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विज्ञान/स्वास्थ्य….हैरत’अंगेज सच : इंसानी खून में पहुंचा माइक्रोप्लास्टिक

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डॉ. विकास मानव

 _वैज्ञानिकों को इंसान के खून में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी के साक्ष्य मिले हैं, जो हैरान कर देने वाले हैं। हमारे रोज़मर्रा इस्तेमाल में आने वाले पानी के बोतल, ग्रासरी बैग, खिलौने, डिस्पोजबल कटलरी के प्लास्टिक पार्टिकल्स की मात्रा हमारे खून में मापे जाने योग्य स्तर पर पहुंच गए हैं।_
   यह रिसर्च साइंटिफिक जर्नल ‘एनवायरनमेंट इंटरनेशनल’ में प्रकाशित हुआ है। इसमें बताया गया है कि हमारे आसपास के वातावरण में पाए जाने वाले प्लास्टिक पार्टिकल्स का हिस्सा इंसानों के रक्त प्रवाह में भी अवशोषित हो रहा है। 

खून के नमूने या सैंपल्स में प्लास्टिक आइटमों में सबसे ज्यादा सामान्य रूप से पाए जाने वाले पॉलीइथाइलीन टेरेपिथालेट (पीईटी) और स्टायरिन के पॉलीमर मिले हैं। इनके साथ ही पॉली मिथाइल मेथाक्राइलेट भी पाए गए हैं। विश्लेषण में पॉलीप्रोपाइलिन भी मिला, लेकिन उसकी मात्रा इतनी कम थी कि उसे मापा नहीं जा सका।
पीईटी आम तौर पर सोडा, पानी, दूध की बोतलों और घरेलू साफ-सफाई के पदार्थो के कंटेनर, ग्रासरी बैग, टोपी और खिलौने में एवं स्टायरिन के पॉलीमर डिस्पोजबल कटलरी, प्लास्टिक मॉडल, सीडी और डीवीडी में इस्तेमाल किए जाते हैं।
एम्सटर्डम स्थित व्रिजे यूनिवर्सिटी में पर्यावरण विषाक्तता मामलों की विशेषज्ञ हीदर लेस्ली ने बताया कि हमने यह साबित कर दिया कि हमारे शरीर में बहने वाले रक्त प्रवाह में भी प्लास्टिक मौजूद हैं।

अध्ययन करने वाली टीम ने इंसानी खून में माइक्रो और नैनोप्लास्टिक पार्टिकल्स की मौजूदगी को साबित करने के लिए एक विश्लेषणात्मक तरीका विकसित किया है। अध्ययन में शामिल किए गए 22 प्रतिभागियों के खून में प्लास्टिक के निर्माण घटकों या पॉलीमर की मौजूदगी की जांच की गई।
तीन-चौथाई जांच में खून में प्लास्टिक की मौजूदगी पाई गई। इस नए अध्ययन में पाया गया कि इंसान अपने दैनिक जीवन में वातावरण से माइक्रोप्लास्टिक को अवशोषित करता है और इसकी मात्रा मापे जाने के स्तर तक पहुंच गई है।
अध्ययन में शामिल 22 प्रतिभागियों के खून के सैंपल्स में प्लास्टिक पार्टिकल्स की औसत मात्रा 1.6 माइक्रोग्राम प्रति मिलीलीटर (यूजी/एमएल) पाई गई। इस मात्रा को आम तौर पर एक हजार लीटर पानी में एक चम्मच के रूप में समझ सकते हैं।

एक चौथाई खून के सैंपल्स में पता लगाने योग्य मात्रा में प्लास्टिक पार्टिकल्स पाए गए। यूनिवर्सिटी की एनालिस्ट केमिस्ट मार्जा लैमोरी ने बताया कि यह अपने तरह का पहला डेटासेट है और इसे और विस्तार देने की आवश्यकता है, जिससे पता चल सके कि प्लास्टिक का प्रदूषण किस तरह से हमारे शरीर में दाखिल हो रहा है और यह कैसे नुकसान पहुंचा रहा है।
इससे हम यह भी पता लगा सकते हैं कि ये प्लास्टिक के कण किस तरह से सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं। रिसर्च करने वाली टीम अब यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि इन प्लास्टिक कणों के लिए रक्त प्रवाह में शामिल होकर ऊतकों और मस्तिष्क समेत अन्य अंगों में पहुंचना कितना आसान होता है।
यह रिसर्च जहां प्लास्टिक से पैदा होने वाले गंभीर खतरे के प्रति आगाह करता है, वहीं इस संकट से निपटने के लिए और अध्ययन का मार्ग खोलता है ताकि समाधान के तौर-तरीके खोजे जा सकें।
(मनोचिकित्सक लेखक, ‘चेतना विकास मिशन’ के निदेशक हैं.)

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