अग्नि आलोक
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*भ्रष्टाचारी-दुराचारी, अपाहिज-कचरा सोच वाले मनुष्यों के लिए सेक्स जिम्मेदार*

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         ~अदिति शर्मा

मानव समाज का विकृत स्वरूप कैसे बदले? कहा जाता है की इतने पापी बढ़ गए हैं कि अब कुछ भले इंसानों की वज़ह से ही धरती का वज़ूद बचा है. ये भले इंसान कैसे बढ़ेँ? इस मुद्दे पर हमने मेडिटेशन ट्रेनर, ‘डिवाइन’ आर्गेज्म क्रिएटर, मोटिवेटर डॉ. विकास मानवश्री से बातचीत की. यह लेख इसी सहज संवाद का परिणाम है.

जैसा अन्न, वैसा मन.

जैसा बीज, वैसा फल.

जैसा खेत, वैसी फ़सल.

     मानव समाज ने अध्ययन, फैशन और भौतिक सुविधाओं के लिहाज़ा प्रगति किया है, करता जा रहा है. लेकिन सात्विकता, मनुष्यता के धरातल पर उसकी स्थिति क्या है? सच तो यह है की ऐसा धरातल ही लुप्तप्राय है. स्वार्थ, स्वार्थ और सिर्फ़ स्वार्थ. इस स्वार्थ के लिए समाजसेवा- परोपकार, सद्वृति- भक्ति की नौटंकी का प्रचार किया जाता है और मौका मिलते ही अपनों तक क़ो दबोच लिया जाता है, उनका खून तक कर दिया जाता है.

     मतलब जो दिखाया जाता है, वह पाखंड है, और जो जीया जाता है, वह सच है. दौलत और सेक्स की हवस ही ऐसे स्वरूप के मूल में काम कर रही है. ऐय्यासी के लिए दौलत और दौलत से ऐय्यासी : यही जीवनसूत्र बन गया है.

      कहीं भी, किसी से भी, कैसे भी, कितनों से भी सेक्स किया जा रहा है. भाई-बहन, मां-बेटे, बाप-बेटी तक के बीच यह हो रहा है. सोशल मिडिया कहे जाने वाले प्लेटफार्म पर तो कई ग्रुप्स तक स्पेशली इसके लिए ऐक्टिव हैं. एजुकेशन-कॅरियर-बिजनेस के लिए सेक्स, सेक्सटॉय-पशु-वस्तु से सेक्स और रेप-गैंगरेप का तो आलम ही अलग है. अब ऐसी मानसिकता वाले कैसी संतान समाज क़ो देंगे?

संभोग बुरा नहीं है. यह प्रेम का साकार स्वरूप है. यह एक पवित्रतम साधना है. क्या बिना संभोग के किसी का अस्तित्व संभव है? ज़रा सोचिये! राम, सीता, कृष्ण, राधा, महावीर, बुद्ध, कबीर, नानक, मीरा, मोहम्मद, राबिया, विवेकानंद, जे कृष्णमूर्ति, अरविंदो घोष, रमण महर्षि, ओशो जैसे लोग कैसे पैदा हुए?

    नर-मादा के सात्विक और गहरे मिलन से ही ऐसा अस्तित्व संभव है।  इनके माँ बाप का मिलन, केवल वासना मात्र नही था. वो था एक अद्भुत प्रेम मिलन.

      आज के बच्चे बिना प्रेम के पैदा हो रहे है। प्रेम अखंड है. समग्र प्रेम अनेक से हो ही नहीं सकता. प्रेम खंडित नहीं हो सकता. तो आज प्रेम नहीं है, इसीलिए हर तरफ दुराचार, कइयों को यूज़ करना. पुरूष-स्त्री एक दूसरे को सेक्स की मशीन समझ रहे है! जब तक दोनों में प्रेम पैदा नही होगा, तब तक सिर्फ शारीरिक मिलन ही संभव है।

    जब तक महज वासना रहेगी तब तक प्रेम पूर्वक मिलन हो ही नहीं सकता, और जहां प्रेम नही वहां कैसे उम्मीद कर सकते है कि फिर से राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, कबीर, नानक, मोहम्मद पैदा होंगे!

     ऎसे सेक्स से इससे जड़, घामड़, दुराचारी, शातिर या बुद्धू जरूर पैदा होंगे! हो ही रहे हैं. तभी तो बच्चे दब्बू, आतंकी, हवसी, कायर, मानसिक रूप से बीमार, अपंग, पागल पैदा हो रहे हैं. क्या दे रहे हैं हम समाज को? कैसी होंगी हमारी अगली पीढ़ियां¿

ध्यान जागरण देता है, जागरण के अलोक में सदाचरण फलित होता है. यह आँख, यह क्षमता चेतना विकास मिशन के व्हाट्सप्प 9997741245 पर कनेक्ट होकर निःशुल्क प्राप्त की जा सकती है.

   अगर अभी भी सेक्स पे ध्यान नही दिया गया तो इसी सदी के अन्त तक दुनिया में 40% से ज्यादा आबादी समलैंगिक हो जायेगी, किन्नर पैदा होंगे।

   लोगो का सेक्स भी प्राकृतिक नही रहेगा : 60% आबादी आज सेक्स से सम्बन्धित बीमारियों से पीड़ित है, ऐसा क्यों हो रहा है?

    प्रेम और सेक्स को समझने की कोशिश नही करने के कारण ही आज मानव जाति में इतना तनाव, हिंसा, आतंकवाद हो रहा है। यहाँ तक की 90% पागल होने वाले लोगो का कारण सेक्स ही है।

     क्या दुनिया को सेक्स को समझने की जरूरत नही है? सब लोग हां ही बोलेंगे! लेकिन सब बड़े छोटो से छुपा रहे हैं, माँ बाप अपने बच्चों के सामने सेक्स की बात करने से डरते हैं, यहाँ तक की लोग तो अपने बच्चों को प्यार करने से भी डरते है, इतना डरते है कि ज्यादा प्यार से बाप बेटी, माँ बेटे, भाई बहन के सम्बन्ध खराब ना हों जाये, बाप बेटे की मर्यादा ना खत्म हो जाये!

    अजीब प्रकार के मनुष्य हो गए है, इन सबका एक मात्र कारण है, सेक्स; और अब तो सेक्स भी सेक्स नही रहा!

     वो भी नकली हो गया है, शारीरिक सेक्स कम होता जा रहा है, मानसिक सेक्स ज्यादा हो रहा है, मन में सेक्स चल रहा है लेकिन तन सेक्स के योग्य नही रहा, ऐसा क्यों हो रहा है?

कभी सोचा आपने?

 लोग पोर्न देख रहे है, सेक्स की कहानियां पढ़ रहे है, हस्तमैथुन कर रहे है, आज 95% आबादी हस्तमैथुन करती है। 80 साल के बूढ़े 20 साल की लड़की से शादी कर रहे है।

   आये दिन आप पढ़ते ही होंगे : लोग सगे-संबंधियों, खून के रिश्तो में भी सेक्स कर रहे हैं. जानवरो से भी सेक्स कर रहे है. मनुष्य के सिवा कोई भी दूसरी प्रजाती ऐसा नही कर रही है, बकरी को देख कर भैंसे के मन में सेक्स का ख्याल नहीं आता, लेकिन इंसान तो गैर इंसान से भी सेक्स कर रहे हैं।

    कई देशो में तो लोग जानवरों से शादी तक कर रहे हैं। शादीशुदा लोग हस्तमैथुन कर रहे है, ये सब चंद मिनट का असफल सैक्स करने, पशु या यंत्र सैक्स करने, गुदा या समलैंगिक सैक्स करने या इसे दबाने के कारण हो रहा है। जबकि प्रेम पूर्ण स्वस्थ सैक्स के बिना जीवन संभव नहीं है।

    लेकिन कोई इसे समझने, जानने और मानने को राजी नहीं हैं। सेक्स को समझो. प्रेम के धरातल पर इसे स्वस्थ तौर पर जीओ! ये जीवन का हिस्सा है। नये अस्तित्व का आरम्भ है, आंनद का महासागर है।

   बस एक डुबकी “गहरे में” लगानी है. बे सुध कर देने वाली डुबकी. लेकिन वासना में नही, वास्तविक प्रेम में : एक इंसान के साथ. ऐसे इंसान के साथ जो अनेक को यूज़ करने वाला दुराचारी नहीं हो, काबिल हो.

वर्तमान परिवेश में मनुष्य के अन्दर तनाव, परेशानी, विकृति बढ़ने का मुख्य कारण असन्तुष्ट यौन सम्बन्ध है। असन्तुष्ट यौन के कारण ही मनुष्य आज आनन्दपुर्वक जीवन जीने से असफल है।

      असफल और असन्तुष्ट यौन सम्बन्ध में 99 प्रतिशत पुरुष शीघ्रपात के शिकार होते हैं। पतन का अर्थ आप समझते हैं. यहां तो शीघ्र-पतन है.

     पुरुष गहन मिलन से पहले ही वे स्खलित हो जाते हैं और उन की क्रीड़ा समाप्त हो जाती है। इसीलिए 99 प्रतिशत स्त्रियाँ कभी चरम सन्तुष्टि को उपलब्ध नहीं हो पाती हैं। वह कभी भी गहन सम्भोग के शिखर आनन्द तक नहीं पहुँच पाती हैं।

    अब परिवार की धुरी स्त्री ही अतृप्त हो संतति और उनसे निर्मित समाज रुग्ण होगा ही. असन्तुष्टी और असफल यौन सम्बन्ध के कारण ही अक्सर स्त्रियाँ चिड़चिड़ी और क्रोधी होती हैं। सन्तुष्टी की चाह में जब उनको असन्तुष्टि मिलती है वह तिलमिला उठती हैं।

     अमूमन एक स्त्री सम्भोग में बहुत कम उतरती है। जब वह उतरती है तो चरमता तक पहुँचना चाहती है। जब वह चरमता में पहुँचने की आश रख कर सम्भोग में उतरती है और निराशा हाथ लगती है तो वह मनोरोगी बनती है. मनोरोग उसे तन से भी रोगी बनाते हैं।  

     एक स्त्री की कामुकता परमाणु बम से कम नहीं होती है। उसको सम्भालना हर किसी की बस की बात नहीं है। उसकी कामुकता को फ़िर कोई औषधि शान्त नहीं कर सकती है। ऎसे में कोई दर्शनशास्त्र, धर्म या नीति उसे अपने पुरुष के प्रति सहृदय नहीं बना सकती है.

    आधुनिक मनोविज्ञान और ध्यानतन्त्र दोनों में स्पष्ट लिखा है कि जब तक स्त्री कामभोग में गहन तृप्ति को नहीं प्राप्त करती, वह परिवार और समाज के लिए समस्या बनी रहती है।

   जिससे वह वञ्चित हो गयी, वह चीज उसे क्षुब्ध करती रहेगी। वह उसके कारण तनाव महसूस करती रहेगी। स्त्री पुरुष के बीच झगड़ा हो, तनाव हो, वह उदास हो, घर में शान्ति ना हो तो उस स्थिती का अवलोकन कर चिन्तन मनन करना बहुत ज़रूरी है। 

   स्त्री दोषी नहीं है। इसका प्रमुख कारण यौन के प्रति पुरुष का खुदगर्ज़ स्वभाव होता है. सिर्फ़ अपनी हवस मिटाकर फ़ारिग हो जाने वाला स्वभाव।

   सम्भोग में पुरुष का स्वखलन होते ही वह स्त्री के प्रति बेपरवाह हो जाता है। वह यह नहीं सोचता कि स्त्री चरम आनन्दता प्राप्त करना चाहती है। वह सम्भोग में लम्बा और गहरे तह तक जाना चाहती है। 

    बस पुरुषों का स्वखलन हुआ, अपना आनन्द लिया और वे स्त्री को उसके हाल में छोड़ देते हैं। इस स्वभाव और अतृप्त यौन सम्बन्ध के चलते स्त्री मन हीनभावना से कुण्ठित हो जाता है। 

  स्त्री कामुकता के चरमता को ना उपलब्ध होने के कारण काम विमुख हो जाती है। फ़िर वह आसानी से कामभोग में उतरने को नहीं राजी होती है। बहुत कम, महज एक फीसदी पुरुष स्त्री को गहन सुख की उपलब्धि करा पाते हैं.

    स्त्री जब तक सम्भोग के चरमता को नहीं छू पाती,तव तक वह भोगरत रहना पसन्द करती है। वह भोग की गहनता में उतर कर सम्भोग करना पसन्द करती है। लेकिन एक पुरूष पौरुषहीनता के कारण संभोग के गहरेपन में उतरने से डरता है। 

  आज के पुरूष का कृत्य केवल सतही होता है उसमें गहनता होती ही नहीं है। स्त्री को सम्भोग में चरम आनन्द का अहसास नहीं मिलता तो वह तनाव में आ जाती है। मन में प्रश्नों का ज्वार-भाटा उठने लगता है। उसे लगने लगता है कि पुरुष केवल अपने मजे के लिये उसको यूज़ कर रहा है। उसे महज भोग की वस्तु समझकर उसका शोषण कर रहा हैं। पुरुष को उसकी खुशी से कोई लेना देना नहीं है.

     पुरुष स्खलित होते ही सन्तुष्ट हो जाता है। फिर वह करवट ले कर सो जाता है। लेकिन स्त्री को सम्भोग के चरम आनन्द का अहसास ना होने के कारण वह आँसू बहाती रहती है।वह अनुभव उसके लिए तृप्तिदायक नहीं होता है. जिसकी वजह से सम्भोग के प्रति वह कुण्ठित और रूखी स्वभाव की हो जाती है। वह बस पुरूष को तृप्ती कर सन्तुष्टि देती है। लेकिन खुद असन्तुष्ट और अतृप्त रह जाती है।

  आज प्रायः स्त्री को तो चरम आनन्द का ज्ञान ही नहीं है. उसको सम्भोग का अर्थ केवल योनी- लिंग का घर्षण ही पता है। वह यह भी नहीं जानती कि कामुकता के चरम तक कैसे पहुँचे। बस बिस्तर पर लेट जाना और पुरुष जैसा करे उसी को स्त्री सम्भोग मानती है। स्त्री यह भी नहीं जानती है कि चरम कामुकता क्या होती है ? काम के गहन तल तक कैसे पहुँचा जा सकता है? मेडिकल साइन्स की रिपोर्टस् भी कहती है की दसियों हज़ार में से कोई एक स्त्री कम्प्लीट सेक्ससुख का अनुभव पाती है.

     बाकी स्त्रियों क़ो लाइफ में रियल आर्गेज्म का अहसास तक नहीं हो पाता है. स्त्री ने कभी इसका अनुभव ही नहीं किया। वह कभी भी उस शिखर तक पहुँच ही नहीं पायी है, जहाँ उसके शरीर का रोआँ-रोआँ कम्पित हो उठे, वह तृप्त हो, उसका अङ्ग-अङ्ग उससे निखरे। यह अनुभव करना ही एक स्त्रीत्व का सपना रहता है.

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