का दरवाज़ा खोलने के लिए दौड़ा ।तब तक सावरकर छेद से सरक कर पानी में कूद चुके थे.”
दोनों कांस्टेबल शोर मचाते हुए बाहर की तरफ़ दौड़े ।
– फ़्रेंच अधिकारी सावरकर का अनुरोध समझ नहीं सका –
डेक पर मौजूद एक गार्ड ने एक शख़्स को पानी में कूदते हुए देखा ।उसने उस शख़्स पर दो गोलियाँ भी चलाईं लेकिन सावरकर उन गोलियों से बच निकलने में कामयाब रहे ।
इसकी कई कहानियाँ हैं कि जहाज़ से बंदरगाह से कितनी दूरी पर लंगर डाल रखा था? कुछ स्रोतों में ये दूरी एक किलोमीटर बताई गई है तो कुछ स्रोतों में इसे 30 मीटर तक बताया गया है।
सावरकर कुछ दूर तैरे और फिर ज़मीन पर पहुंचकर उन्होंने दौड़ना शुरू कर दिया ।ब्रिटिश लाइब्रेरी में मौजूद दस्तावेज़ ‘सावरकर केस कंडक्ट ऑफ़ द पुलिस ऑफ़िशियल्स’ के अनुसार, “कांस्टेबल सावरकर के पीछे चोर! चोर! पकड़ो! पकड़ो! चिल्लाते हुए दौड़ रहे थे ।उनके साथ जहाज़ के कुछ कर्मचारी भी दौड़ रहे थे ।सावरकर करीब 200 गज़ दौड़े ।उनकी साँस बुरी तरह फूल रही थी ।वो टैक्सी रोकने के लिए चिल्ला रहे थे लेकिन तभी उन्हें महसूस हुआ कि उनके पास एक भी पैसा नहीं है ।
विक्रम संपथ लिखते हैं, “इस बीच फ़्रांस के सैनिक अफ़सर ब्रिगेडियर पेस्की भी सावरकर का पीछा करने वालों में शामिल हो चुके थे ।थोड़ी देर बाद वो सावरकर को पकड़ने में कामयाब हो गए “ ।
सावरकर ने पकड़े जाने पर फ़्रेंच अफ़सर को संबोधित करते हुए कहा, ‘तुम मुझे गिरफ़्तार करो ,मुझे मजिस्ट्रेट के सामने ले चलो।
सावरकर का मानना था कि चूँकि अब वो फ़्रांस की भूमि पर हैं इसलिए अगर उन पर मुक़दमा चलता है तो वो फ़्रांस के कानूनों के अनुसार होगा क्योंकि फ़्रांस की धरती पर ब्रिटिश क़ानून लागू नहीं होंगे ।
राजनीतिक क़ैदी के तौर पर वो फ़्रांस में राजनीतिक शरण पाने के हक़दार थे । लेकिन ब्रिगेडयर पेस्की को एक शब्द भी अंग्रेज़ी नहीं आती थी और सावरकर का दुर्भाग्य कि वो समझ ही नहीं सके कि सावरकर क्या कह रहे हैं ।
– सावरकर को हथकड़ियों में बंबई लाया गया –
पेस्की ने सावरकर को भारतीय पुलिस वालों के हवाले किया ।वो उनको खींचते हुए फिर से उनके केबिन में ले आए ।वहाँ सावरकर के साथ बहुत ख़राब व्यवहार किया गया और उन्हें हथकड़ियाँ पहना दी गईं ।
इसके बाद उन्हें केबिन से बाहर निकलने की अनुमति नहीं दी गई ।शौचालय जाते समय एक पुलिस वाला हमेशा उनके साथ अंदर जाता ।
मार्सेयेज़ में दो दिन रहने के बाद नौ जुलाई को जहाज़ ‘एसएस मोरिया’ आगे के लिए रवाना हुआ ।17 जुलाई को जहाज़ अदन पहुंचा जहाँ सावरकर और उनकी निगरानी कर रहे लोग दूसरे जहाज़ ‘सेलसेटे’ पर सवार हुए ।
22 जुलाई को इस जहाज़ के बंबई पहुंचने तक सावरकर को दिन-रात हथकड़ियों में रखा गया ।उनको बंबई के पुलिस अधिकारी कैनेडी के हवाले किया गया ।
उन्हें उसी दोपहर एक टैक्सी में विक्टोरिया टर्मिनस स्टेशन ले जाया गया और नासिक जाने वाली ट्रेन में बैठा दिया गया. ।नासिक पहुंचने पर उन्हें जेल में बंद कर दिया गया ।
विभागीय जाँच में इस घटना के लिए पावर को ज़िम्मेदार ठहराया गया. उनका पद घटा दिया गया और उनके वेतन में 100 रुपये प्रति माह की कटौती कर दी गई ।
Source : bbc