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मध्यप्रदेश को देख सुप्रीम कोर्ट को लगेगा, हे धरती तू फट..

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-सुनील कुमार

मध्यप्रदेश में सरकारी अफसरों का रूख वहां के मंत्रियों का चेहरा देख-देखकर तय होता है, और लोकतंत्र में सरकार का बहुत सारा काम तो अफसरों के रूख के मुताबिक ही होता है, या नहीं होता है। अब जैसे सरकार का रूख कांग्रेस और राहुल गांधी के खिलाफ है, तो कांग्रेस के किसी कार्यक्रम के लिए दी गई इजाजत भी उसी हिसाब से ढल जाती है। इंदौर जिले में कांग्रेस कमेटी ने राहुल गांधी की आमसभा के लिए सरकारी कॉलेज के मैदान को मांगा, और लाउडस्पीकर लगाने की इजाजत भी। इस पर एसडीएम की तरफ से जो अनुमति दी गई है, उसमें एक बड़ी दिलचस्प शर्त दिख रही है, कि कार्यक्रम के समय घोषणा करने के दौरान कोई भी राजनैतिक व धर्मविरोधी भाषण प्रतिबंधित रहेंगे। राहुल गांधी सांसद हैं, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं, और देश के एक प्रमुख नेता हैं। अब अगर उनके कार्यक्रम की इजाजत में राजनीतिक भाषण प्रतिबंधित रखा जाएगा, तो वे भाषण क्या देंगे? क्या संसद में किसी को बोलने की इजाजत देने के पहले यह कहा जा सकता है कि वे देश के मुद्दों पर नहीं बोलेंगे? 

इस मध्यप्रदेश का एक दूसरा आदेश इसी के टक्कर का है। छिंदवाड़ा कलेक्टर ने अडानी कंपनी के लिए किए जा रहे जमीन अधिग्रहण को लेकर एक आदेश निकाला है जिसमें जिला दंडाधिकारी की हैसियत से हुक्म दिया गया है- जिला छिंदवाड़ा की तहसील हर्रई की समस्त राजस्व सीमाओं में किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, वॉट्सऐप, यूट्यूब, फेसबुक, ट्विटर आदि के माध्यम से बांध निर्माण से संबंधित संदेश/वीडियो पोस्ट किया जाना अथवा भ्रामक खबरें प्रसारित करना प्रतिबंधित किया जाता है। दिलचस्प बात यह है कि कलेक्टर ने इस आदेश को आम जनता को संबोधित रखा है, और लिखा है- चूंकि वर्तमान में मेरे समक्ष ऐसी परिस्थितियां नहीं है, और न ही यह संभव है कि इस आदेश की पूर्व सूचना प्रत्येक व्यक्ति को दी जाए, इसलिए यह एकपक्षीय पारित किया जाता है। यह बांध सर्वे कार्य से लेकर बांध निर्माण कार्य संपन्न होने तक की अवधि तक लागू रहेगा। 

ये दोनों आदेश मध्यप्रदेश सरकार के राजनीतिक रूख को बताते हैं। एक आदेश में राहुल की सभा में राजनीतिक बात न होने का हुक्म दिया गया है, तो दूसरे में अडानी के बांध के लिए जमीन अधिग्रहण के पहले से लेकर बांध निर्माण कार्य संपन्न होने तक के लिए पूरी तहसील में किसी भी तरह के मैसेज या वीडियो पर इस बारे में कुछ कहने पर रोक लगाई गई है। कलेक्टर ने इस तहसील के हर नागरिक के गले में एक-एक फंदा डालकर उसे इतना टाईट कर दिया है कि अडानी के खिलाफ कोई आवाज न निकले, बस सांस लेने जितनी जगह बनी रहे। हमारी याद में यह हिन्दुस्तान का अकेला ऐसा गला घोंटने वाला आदेश होगा जो कि भूमि अधिग्रहण के पहले से लागू हुआ है, और बांध निर्माण पूरा हो जाने तक लागू रहेगा! क्या यह किसी किस्म का लोकतंत्र कहा जा सकता है? कोई कंपनी, कोई उद्योगपति सरकार के चहेते हो सकते हैं, लेकिन क्या उनकी गुलामी करने में सरकार लोकतंत्र का ही गला घोंट दे? आज जिस वक्त हम यह संपादकीय लिख रहे हैं, उसी वक्त एमपी में कांग्रेस पार्टी ‘जय बापू, जय भीम, जय संविधान’ नाम का राष्ट्रीय कार्यक्रम डॉ.भीमराव अंबेडकर की जन्मभूमि, महू में शुरू कर रही है। पूरी पार्टी यहां मौजूद रहेगी, और कांग्रेस ने यहां एक लाख लोगों के इकट्ठा होने का अनुमान लगाया है। 2023 में विधानसभा चुनावों में करारी शिकस्त के बाद कांग्रेस का इस प्रदेश में यह पहला बड़ा कार्यक्रम है, और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े, प्रियंका गांधी सहित कांग्रेस कार्य समिति के सारे सदस्य इसमें रहेंगे, और मंच से कोई भी राजनीतिक भाषण होने पर यह अनुमति खुद ही निरस्त हो जाएगी! 

सरकारी अफसरों को किसी पार्टी के कार्यकर्ता, या इंडस्ट्री के मुलाजिम की तरह काम करने के पहले यह भी सोच लेना चाहिए कि वे इन बातों के लिए किसी हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में तलब भी किए जा सकते हैं। लेकिन अकेले इसी प्रदेश के ऐसे दो अफसर यह कर रहे हों, ऐसा भी नहीं है। बहुत से प्रदेशों में अतिउत्साही अधिकारी, अपनी न जाने किस किस्म की आत्मरक्षा के लिए खुशामदखोर होकर जनविरोधी काम करने लगते हैं, और प्रजा को दुलत्ती मारकर सत्ता की चापलूसी करने लगते हैं। अब अडानी का बांध अगर बीस बरस में बनेगा, तो इन बीस बरसों में भी उस तहसील के लोगों को बांधी की जमीन से लेकर बांध निर्माण तक कुछ कहने का कोई हक नहीं रहेगा। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंटने का ऐसा भयानक काम शायद ही कहीं और याद पड़ता हो। इस आदेश को देखकर वैसे तो दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट की पुरानी इमारत, और संसद की नई इमारत, इन दोनों के मुंह से आह के साथ यह निकलना था कि हे धरती तू फट जा, और हमें समा ले। 

लेकिन हमारा ख्याल है कि न सिर्फ ये दो अफसर, बल्कि इनकी ‘जात’ के इनके सरीखे बाकी अफसर भी किसी अदालती धिक्कार को सत्ता के प्रति अपनी निष्ठा के सुबूत की तरह सीने पर टांगकर घूमेंगे, और शहादत के अंदाज में सत्ता को यह समझाएंगे कि उसके लिए वे किसी भी तरह की कुर्बानी देने के लिए एक पैर पर खड़े हैं। उनका बस चलेगा तो अपने ऐसे आदेशों के लिए वे महीना-पन्द्रह दिन जेल भी काट आएंगे, और उसे भी अपने गोपनीय प्रतिवेदन में उपलब्धियों के कॉलम में दर्ज करवाएंगे। जब भारतीय लोकतंत्र में नीचे से ऊपर तक सत्ता पर बैठे हुए लोग संविधान की हेठी करने में जुटे हुए हों, तब किसी गरीब या कमजोर के लिए इंसाफ पाने की गुंजाइश न के बराबर रह जाती है, खासकर तब जब वह किसी ताकतवर के जुल्म के सामने कमजोर को इंसाफ मिलने की हो। अब भला एक तहसील की जनता का क्या हक बनता है कि वे अडानी के किसी बांध के बारे में मुंह भी खोलें! ऐसे तमाम मुंह कलेक्टर के आदेश वाले पन्नों से ठूंस-ठूंसकर भर दिए जाएंगे, और कलेक्टर ने आश्वासन दिया है कि जब बांध पूरा हो जाएगा, उसके बाद मुंह में ठूंसे कागज निकाले भी जा सकेंगे। सोशल मीडिया पर कुछ अरसा पहले, देख रहा है बिनोद, यह लाईन बड़ी चली थी। हम सोच रहे हैं कि, देख रहा है सुप्रीम कोर्ट, यह लाईन भी चलनी चाहिए, और उससे हो सकता है कि देश की सबसे बड़ी अदालत को भविष्य के इतिहास में दर्ज होने वाले अपने नाम की थोड़ी-बहुत फिक्र होने लगे।

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