सुधा सिंह
भारतीय महीनो के नामो की अर्थवत्ता को समझने से पहले हमें कुछ एस्ट्रोलॉजिकल सिद्धांत समझने होंगे तभी इन महीनो का वैज्ञानिक आधार समझ आएगा।
भचक्रं भ्रमणं नित्यं नाक्षत्रं दिनमुच्यते। नक्षत्र नाम्ना मासास्तु क्षेयाः पर्वान्त योगतः।
अर्थात दैनिक भचक्र का भ्रमण करना ही नाक्षत्रिक दिन है. पूर्णिमानताधिष्ठित नक्षत्र के नाम से मास का नाम जानना चाहिए।
पृथ्वी सूर्य के चारो और एक अंडाकार वृत्त में ३६५-२४ दिन में घूमती है। यह अंडाकार मार्ग बारह भागो में विभाजित है और उन १२ भागो के नाम मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ, मीन हैं। इन १२ भागो नाम भी १२ राशियों के नाम से विख्यात हैं।
जिस प्रकार पृथ्वी सूर्य के चारो और एक अंडाकार वृत्त में घूमती है। इसी प्रकार चन्द्रमा भी पृथ्वी के चारो और एक अंडाकार वृत्त में २७ दिन ८ घंटे में घूम आता है। इसका मार्ग २७ भागो में विभाजित है और प्रत्येक भाग को नक्षत्र कहते हैं।
२७ नक्षत्रो के नाम इस प्रकार हैं :
- अश्विनी 2. भरणी 3. कृत्तिका 4. रोहिणी 5. मृगशिरा 6. आर्द्रा 7. पुनर्वसु 8. पुष्य ९. अश्लेषा 10. मघा 11. पूर्वाफाल्गुनी 12. उत्तराफाल्गुनी 13. हस्त 14. चित्रा 15. स्वाती 16. विशाखा 17. अनुराधा 18. ज्येष्ठा 19. मुल 20. पुर्वाषाढा 21. उत्तरषाढा 22. श्रवण 23. धनिष्ठा 24. शतभिषा 25. पूर्वभाद्रपद 26. उत्तरभाद्रपद 27. रेवती
आज पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र है इसका अभिप्राय है की आज चन्द्रमा पृथ्वी के चारो और के मार्ग के पूर्वाषाढ़ा नामक भाग में है। हम पृथ्वी पर रहने वाले हैं पृथ्वी के साथ साथ घुमते हैं। इस कारण हमको पृथ्वी स्थिर प्रतीत होती है और सूर्य तथा चन्द्रमा दोनों घुमते दिखते हैं। जब सूर्य और चन्द्रमा के बीच में पृथ्वी होती है तो चन्द्रमा का वह अर्थ भाग जिस पर सूर्य का प्रकाश पड़ता है पृथ्वी की और होता है।
इसी कारण ऐसी अवस्था में चन्द्रमा सम्पूर्ण प्रकाशवान दीखता है अतः पूर्णमासी को जब चन्द्रमा पूर्ण प्रकाशित होता है, चन्द्रमा और सूर्य पृथ्वी के दोनों और उलटी दिशा में होते हैं। आर्य महीनो के नाम नक्षत्रो के नाम पर रखे गए हैं।
पूर्णमासी को जैसा नक्षत्र होता है उस महीने का नाम उसी नक्षत्र पर रखा गया है, क्योंकि पूर्णिमा को सूर्य, चन्द्र, पृथ्वी के दोनों और उलटी दिशा में होते हैं।
महीनों के नाम नक्षत्रानुसार :
- चैत्र – चित्रा
- वैशाख – विशाखा
- ज्येष्ठ – ज्येष्ठा
- आषाढ़ – पूर्वाषाढ़
- श्रावण – श्रवण
- भाद्रपद – पूर्वाभाद्रपद
- आश्विन – अश्विनी
- कार्त्तिक – कृत्तिका
- मार्गशिर – मृगशिरा
१० पौष – पुष्य - माघ – मघा
- फाल्गुन – उत्तरा फाल्गुन
इसी आधार पर हमें अंतरिक्ष में सूर्य, चन्द्र, पृथ्वी आदि सभी ग्रहो की चाल, और अभी वो किस जगह स्थित हैं ये पूर्ण जानकारी इसी विज्ञानं के आधार पर मिलती जाती है।
सर डब्ल्यू जोंस की यह भी सम्मति है की इन महीनो के नाम इत्यादि से पूरा पता लगता है की ज्योतिष अत्यंत पुरानी विद्या है।
प्राचीन काल में वर्ष पौष मास से आरम्भ होता था जब दिन अत्यंत छोटा और रात अत्यंत बड़ी होती है। इसी कारण मार्गशिर मास का द्वितीय नाम अग्र्ह्न्य था, जिसका अर्थ यह है की वह महीना जो वर्ष आरम्भ होने से पहले हो।