राकेश अचल
किसी अज्ञात जादू की छड़ी से पांच में से तीन सूबे जीतने वाली भाजपा के लिए इन राज्यों में नए सूबेदारों का चयन कितना जटिल काम है ,ये चुनाव नतीजे आने के दो दिन अनिर्णय में बीत जाने से साबित हो रहा है । भाजपा को अब रायशुमारी के बजाय थोपाथापी से काम चलाना पडेगा,क्योंकि तीनों राज्यों में दो से अधिक बार सूबेदार [ मुख्यमंत्री ] रह चुके लोग पहले से मौजूद हैं। लेकिन उनका मॉडल बहुत पुराना हो चुका है। वे नए विधायकों को साथ लेकर अपने-अपने सूबों में मोदी की गारंटी जनता को दे पाएंगे ये कहना कठिन है।
सबसे ज्यादा मुश्किल मध्यप्रदेश में है । मप्र में सत्ता का एक अनार है और बीमार अनेक। वहां कायदे से मौजूदा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ही सूबेदार बनने के लिए सबसे सुयोग्य व्यक्ति हैं ,लेकिन उन्हें पांचवीं बार सूबेदारी सौंपना भाजपा के लिए आसान काम नहीं है। पिछले बीस साल में मप्र में बहुत से नए दावेदार पैदा हो चुके हैं। भाजपा चाहे तो चौहान को ही आगामी लोकसभा चुनाव तक मौक़ा दे दे तो कोई नुक्सान होने वाला नहीं है । चौहान को चुनौती देने की स्थिति में फिलहाल मप्र में कोई नहीं है। मैंने देखा है कि पूरा चुनाव चौहान के इर्दगिर्द ही था। सूबेदारी के अन्य दावेदारों में शामिल कैलाश विजयवर्गीय,प्रह्लाद पटेल,वीडी शर्मा,केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और अंत में ज्योतिरादित्य का आदित्य सीमित था । सबसे ज्यादा सभाएं,रैलियां और जनसम्पर्क शिवराज सिंह चौहान के खाते में दर्ज है।
मेरा अनुमान है कि भाजपा हाईकमान मप्र में नए प्रयोग करने से बचेगा,अन्यथा उसे मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है,हालांकि सूबेदारी न मिलने से शिवराज सिंह चौहान बागी होने वाले नहीं हैं, लेकिन प्रदेश की जनता शायद इसे बर्दाश्त न करे। ज्योतिरादित्य सिंधिया कभी सूबेदार बनना नहीं चाहते क्योंकि वे तो सनातन महाराज है। महाराज कभी सूबेदार बनते नहीं किन्तु मोदी है तो मुमकिन भी है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी राजी होना पड़े। बाकी तो सूबेदार बनने के सपने देखते हुए बूढ़े हो चुके हैं।
मप्र की ही तरह राजस्थान में पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती बसुंधरा राजे है। वे महारानी कम, सूबेदार ज्यादा है। पहले भी सूबेदारी कर चुकीं हैं और आज भी उन्होंने शायद अपना दावा नहीं छोड़ा है ,किन्तु लगता है इस बार उन्हें निराश ही होना पडेगा,क्योंकि भाजपा हाई कमान राजस्थान को नाथ समप्र्दाय के हवाले करना चाहता है। राजस्थान में भाजपा के पास एक बाबा है भी। वैसे तो भाजपा के पास महारानी के जबाब में एक रानी दीया कुमारी भी हैं लेकिन इनमें से किसी एक के पास भी बसुंधरा राजे जैसी धरा नहीं है। लेकिन कोई तो सूबेदारी करेगा है । देखिये किसकी लाटरी खुलती है। ये तो जाहिर है कि राजस्थान में भी मप्र कि तरह नवनिर्वाचित विधायकों कि पसंद का नेता सूबेदार नहीं बनने वाला है।
सबसे छोटे छत्तीसगढ़में पूर्व के सूबेदार डॉ रमन सिंह हैं ,लेकिन उनका पानी उतर चुका है। यहां एकदम नया चेहरा ही सूबेदार बनाया जायेगा । वो आदिवासी होगा या पिछड़ा ये कहना कठिन है। छत्तीसगढ़ में डॉ रमन सिंह अब भाजपा के लिए उतने महत्वपपूर्ण नहीं रहे जितने कि वे 2018 तक थे। वे विद्रोही स्वभाव के भी नहीं है। वे पार्टी है कमान के किसी भी फैसले को चुनौती देने की स्थिति में भी नहीं हैं। ऐसे में छत्तीसगढ़ को एकदम ताजा चेहरा सूबेदार के रूप में मिलने वाला है। तीनों राज्यों में केवल छत्तीसगढ़ है जहां भाजपा हाईकमान को ज्यादा कसरत नहीं करना पड़ेगी।
भाजपा के नए सूबेदार वे ही होंगे जो भाजपा के सुप्रीमो प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के मन में होंगे। नवनिर्वाचित विधायकों का मन टटोलने का नाटक जरूर होगा ,लेकिन होगा वो ही जो मंजूरे मोदी होगा। मोदी इस समय भाजपा के तारणहार है। उन्होंने जीत के जश्न में भी साफ़ कह दिया था कि अब देश को मोदी की गारंटी के पीछे चलना पडेगा। लेकिन ये देश को तय करना है कि ऐसा हो या नही। देश क्या तय करेगा अभी से नहीं कहा जा सकता। लेकिन एक बात तय है कि यदि आने वाले दिनों में देश का विपक्ष नए सिरे से भाजपा कि धर्मध्वजा लेकर चल रहे विजय के अश्व को नहीं रोकता तो देश आने वाले दिनों में एक अलग तरह का देश होगा ,जिसकी कल्पना न महात्मा गाँधी ने की होगी और न सरदार बल्ल्भ भाई पटेल ने।
बहरहाल सब दिल्ली की और ताक रहे है। तेलंगाना में नए सूबेदार का चयन कांग्रेस के vलिए कोई कठिन काम नहीं है । मिजोरम में भी शायद ही किसी को कोई समस्या हो ,क्योंकि वहां भाजपा तथा कांग्रेस निर्णायक स्थितियों में नहीं है। भाजपा को जो कमाल करना है वो गोबर पट्टी से करना है। दक्षिण और पूरब तो भाजपा के करिश्मे से अभी अछूता है ,हालाँकि भाजपा दक्षिण और पूरब को भी फतह करने के लिए गोटियां बैठने में लगी हुई है।