डॉ. विकास मानव
यह आर्टिकल खासकर उन लोगों के लिए है, जिनके जीवन में 35-45 वर्ष की आयु तक भी उन्हें कुछ भी प्रगति नहीं देखने को मिलती। या जिनके बारे में परिवार समाज ये सोचता है कि ये लोग किसी काम के नहीं हैं। ना जॉब, ना कोई काम धंधा। जबकि उनके सहपाठी जिंदगी के हर सुख प्राप्त कर चुके होते हैं।
उन लोगों को कभी भी हिम्मत नहीं खोनी चाहिए, क्योंकि इस के पीछे एक बहुत बड़ा रहस्य छुपा होता है। अक्सर देखा गया है कि ऐसे लोग अगर 45 वर्ष की आयु तक किसी भी तरीके अपने को बायलॉजिकल रूप से मतलब अपने शरीर को ठीक रखने में कामयाब हो जाते हैं तो 45-50 वर्ष की आयु के बाद वे सफलता की बुलंदियों को छू लेते हैं । जबकि उस समय उनके सहपाठी अपने जीवन की ढलान पर होते हैं, जिन्होंने बहुत जल्दी सफलता हासिल कर ली थी।
पूरा जीवन हमें 50 प्रतिशत सफलता और 50 प्रतिशत असफलता का समय मिलता है। किसी को दो टुकड़ों में। किसी को टुकड़ों टुकड़ों में।
जिनको 50-50 प्रतिशत में सिर्फ दो टुकड़ों में मिलता है वे लोग ही इस प्रकार का जीवन पाते हैं।
ऐसे लोगों को खुश होना चाहिए की उन्होंने पहले हाफ में जीवन की सारी असफलताएं देख ली। अब उन्हें सिर्फ सफलताएं है देखनी बाकी बची है।
पिछले कुछ दिनों से मेरी मेरे पुराने कई क्लाइंट्स से बात हुई। इनको मैने 1999-2000 के समय कई बातें बताई थी उनकी लाइफ की एनालिसिस के आधार पर। आज 20 वर्ष के बाद जब उनसे फीड बैक मिली की उनके ये 20 वर्ष वैसे ही बीते जैसे मैने उन्हें बताए थे।
फिजिक्स, केमिस्ट्री, बायलॉजी , ज्योतिष, वेद, पुराण के सिद्धांत हर चीज पर लागू होते हैं : चाहे हमारा जीवन हो या संसार। यजुर्वेद में लिखा है यथा देह यथा ब्रम्हांड।
शिव पुराण में शिव पार्वती को कहते हैं कि स्त्री और पुरुष एक दूसरे के पूरक है। अगर ये दोनों एक दूसरे में पूर्ण रूप से समा जाएं तो संसार में जीवन शून्य हो जाएगा।
मेरे शब्दों में खट पट, इनके बीच कुछ दूरी रहना जरूरी है। इस शून्य अवस्था का रूप ही अर्धनारीश्वर है। यही मोक्ष अवस्था है। इस बात का अहसास हमे प्रेम संबंध के दौरान कभी कभी extreme moments पर होता है जिसका जिक्र ओशो ने भी किया है। इसी को उन्होंने समाधि का एक moment कहा है।
हठयोग धारण करने की प्रक्रिया या विधान में जो व्यक्ति हठयोग धारण करता है। वह जीवन मृत्यु, सुख दुख, हर्ष शोक से उपर उठना चाहता है। जब किसी को हठयोग की दीक्षा दी जाती है। तब शमशान की राख को पुरष के स्पर्म और रजस्वला स्त्री से रज ( माहवारी का खून) से मिक्स करके उसके पूरे शरीर पर मल दिया जाता है। ( हठयोग प्रदीपिका के अनुसार) इसका मतलब होता है कि हठयोग धारण करने वाला व्यक्ति स्त्री पुरष के सबंधो से और जीवन मृत्यु के भय से उपर उठ गया।
मेडिकल science के अनुसार जब तक किसी व्यक्ति में टेस्टोस्टेरोन की कुछ मात्रा शेष है उसमे पुर्षत्व है। वह जिंदा है। आयु के साथ टेस्टोस्टेरोन कि मात्रा जैसे जैसे किसी पुरष में कम होती जाती है। उसमे स्त्रीत्व के हार्मोन्स की मात्रा उतनी ही बढ़ती जाती है। उसमे स्त्रियों वाले गुण आने लगते हैं।
आपने देखा होगा young लड़कों की V शेप होती है उम्र के साथ उसके हिप्स का साइज बढ़ने लगता है। यही बात स्त्री पर उल्ट लागू होती है और शरीर बूढ़ा होकर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। इसीलिए बूढ़े पुरष में वो जवानी वाली गर्मी नहीं रहती and vice versa स्त्रियों के लिए।
जब कोई इंसान प्राकृतिक मृत्यु के नजदीक होता है (बिना बीमारी या दुर्घटना) सिर्फ ओल्ड age. उस समय उसके शरीर में दोनों हार्मोन्स की मात्रा ज़ीरो हो जाती है। उस समय वह ना स्त्री ना पुरष होता है। एक शून्य की अवस्था होती है।
फिजिक्स में गॉड पार्टिकल सबसे छोटा पार्टिकल, जिसको ऋषि कानाद ने अपने उपनिषद कनिउपनिषद में नोबल प्राइज winner dr Boss से हजारों वर्ष पूर्व अपने उपनिषद में बताया हुआ है। दो opposite स्पिन का बना होता है। शून्य के विस्फोट से ही बिग बैंग हुआ था जिससे इस ब्रह्माण्ड में स्टार गैलक्सी planets सब कुछ बने।
अब जीवन पर आते है। सबके जीवन में जितने सुख होते हैं उतनी ही मात्रा में दुख भी होंगे। आज नहीं तो कल। जितनी सफलताए होंगी उतनी ही असफलताएं भी होगी। यह क्लियर कट निश्चित है।
चाहे किसी का जीवन बाहर से जैसे मर्जी दिखता हो। अब जीवन में ये कई टुकड़ों में मिले या सिर्फ दो टुकड़ों में। कुछ टुकड़े दुख, असफलता के। कुछ टुकड़े सुख, सफलता के। लेकिन टोटल is always शून्य।
ज्योतिष में राहु केतु का axis ही किसी की कुंडली में यह निर्धारित करता है कि यह कितने टुकड़ों में और कब कब मिलेगा। लेकिन वहां भी सबका टोटल शून्य ही होगा।
अद्वैत वाद के सिद्धांत भी यही कहते हैं संसार शून्य से उत्पन होता है और चलता है और समाप्त होकर भी शून्य ही बनता है। यही बात शिव पुराण और ऋग्वेद में भी है कि “अद्वैत का द्वैत में बदलना ही सृष्टि के निर्माण का कारण है।”
अब सफलता की क्या परिभाषा है। जैसा कि मुझसे किसी ने पूछा था। एक ही वस्तु किसी के लिए सुख या सफलता है किसी के लिए असफलता।
समाज और अपनी नजर में सफलता और असफलता के मायने बिल्कुल उल्ट होते हैं।
सफलता किसी को दो टुकड़ों में किसी को टुकड़ों टुकड़ों में मिलती है। लेकिन टोटल हमेशा शून्य।
इन शब्दों में एक बहुत बड़ा रहस्य छुपा है। दुनिया की हर चीज का टोटल शून्य होता है चाहे रिश्ते हों, सुख दुख, सफलता असफलता, प्रेम घृणा, स्त्री पुरष, मैटर एनर्जी, पार्टिकल फिजिक्स के सारे phenomena कुछ भी।
singularity can not exist in physical form क्योंकि ऋग्वेद, शिवपुराण, theory of creation of यूनिवर्स बिग बैंग, सबके अनुसार सब शून्य से प्रकट होते हैं और शून्य में समा जाते हैं। अद्वैत का द्वैत मै बदलना ही सृष्टि के निर्माण का कारण है।
शिव के शरीर से ही शक्ति प्रकट हुई थी। जिससे जीवन प्रकट होता है। शिव के साथ समा कर है अर्धनारीश्वर रूप बना। जो मोक्ष, शून्य है।
वेदों में लिखा है कि निराकार ही आकार का रूप लेता है। लेकिन निराकार दो equal and opposite प्रकार के आकार लेता है। जब ये opposite आकार एक दूसरे में समा जाते है तो आकार फिर निराकार हो जाता है।
यही से न्यूटन ने कॉन्सेप्ट उठा कर उसकी गणित के सूत्र में पिरोया था। लॉ of equilibrium भी इसी की उपज थी।
फिजिक्स की आज तक की सारी theories इन्ही वेद पुराणों की कहानी, philosophy को गणित के सूत्रों में पिरो कर बनाई गई हैं।
अल्बर्ट आइंस्टीन ने E=MCsquare वाली इक्वेशन, डॉक्टर बॉस का गॉड पार्टिकल ऋषि कणाद के कनुपनिषद के concept को गणित से जोड़ना मात्र था। न्यूटन की theory of gravition इन्ही कॉन्सेप्ट का मात्र गणितीय रूप है।